यह एक लम्बी कहानी है—यों तो मृत्यु की प्रतीक्षा में एक बूढ़ी स्त्री की, पर वह फैली हुई है उसकी समूची ज़िन्दगी के आर-पार, जिसे मरने के पहले अपनी अचूक जिजीविषा से वह याद करती है। उसमें घटनाएँ, बिम्ब, तस्वीरें और यादें अपने सारे ताप के साथ पुनरवतरित होते चलते हैं—नज़दीक आती मृत्यु का उसमें कोई भय नहीं है ..
हमारे दौर की राजनीति, समाज, आदमी–सब अपने भीतर से लेकर बाहर तक जाने कैसे तो जंजाल में उलझे हुए हैं, और जब उसे सुलझाने चलते हैं, उस जाल से निकलकर खुली, साफ़ जगह में आने के लिए हाथ-पाँव पटकते हैं तो सुलझते-निकलते नहीं, और उलझ जाते हैं।क्या नहीं है हमारे पास? जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, अब वह ..
अगर यह संचयन साहित्य के प्रति निष्ठा से समर्पित एक रचनाकार की सोच-समझ का छोटा-सा किन्तु प्रमाणिक जीवन-भर होता तो मूल्यवान होते हुए भी वह गहरी विचारोत्तेजना का वैसा स्पंदित दस्तावेज़ न होता जैसा कि वह है। कुँवर नारायण आधुनिक दौर के कवि-आलोचकों की उस परम्परा के हैं जिसमें अज्ञेय और मुक्तिबोध, विजयदेव ..
महात्मा गाँधी को सिरे से ख़ारिज करने या उनका अवमूल्यन करने की मुहिम, इन दिनों, सुनियोजित ढंग से चलायी जा रही है। हमारा समय, कम से कम इस समय सत्तारूढ़ शक्तियों के किये-लेखे, गाँधी के अस्वीकार का, गाँधी-विरोध का समय है। यह विरोध या अस्वीकार गाँधी को एक नयी और तीक्ष्ण प्रासंगिकता देता है। उस प्रासंगिकता..
मनोहर श्याम जोशी सृजनात्मक लेखन की तरह ही अपने विशिष्ट वैचारिक लेखन के लिए भी जाने जाते रहे हैं। उनके वैचारिक लेखन का दायरा बहुत ही व्यापक रहा है। उन्होंने अमेरिकी साम्राज्यवाद, आतंकवाद तथा साम्प्रदायिकता जैसे ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ बच्चों के इम्तिहान, साइबर प्रेम, उत्तर आधुनिक फतवेबाजी, हिन्दी ड..
जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और थोथी देशभक्ति के जुमले उछालकर जेएनयू को बदनाम किया जा रहा था, तब वहाँ छात्रों और अध्यापकों द्वारा राष्ट्रवाद को लेकर बहस शुरू की गई। खुले में होनेवाली ये बहस राष्ट्रवाद पर कक्षाओं में तब्दील होती गई, जिनमें जेएनयू के प्राध्यापकों के अलावा अनेक रचनाकारों और जन-आन्दोलनकारिय..
भीष्म साहनी की कथा-शैली से जो बात सबसे पहले ध्यान खींचती है, वह ये कि हम एक ऐसे लेखक के पाठ के साथ हैं, जो लेखक बाद में है, पहले साथ बैठा हुआ मित्र है। ऐसा मित्र जो आपको कम-से-कम चौंकाते हुए, बल्कि शायद इस बात का ध्यान रखते हुए, अपनी बात कहता है कि उसकी कोई बात अगर आपके साथ कुछ करे तो आपके व्यक्तित्..
देखते हम सब हैं, लेकिन देखने की कला सीखने और अभ्यास का विषय है। आज का जीवन कुछ ऐसा है कि वस्तुएँ, रंग और स्थितियाँ एक भागमभाग में हमारी आँखों के सामने आती हैं, और इससे पहले कि हम उन्हें 'देख' सकें, लुप्त भी हो जाती हैं; न तो हम उन चीजों से, उनके फैलाव से, उनकी वास्तविकता से परिचित हो पाते हैं, और न ..
आज की कविता’ आलोचना के नए दर खोलती है और समकालीन कविता के तज़ुर्बों को मुख़्तलिफ़ ढंग से विश्लेषित करती है। समकालीन कविता के लिए, जिस विनम्र और बाशऊर नज़रिए की ज़रूरत थी, वो यहाँ मौजूद है। पूरी किताब विनम्र लेकिन सचेत नज़रिए का प्रतिफल है। ...इस आलोचना-पुस्तक में कविता का होना, जीवन के होने जैसा है।..