‘‘मराठी में पहली बार काफ़ी ऊँचे दर्जे का सांगीतिक सैद्धान्तिक निरूपण।’’ —डॉ. अशोक रानडे ‘‘इस ग्रन्थ ने हिन्दुस्तानी संगीत की सैद्धान्तिकी को निश्चित रूप से आगे बढ़ाया है। वामनराव जी का यह कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।’’ —डॉ. बी.वी. आठवले ‘‘घरानेदार गायकी’ ग्रन्थ शास्त्रीय संगीत क..
गुजराती आदि भारतीय भाषाएँ एक विस्तृत सेमिओटिक नेटवर्क अर्थात संकेतन-अनुबन्ध-व्यवस्था का अन्य-समतुल्य हिस्सा हैं। मूल बात ये है कि विशेष को मिटाए बिना सामान्य अथवा साधारण की रचना करने की, और तुल्यमूल्य संकेतकों से बुनी हुई एक संकेतन-व्यवस्था रचने की जो भारतीय क्षमता है, उसका जतन होता रहे। राष्ट्रीय य..
पाँचवीं शताब्दी ई.पू. ग्रीस के 31 क्लासिकल त्रासद नाटकों का संक्षिप्त हिन्दी कथा-रूपान्तरण केवल उन रचनाओं का संक्षिप्त रूपान्तर नहीं, ये छोटी-छोटी खिड़कियाँ और झरोखे हैं जो आपको आज से दो हज़ार पाँच सौ वर्ष पहले की ग्रीक सभ्यता और संस्कृति के ऐसे भव्य संसार में ले जाएँगे, जहाँ देश और काल की सीमाएँ अपने..
हिन्दी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता एक ऐसा विषय है जिस पर लगातार कई दृष्टियों से विचार करने की ज़रूरत है, क्योंकि ऐसे वैचारिक अनुसन्धान से ही हम उन कई प्रश्नों के उत्तर पा सकते हैं जो हमें बेचैन किए रहते हैं। हिन्दी में बार-बार व्याप रही विस्मृति, जातीय स्मृति की अनुपस्थिति आदि ऐसे कई पक्ष हैं ज..
नाटक एक श्रव्य-दृश्य काव्य है, अत: इसकी आलोचना के लिए उन व्यक्तियों की खोज ज़रूरी है जो इसके श्रव्यत्व और दृश्यत्व को एक साथ उद्घाटित कर सकें। वस्तु, नेता और रस के पिटे-पिटाए प्रतिमानों से इसका सही और नया मूल्यांकन सम्भव नहीं है और न ही कथा-साहित्य के लिए निर्धारित लोकप्रिय सिद्धान्तों—कथावस्तु, च..
"इतना कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रथम बार इतनी विशाल पृष्ठ भूमि पर रखकर हिंदी के नाटक देखे और जाँचे गए हैं।मेरा विश्वास है कि इस पुस्तक से हिन्दी नाटकों के अध्ययन को बहुत बल मिलेगा और यह हिंदी-संसार के विद्यार्थियों के द्वारा आदर-सम्मान प्राप्त करेंगी। हिंदी में लोक-नाट्य की परम्परा बहुत पुरानी है।..
हिन्दी रंगमंच की परम्परा सन् 1880 में पारसी थिएटर के माध्यम से आरम्भ होकर 1930 में समाप्त मानी जाती है, लेकिन स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी नाटकों के इतिहास में रंगमंचीय नाटकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी नाटकों का आधुनिक दृष्टि से मूल्यांकन करने के लिए भाव-बोध और शिल्पबोध, इन दोनों..
हमारी परम्परा में यह माना गया है कि गद्य कवियों का निकष होता है। यह निरा संयोग नहीं है कि प्राय: सभी भारतीय भाषाओं में महत्त्वपूर्ण कवियों ने अच्छा, सरस और रोशनी देनेवाला गद्य लिखा है। हम इस पुस्तक माला में ऐसा कवि-गद्य प्रस्तुत करने के लिए सचेष्ट हैं। शंख घोष न सिर्फ़ इस समय बाङ्ला के सबसे बड़े कवि..
यह किताब सिनेमा के एक सहयोगी पेशेवर के रूप में फ़िल्म-लेखक के कामकाज का सिलसिलेवार वृत्तान्त प्रस्तुत करती है। फ़िल्म का अपना तौर-तरीक़ा है, जिसके दायरे में रहकर ही फ़िल्म-लेखक को काम करना पड़ता है। इसलिए एक हद तक अपनी स्वायत भूमिका रखने के बावजूद उसको अपना काम करते हुए निर्माता, निर्देशक, अभिनेत..