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Essay - Manav Samaz

Essay - Manav Samaz
मानव समाज से अलग नहीं रह सकता था, अलग रहने पर उसे भाषा से ही नहीं, चिन्तन से भी नाता तोड़ना पड़ता, क्योंकि चिन्तन ध्वनिरहित शब्द है। मनुष्य की हर एक गति पर समाज की छाप है। बचपन से ही समाज के विधि-निषेधों को हम माँ के दूध के साथ पीते हैं, इसलिए हम उनमें से अधिकांश को बंधन नहीं भूषण के तौर पर ग्रहण करते हैं, किन्तु वह हमारे कायिक, वाचिक कर्मों पर पग-पग पर अपनी व्यवस्था देते हैं, यह उस वक़्त मालूम हो जाता है, जब हम किसी को उनका उल्लंघन करते देख उसे असभ्य कह डालते हैं।सीप में जैसे सीप प्राणी का विकास होता है, उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है। मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा अपने परिवार, ठाठ-बाट, पाठशाला, क्रीड़ा तथा क्रिया के क्षेत्र में और समाज द्वारा विकसित भाषा को लेकर होती है।‘मानव समाज’ हिन्दी में अपने ढंग की अकेली पुस्तक है। हिन्दी और बांग्ला पाठकों के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।

Essay - Manav Samaz

Manav Samaz - by - Lokbharti Prakashan

Manav Samaz -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP3338
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP3338
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 251
  • Edition: 2016
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back, Paper Back
  • Year: 0
₹ 225.00
Ex Tax: ₹ 225.00
Tags: manav , samaz , essay , hindi , gagan , notebook