शरद जोशी हिन्दी व्यंग्य साहित्य के श्रेष्ठ सृजकों में से एक हैं। साहित्य की रचनात्मक मूल्यवत्ता के प्रति सतत जागरूक रहकर अपने परिवेश, जीवन और समाज की हर छोटी-बड़ी विसंगति को उघाड़ने और उसके मूल पर चोट करने में उन्होंने कहीं चूक नहीं की।प्रस्तुत पुस्तक में शरद जी के दो व्यंग्य नाटक संगृहीत हैं—‘अन्धो..
व्यंग्य क्या है? उसका हास्य से क्या सम्बन्ध है? वह एक स्वतंत्र विधा है या समस्त विधाओं में व्याप्त रहनेवाली भावना या रस? वह मूलतः गद्यात्मक क्यों है, पद्यात्मक क्यों नहीं? वह बैठे-ठाले क़िस्म की चीज़ है या एक गम्भीर वैचारिक कर्म? क्या व्यंग्यकार के लिए प्रतिबद्धता अनिवार्य है? यह प्रतिबद्धता क्या ची..
अभी- अभी मेरे- सामने गिरगिट नाम का एक जंतु उभरा है । वह बालिश्त- भर का आकार लिये, बेरी के पेड़ की पतली- सी टहनी से चिपका हुआ है । मैं उसकी तरफ ध्यान से देखता हूँ । यह क्या? कभी उसके शरीर का हर हिस्सा लाल हो जाता है, कभी हरा, कभी पीला । यह हर पल रंग कैसे बदल लेता है? मैं अपने आप से यह प्रश्न बार-बार..
कभी कोई कहता है कि ‘क्या नाटक सा कर रहा है’ तो ऐसा लगता है कि ‘नाटक’ सामान्य अभिनय से अलग कोई चीज नहीं है या नाटक का एकमात्र अभिप्राय है—अभिनय।
हाँ, नाटक का अभिप्राय अभिनय जरूर है, किंतु वह अभिनय होता है जीवन का, जीवन की सच्चाइयों का, जीवन की मधुर-कठोर परिस्थितियों का, सामाजिक परिवेश का।
किंतु जब ..
हमारे एक परममित्र हुए हैं घसीटासिंह ' मुकदमेबाज ' । कई मामलों में बड़े ही विचित्र स्वभाव के आदमी थे । हमें जब यह विचार आया कि न्यायालयों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कुछ अनुभवी लोगों से संपर्क करें तो याद आए श्री घसीटासिंह जी! क्योंकि उनके जीवन की एकमात्र ' हॉबी ' ही मुकदमेबाजी रही थी । आ..
राज्य-व्यवस्था चलाने के लिए पहले ' वरदीधारियों ' की एक ही जाति हुआ करती थी । सरकारी भाषा में उसे ' सिपाही ' कहा जाता था । लेकिन यह ' अंग्रेज श्री ' के भारत आने से पहले की बात है । अंग्रेज क्योंकि स्वभाव से ' विभाजन- प्रिय ' लोग हैं, सो उन्होंने अपनी इस विभाजन-प्रवृत्ति का परिचय देते हुए ' सिपाही जात..
आज़ादी के बाद भारतीय समाज और व्यक्ति-जीवन में जैसी विरूपताएँ पनपी हैं, वे यों भी एक गहरे विद्रूप की सृष्टि करती हैं। फिर यह पुस्तक तो रवीन्द्रनाथ त्यागी जैसे समर्थ व्यंग्यकार के चुने हुए व्यंग्य निबन्धों का संकलन है।रवीन्द्रनाथ त्यागी समकालीन साहित्यिक परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण व्यंग्य लेखक क..
दूसरों का हाल तो हम जानते नहीं, लेकिन जहाँ तक हमारा सवाल है, साहित्यकार बनकर हम बहुत घाटे में रहे; यानी चक्कर में सदा दाल- आटे के रहे । हजारों-लाखों बार सोचा कि काश, हम साहित्यकार न हुए होते, किसी कार्यालय में अहलकार हो गए होते, किसी अधिकारी के पेशकार हो गए होते और यह भी संभव नहीं था तो किसी धनपति र..
वस्तुतः व्यंग्य में यदि हास्य नहीं होगा तो वह कोतवाल का हंटर हो जायेगा। उसकी पोड़ा से तिलमिलाकर अभियुक्त कैसा अनुभव करेगा, उसे आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस कार्य के लिए न्यायालय पहले से ही मौजूद है, फिर व्यंग्य की क्या जरूरत है। हास्य-मिश्रित व्यंग्य सीधा प्रहार करता है और आपको चोट भी नहीं लगती। लग..
वस्तुतः व्यंग्य में यदि हास्य नहीं होगा तो वह कोतवाल का हंटर हो जायेगा। उसकी पोड़ा से तिलमिलाकर अभियुक्त कैसा अनुभव करेगा, उसे आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। इस कार्य के लिए न्यायालय पहले से ही मौजूद है, फिर व्यंग्य की क्या जरूरत है। हास्य-मिश्रित व्यंग्य सीधा प्रहार करता है और आपको चोट भी नहीं लगती। लग..