‘भारत का राष्ट्रीय पक्षी और राज्यों के राज्य पक्षी’ एक अनूठी पुस्तक है। इसका उद्देश्य है पाठकों को अपने पर्यावरण के प्रति सचेत व सहृदय बनाना।पिछली अनेक शताब्दियों से विश्व स्तर पर वन-सम्पदा तेजी से नष्ट हो रही है। बीसवीं शताब्दी आते-आते अनेक जीव-जन्तु तथा वृक्ष धरती से समाप्त हो गए। पर्यावरणविदों..
‘भारत का राष्ट्रीय पशु और राज्यों के राज्य पशु’ एक उपयोगी पुस्तक है। इसका उद्देश्य है पाठकों को अपने पर्यावरण के प्रति सचेत व सहृदय बनाना।किसी पशु को राष्ट्रीय पशु या राज्य पशु घोषित करने से भले ही वन्यजीवों पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव पड़े न पड़े लेकिन देश के नागरिकों में प्रकृति, पर्यावरण तथा जीव-जन..
‘भारत का राष्ट्रीय पुष्प और राज्यों के राज्य पुष्प’ एक अनूठी पुस्तक है। इसका उद्देश्य है पाठकों को अपने पर्यावरण के प्रति सचेत व सहृदय बनाना।इस पुस्तक में भारत के राष्ट्रीय पुष्प सहित 22 राज्यों के राज्य पुष्पों का परिचय दिया गया है। शेष राज्यों और सभी केन्द्रशासित प्रदेशों ने अभी तक अपने राज्य पु..
‘भारत का राष्ट्रीय वृक्ष और राज्यों के राज्य वृक्ष’ एक अनूठी पुस्तक है। इसका उद्देश्य है पाठकों को अपने पर्यावरण के प्रति सचेत व सहृदय बनाना।इस पुस्तक में भारत के राष्ट्रीय वृक्ष सहित 25 राज्यों और 2 केन्द्रशासित प्रदेशों के राज्य वृक्षों का परिचय दिया गया है। छत्तीसगढ़, दिल्ली, गुजरात और मध्य प्र..
भारत अत्यन्त विशाल देश है और इसके प्रदेश आर्थिक विकास तथा उसके कारकों की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत भिन्न हैं। प्रत्येक प्रदेश की विकास योजनाओं को उसकी पृष्ठभूमि और परिप्रेक्ष्य में ही परखा जाना चाहिए। यह पुस्तक उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और केरल के आर्थिक अध्ययन इस दृष्टि से प्रस्तुत करती है कि अन्..
राजयोग-विद्या इस सत्य को प्राप्त करने के लिए, मानव के समक्ष यथार्थ, व्यावहारिक और साधनोपयोगी वैज्ञानिक प्रणाली रखने का प्रस्ताव करती है। पहले तो प्रत्येक विद्या के अनुसंधान और साधन की प्रणाली पृथक्-पृथक् है। यदि तुम खगोलशास्त्री होने की इच्छा करो और बैठे-बैठे केवल ‘खगोलशास्त्र खगोलशास्त्र’ कहकर चिल्..
संस्कृत वाङ्मय में सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से ही हुई है। यह लोकप्रसिद्ध है। इस जगत् के पितामह ब्रह्मा हैं और उन्होंने यज्ञ साधना के निमित्त अपने चारों मुखों से चारों वेदों का सृजन किया। इससे यह प्रमाणित होता है कि वेद यज्ञ के लिए हैं। वे यज्ञकाल के आश्रय होते हैं। उस काल की सि..
राजयोग मूलतः मन के निरोध की साधना है।...मन ही मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण है। जो मन विषयों में आसक्त हो, वह बंधन का और जो विषयों से पराङ्मुख हो, वह मोक्ष का कारण होता है। मन और प्राण का पारस्परिक अटूट संबंध है। मन के निरोध से प्राण स्पंद रुक जाता है और प्राण स्पंद की शिथिलता मन को एकाग्र बना द..