प्रस्तुत पुस्तक ‘लोकसंस्कृति में राष्ट्रवाद’ में शोध को एक ढाँचा प्रदान करने के लिए तीन लोक-कवियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो लोक-चेतना के तीन कालखंडों में प्रतिनिधि हैं। लोकसंस्कृति के कुछ अन्य रूपों का उपयोग इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति में किया गया है। इसमें सन् 1857 के ग़दर की झलक भी शामिल ह..
आज एक तरफ़ कला और व्यापार का फ़र्क़ धुँधला पड़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ़ कला और राजनीति का : कला परोक्ष क्यों, प्रत्यक्ष रूप से भी राजनीति हो चली है। ऐसे सन्दर्भ में हकु शाह की आवाज़, उनका रचना-संसार, उनका व्यक्तित्व किसी दूसरी दुनिया की उत्पत्ति प्रतीत होते हैं। हकुभाई की कला न केवल पूरी व गहरी मा..
महिलाएँ इस दुनिया में सदैव ही उपेक्षित रही हैं। उनको सामाजिक भागीदारी से दूर रखा गया, अतः वे साहित्य एवं सांस्कृतिक लोक में हाशिए पर रही हैं। पर इस वचन साहित्य के सन्दर्भ में महिला अपने व्यक्तित्व विकास की बुलंदी पर पहुँच चुकी थी, ऐसा लगता है।घास-फूस, झाड़ निकाले बिना खेत स्वच्छ न होता/अशुद्धि और ..
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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1..
‘पूर्वी उत्तर प्रदेश की भौतिक संस्कृति’ (प्रागैतिहासिक युग से उत्तर मुग़ल युग तक) नामक कृति एक साधक अध्येता की अनुसन्धान-यात्रा की फलश्रुति है। पुस्तक में लेखनी ने प्रागैतिहासिक युग से लेकर लगभग अट्ठारहवीं शती तक मानव अधिवास के प्राचीन क्षेत्र वर्तमान पूर्वी उत्तर प्रदेश की भौतिक संस्कृति के विविध प..
परमजीत सिंह (जन्म : 1935) देश के उन महत्त्वपूर्ण आधुनिक चित्रकारों में से हैं जिन्होंने अपने समय के प्रचलित आधुनिक मुहावरों की चिन्ता न करके अपना एक अलग और लम्बा रास्ता खोजा है। पिछले 55 से भी अधिक सालों में एक अद्भुत समर्पण, एकाग्रता और निजी आग्रहों के प्रति एक गहरी निष्ठा से वह अपनी कला भाषा को वि..
प्रयागराज को तीर्थराज कहा गया है। यह भारत का सर्वप्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र होने के साथ ही भारतीय सात्त्विकता का सर्वोत्तम प्रतीक भी है। यह हिन्दू-आस्था का एक महान केन्द्र तो है ही, यह हमारे देश की धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना का केन्द्रबिन्दु भी है। प्रयागराज के माहात्म्य का विस्तृत वर्णन मत्स्य, पद्..
मलयालम कविता जहाँ-जहाँ रूढ़ अवशेषों से टकराती है और अपनी भाषिक एवं सांस्कृतिक स्वत्वगत मौलिकता को बनाए रखते हुए समय में रचे-बसे औपनिवेशिक आयामों का अनावरण करती है, वहाँ यह समकालीन साबित होती है। मलयालम कविता का यह सृजनात्मक व दृष्टिसम्पन्न उन्मेष बहुआयामी इसलिए है कि वह सत्ता के बहुरंगी वर्चस्व को पह..
आदिवासी जनजातियों की बोली हल्बी में रचित ‘राम कथा’ पुस्तक में सिर्फ़ राम की कथा ही नहीं है, बल्कि वह आध्यात्मिक चेतना भी है जिससे जीवन-उद्देश्य के लिए कठिन रास्ते और धुँधली दिशाएँ तय की जा सकती हैं और अपने सपनों के मुताबिक़ अपना संसार रचा जा सकता है। इस तरह अँधेरे में जैसे एक रोशनी हो—यह कथा—राम कथा..
आदिवासियों की कुडुख बोली की यह 'राम कत्था' उनके अपने जीवन, समाज, संस्कृति और
वर्तमान तथा भविष्य की कथा है। यह उनकी अपनी सृष्टि को रचने और उसमें बसने की भी कथा है।
इस पुस्तक की रामकथा वही रामकथा है जो गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरितमानस' की रही है। बस अन्तर
यह कि गोस्वामी जी ने तो रामकथ..
गोंडी बोली में रामकथासार की प्रस्तुति रचनात्मक अभाव को दूर करने की एक बड़ी कोशिश
तो है ही, नई शुरुआत करने की एक दूरदृष्टि भी है। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानसएक ऐसी कृति है, जिसका दो-तिहाई से अधिक अंश वनभूमि और वनजनों से सम्बद्ध है और आदिवासियों के जीवन-जगत में आज भी शामिल है, जिससे ये अपना सम्..
‘रामना वेसोड़’ माड़िया बोली में रामकथा है। यह पुस्तक दण्डामी माड़िया जनजातियों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में उनके स्वतंत्र अस्तित्व और संस्कृति को रामकथा के साथ-साथ एक खोजी भूमिका से भी जोड़ती है।गोस्वामी तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' एक ऐसी कृति है, जिसका दो-तिहाई से अधिक अंश वनभूमि और वनजनों से सम्बद्..