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Literary - Jungle Ke Phool - Hardbound

Literary - Jungle Ke Phool - Hardbound
"यह उपन्यास मध्य प्रदेश के पश्चिम में स्थित बस्तर और वहाँ के आदिवासियों की पृष्ठभूमि पर आधारित है। 1908 में बस्तर में ‘भूमकाल’ विद्रोह हुआ था जिसके अनेक कारण थे और जिसमें राज-परिवार का भी हाथ था। ‘भूमकाल’ विद्रोह का पूरा संगठन बस्तर में स्थित ‘घोटुलों’ में हुआ था। घोटुल को एक प्रकार का कुमार-गृह या बैचलर्स-होम के रूप में भी समझा जा सकता है जो युवक-युवतियों के मनो-विनोद या जिज्ञासा के केन्द्र होते हैं। उपन्यास में उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों के अतिरिक्त नायक-नायिका की कहानी काल्पनिक है, लेकिन विद्रोह के कुछ मुख्य नेताओं, राज-परिवार के व्यक्तियों, अंग्रेज़ों और पंडा बैजनाथ जो सभी विद्रोह से जुड़े थे, उनके नाम ज्यों के त्यों रखे हैं। लेखक का उद्देश्य था बस्तर के घोटुल जीवन, वहाँ की संस्कृति, उनके रीति-रिवाज और जीवन को सामने रखना। 1908 के भूमकाल आन्दोलन को घटित हुए सौ साल से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन आज भी उसकी याद और प्रभाव बस्तर में देखने को मिलता है और वहाँ के आदिवासियों की अपनी ज़मीन पर अधिकार की लड़ाई आज भी चल रही है। राजेन्द्र अवस्थी (1930 - 2009) एक सफल पत्रकार और साहित्यकार थे। ‘नवभारत’, ‘सारिका’, ‘नंदन’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ और ‘कादम्बिनी’ के वे सम्पादक रहे। साहित्य के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना भरपूर योगदान दिया। 1997-98 में दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें ‘साहित्यिक कृति’ से सम्मानित किया था। उनकी अन्य लोकप्रिय पुस्तकें हैं - बीमार शहर और काल चिंतन।"

Literary - Jungle Ke Phool - Hardbound

Jungle Ke Phool - Hardbound - by - Rajpal And Sons

Jungle Ke Phool - Hardbound -

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  • Stock: 10
  • Model: RAJPAL121
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RAJPAL121
  • ISBN: 9788170282099
  • ISBN: 9788170282099
  • Total Pages: 208
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hardbound
  • Year: 2019
₹ 395.00
Ex Tax: ₹ 395.00