छत्तीसगढ़ मुक्तिबोध की परिपक्व सर्जनात्मकता का अन्तरंग है। सिर्फ़ इस अर्थ में नहीं कि यहाँ आकर उन्हें रचने और जीने की अपेक्षाकृत शान्त अवकाश मिला, बल्कि इस गहरे अर्थ में कि यहाँ आकर उन्हें आत्मसंघर्ष की वह दिशा मिली, जिस पर चलकर वे अपनी रचना में उन लोगों के संघर्ष का भी सृजनात्मक आत्मसातीकरण सम्भव क..
कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी लगभग चार दशकों से नई कविता की अपनी बृहत्त्रयी अज्ञेय-शमशेर बहादुर सिंह-गजानन माधव मुक्तिबोध के बारे में विस्तार से गुनते-लिखते रहे हैं। उन्हें लगता रहा है कि हमारे समय की कविता के ये तीन दरवाज़े हैं जिनसे गुज़रने से आत्म, समय, समाज, भाषा आदि के तीन परस्पर जुड़े फिर भी स्वतंत्र ..
कभी-कभी विद्रोही स्वयं विद्रोह का प्रतीक बन जाया करता है, तब दोनों की प्रकृति समझने में कई असुविधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। मुक्तिबोध विद्रोही से ज़्यादा तो काव्य-विद्रोह हो गए थे, इसलिए बहुत कम यह जानने की चेष्टा की गई कि मुक्तिबोध एक व्यक्ति भी हैं, और ऐसा व्यक्ति हमसे यह अपेक्षा करता है कि हम उसकी ..
हिन्दी कविता की शीर्षक लेखनी—मुक्तिबोध। आत्मसमीक्षा और जगत-विवेचन के निष्ठुर प्रस्तावक।उन्होंने एक दुर्गम पथ की ओर संकेत किया, जिससे होकर हमें अनुभव और अभिव्यक्ति की सम्पूर्णता तक जाना था; क्या हम जा सके?हिन्दी की वरिष्ठतम उपस्थिति कृष्णा सोबती, जिनकी आँखों ने लगभग एक सदी का इतिहास साक्षात् देखा..
सुधी समीक्षक नंदकिशोर नवल की मुक्तिबोध पर लिखी गई यह पुस्तक दो खंडों में विभक्त है। पहले खंड में मुख्यतः उनके ‘ज्ञान’ का विश्लेषण है और दूसरे खंड में मुख्यतः उनकी ‘संवेदना’ का। लेकिन यह विभाजन केवल सुविधा की दृष्टि से है, नवल जी ने मुक्तिबोध को यथासम्भव अविभाज्य रूप में देखने और दिखाने की कोशिश की ह..
मुक्तिबोध प्रथमत: और अन्तत: कवि थे। जिस तरह उन्होंने अपने विचार को कविता में लाने के लिए आन्तरिक संघर्ष किया, उसी तरह अपने जीवनानुभूतियों को भी अपनी कला में रूपान्तरित किया। उनका व्यक्तित्व जिन तत्त्वों से निर्मित हुआ है, उनके सरलीकृत, वर्गीकृत और सुविधावादी विश्लेषण से हम सही निष्कर्षों तक नहीं पहु..
उत्तर नेहरू-युग में जैसे-जैसे भारतीय लोकतंत्र जनहितों से निरपेक्ष होता गया है, वैसे-वैसे साहित्य मुखर रूप से लोकतंत्र के भीतर काम कर रही जन-विरोधी शक्तियों के कठोर आलोचक के रूप में सामने आया है। इसी क्रम में मुक्तिबोध की रचनाएँ और विचार हिन्दी में केन्द्रीय होते गए हैं। पारम्परिक रसवादी और रोमैंटिक..
प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध को वर्तमान के आलोक में देखने परखने की एक कोशिश की गयी है। इसी क्रम में पुस्तक में मुक्तिबोध के लेखन के विविध पक्षों पर आलेख शामिल किये गये हैं। हर रचनाकार अपनी रचना में अपने समय और उसकी विडम्बनाओं को उकेरने की कोशिश करता है। इसका आशय यह भी होता है कि इन विडम्बनाओं को दू..
गजानन माधव मुक्तिबोध की जन्म-शती के दौरान उनके उद्धरणों का यह संचयन विशेष रूप से तैयार और प्रकाशित किया जा रहा है। छोटी कविताओं के समय में मुक्तिबोध लम्बी कविताएँ लिखने का जोखिम उठाते रहे और उनकी आलोचना और चिन्तन लीक से हटकर जटिल थे। इसने उन्हें एक कठिन लेखक के रूप में विख्यात कर दिया। उनके अत्यन्त ..
मुक्तिबोध के कला-सिद्धान्त कविता को एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं, उनकी कविताई इसका जागता जीता प्रमाण है। उनकी कविताई में भ्रमों से परिपूर्ण युगीन यथार्थ का जीवन-जाल तो मिलता है, पर उसकी बुनावट में रचनागत अर्थ का कोई भ्रम नहीं है।जो महानुभाव कविता को प्राय: एक कलात्मक या शिल्पात्मक प्..
आधुनिक हिन्दी काव्य-साहित्य के इतिहास में निराला के बाद मुक्तिबोध एक ऐसे कवि के रूप में सदैव याद किए जाएँगे जिनका जीवन ही उनकी कविता होती है। जिसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होता है।मुक्तिबोध के काव्य का निर्माण चेतना को झकझोर देनेवाले अन्तःसंघर्ष, उनके अभिशप्त युग तथा व्यक्तित्व के सन्धान स..
नई कविता अनेक प्रवृत्तियों का समुच्चय थी, उसकी रचना-प्रक्रिया जटिल थी, इसी कारण उसकी अर्थ-प्रक्रिया भी ‘काव्यार्थ’ भर नहीं रह गई। नई कविता की रचना- प्रक्रिया और अर्थ-प्रक्रिया जानने का मतलब हो गया—रचनाकार के युग, उसकी समीक्षा-समझ, विचारधाराओं, युगीन परिस्थितियों एवं भाषा-रूपों को समग्रता में जानना।
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