एक ऐसे देश में, जहाँ नारी की पूजा धन, ज्ञान, शक्ति और असीम ऊर्जा की देवी के रूप में की जाती है, वहाँ ऐसी भी महिलाएँ हैं, जिन्होंने साबित किया है कि ऐसा क्यों है। इस क्रम में उन्होंने न केवल अपनी प्रतिभा को एक प्रमुख स्थान दिलाया, बल्कि कई दूसरों को प्रेरित और सशक्त भी किया है।
इस पुस्तक में ऐसी बीस..
This book shares the most common and hidden women diseases about which most of the women don’t know or even if they do, they do not realize how easily they can cure it with a few small lifestyle changes.
This book stresses on how by doing yoga and implementing some dietary changes women can keep th..
राजस्थान में देश के अन्य राज्यों की अपेक्षा रजवाड़ों और जागीरदारों का ज़बर्दस्त दबदबा रहा, लेकिन जैसे ही सामन्ती व्यवस्था हटी तो औरतों के लिए अवसर आए, शिक्षा का प्रचार-प्रसार हुआ। अपनी स्थिति पर उनके बीच चर्चा व मंथन की शुरुआत हुई तथा राजस्थान की आम औरतों ने अपनी आवाज़ को बुलन्द करना शुरू किया। यह एक..
यशस्वी कथाकार-सम्पादक राजेन्द्र यादव की इस किताब में स्त्रियों की मुक्ति की राह में मौजूद अनगिनत गुत्थियों पर लिखे लेखों में अनेक कोणों से विचार किया गया है। बीते लगभग चार दशकों में विभिन्न विचारोत्तेजक मसलों पर स्त्रियों के पक्ष में दी गई दलीलों के साथ-साथ इन लेखों में बार-बार उन पेचीदगियों की तरफ़..
नवजागरण अपने राष्ट्रीय जागरण व सुधारवादी आन्दोलन के दौरान अनेक सार्थक प्रयासों और अपनी सफलताओं के लिए जाना जाता है। यह वही दौर था जब साम्राज्य विरोधी चेतना एक विराट राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप ले चुकी थी, और राष्ट्रवाद अपने पूरे उफान पर था। मगर बावजूद इसके यह दौर अनेक विडम्बनाओं और विरोधाभासों के साथ-स..
कथा-लेखन में बीसवीं सदी बड़े अन्तर्विरोधों की सदी रही है। स्त्री को लेकर यह सदी सबसे ज्यादा दुविधाग्रस्त, असहाय और सन्तप्त रही है। महिला कहानीकारों के द्वारा महिला विषयों पर लिखी गयी कहानियाँ स्त्री अनुभव की कहानियाँ हैं। देश, समाज, समय और परिस्थितियों की भिन्नता के बावजूद हर जगह स्त्री वही है और सुख..
‘‘दिव्या विजय अंतर्मन के बीच बेहद सहजता के साथ उतरती हैं और सधे हुए कौशल के साथ अंतर्द्वंदो के क्षणों को चुनती हैं। उनकी यह सहजता और उनका यह सधाव चकित करता है। इन कहानियों के मर्म की अनुगूँजें लम्बे समय तक पाठकों के भीतर बनी रहती हैं और भरोसा दिलाती हैं कि आने वाले समय में दिव्या विजय अपनी खास पहचान..
स्त्रियों के योगदान का जश्न मनानेवाले पुरुष-विमर्श में आमतौर पर यह कहने का चलन रहा है कि स्त्रियाँ कोमल लताओं-सी हैं जो अपनी नाज़ुक पत्तियाँ किसी ऐसे विशाल वृक्ष के तने के गिर्द लपेटती ऊपर चढ़ती हैं, जो उनके जीवन का पुरुष हो, चाहे वह पुरुष पिता हो, पति हो या फिर मार्गदर्शक। पर हमने पाया कि इस बिम्ब ..
लोकप्रिय कथा-मासिक ‘हंस’ ने विगत सदी के अन्तिम दशक में ‘औरत उत्तरकथा’ और ‘अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य’ नाम से विशेषांकों का आयोजन किया था। इस किताब की आधार सामग्री ‘अतीत होती सदी और स्त्री का भविष्य’ विशेषांक से ली गई है। उपरोक्त विशेषांकों की अपार लोकप्रियता और अनुपलब्धता के मद्देनज़र कुल सा..
महिला लेखन पर साहित्य की यह ऐसी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है, जिसे लौन्घकर समकालीन साहित्य-जगत में स्त्री-विमर्श के सन्दर्भ में कुछ कहना असंभव नहीं तो कठिन जरूर साबित होगा । आपकी दृष्टि भविष्य की उस स्त्री पर है, जो संघर्ष करते हुए समग्र पितृसत्तात्मक व्यवस्था के विरुद्ध एक चुनौती बनकर कड़ी हो सके । एक मनो..
लगभग सात-आठ वर्ष पहले (1994 हठ ने ‘औरत : उत्तरकथा’ नाम से विशेषांक का आयोजन किया था, बीसवीं सदी के अन्तिम दशक तक लगने लगा था कि समाज और साहित्य में औरत की कथा अब वह नहीं रह गई है जो सौ-डेढ़ सौ सालों से कही जाती रही है, क्योंकि उसे ‘हम' कहते रहे हैं—‘उसकी’ ओर से। हमारे सामने कुछ सवाल थे जो समस्याओं के..
पाठकों को यह पढ़कर बेहद आश्चर्य होगा कि भारतीय क़ानून के किसी भी अधिनियम में माँ, माता, जननी, यानी मदर को परिभाषित नहीं किया गया है। द जेनेरल क्लासेस एक्ट की धारा 3, अप-धारा 20 में बाप, पिता यानी ‘फादर’ को तो परिभाषित किया गया है, लेकिन माँ को नहीं। माँ को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं थी या क़ानून ..