वर्तमान युग में हर व्यक्ति को जीवन के विभिन्न स्तरों पर अनेक प्रतियोगिताओं से गुजरना पड़ता है । राज्य स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर विभिन्न महत्त्वपूर्ण संस्थानों के महत्त्वपूर्ण पदों के लिए ली जानेवाली प्रतियोगी परीक्षाओं में अन्य विषयों के साथ- साथ हिंदी भाषा और साहित्य से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्..
1857 आधुनिक भारतीय इतिहास की ऐसी परिघटना है जिस पर सैकड़ों पुस्तकें लिखी गई हैं। इसके बावजूद इतिहास, कला और साहित्य के क्षेत्र में पिछले 150 वर्षों के अनुसंधानों पर आधारित नवोन्मेषकारी विवेचनाओं और उद्भावनाओं से हिन्दी-उर्दू भाषी समुदाय की चेतना में मंथन उत्पन्न करनेवाली पुस्तक का नितान्त अभाव है। इस..
आधुनिक युग इतनी तेजी से बदल रहा है कि साहित्य के बदलाव से भी उसे समझा जा सकता है। इस बदलाव को, क्षिप्रतर बदलाव को साहित्य और इतिहास दोनों के संदर्भों में एक साथ पकड़ना ही इतिहास है। यह पकड़ तब तक विश्वसनीय नहीं हो सकती जब तक समसामयिक अखबारी साहित्य को श्रेष्ठ भविष्योन्मुखी साहित्य से अलगाया न जाय। प्र..
‘आधुनिक साहित्य’ आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी के निबन्धों का संग्रह है। इसमें सम्मिलित निबन्धों में सन् 1930 से 1942 तक की कालावधि के हिन्दी साहित्य की मुख्य कृतियों और प्रवृत्तियों का विवेचन किया गया है। कुछ अन्य प्रासंगिक निबन्ध भी इसमें जोड़ दिए गए हैं, जो विषय पर भिन्न दिशा और भूमि से प्रकाश डा..
रचना और आलोचना की सतत् विकासमान प्रक्रिया युग-सापेक्ष सही मूल्यों का निर्धारण करती है तथा उन सार्थक प्रतिमानों का निर्माण करती चलती है जो साहित्य के मूल्यांकन को दिशा और गति देते हैं। इस दृष्टि से देखें तो डॉ. निर्मला जैन की यह पुस्तक अपना विशेष महत्त्व रखती है। इसमें 'मूल्य' और 'मूल्यांकन' के ही बि..
डॉ. नामवर सिंह हिन्दी आलोचना की वाचिक परम्परा के आचार्य कहे जाते थे। जैसे बाबा नागार्जुन घूम-घूमकर किसानों और मज़दूरों की सभाओं से लेकर छात्र-नौजवानों, बुद्धिजीवियों और विद्वानों तक की गोष्ठियों में अपनी कविताएँ बेहिचक सुनाकर जनतांत्रिक संवेदना जगाने का काम करते रहे, वैसे ही नामवर जी घूम-घूमकर वैचार..
आधुनिकता की दृष्टि से हिन्दी कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक की यह शायद पहली पहचान है। क्या इसकी परख हो भी सकती है या नहीं? इस सवाल को जगह-जगह उठाया गया है। आधुनिकता का बोध क्या है, इसे अनेक दृष्टियों से पहचानने की कोशिश की गई है। क्या इसे देश की कसौटी पर परखना संगत है या काल की कसौटी पर या देश-काल दो..
आदिवासी साहित्य यात्रा के विभिन्न पड़ावों को विभिन्न लेखकों-विशेषज्ञों ने अपने-अपने ढंग से लिखे लेखों में व्यक्त किया है, जो इस पुस्तक में संगृहीत हैं। उन्हीं की भाषा-बोली में व्यक्त आदिवासियों की ज़िन्दगी और उनकी चेतना का सटीक और सही चित्रण करनेवाली इस पुस्तक का सम्पादन रमणिका गुप्ता ने किया है। सदिय..
प्रोफ़ेसर कृष्णमुरारि मिश्र आधुनिक हिन्दी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। हिन्दी में आद्यबिम्बात्मक आलोचना के प्रवर्तन का श्रेय उन्हें प्राप्त है। साहित्यिक कृतियों की संरचनात्मक गहनताओं की व्याख्या और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिए उन्हें विशेष ख्याति मिली है। ‘आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन’ शीर्षक उनका प..
लोक अपनी नैसर्गिक स्थितियों में स्वयं प्रकृति का पर्याय है। लोक दृष्टि का विकास प्रकृति के सहजात संस्कारों का परिणाम ही है। लोक और प्रकृति के अंर्तसंबंधों के संदर्भ में विकसित हमारे जीवन के अनेक सांस्कृतिक आयामों में प्रकृति और मनुष्य के बीच जो अभेद दृष्टि है, वह मानती है कि जैसे मनुष्य रक्षणीय है..
विविध भाषा-साहित्यों के देश भारत में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकारों के व्यक्तित्व, कृतित्व तथा परिवेश का रोचक, ज्ञानवर्धक परिचय-सुदूर दक्षिण के यशस्वी हिन्दी-सेवी तथा अध्यापक डॉ. आरसू के श्रम और कलम से।..