1965 भारत-पाक युद्ध की अनकही कहानी
1965 का युद्ध वर्ष 1947 में हुए विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला पूर्ण युद्ध था।
भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई.बी. चह्वाण ने 22 दिन तक चले इस युद्ध का विवरण स्वयं अपनी डायरी में दर्ज किया था। इस पुस्तक में बताई गई अंदरूनी बातों से पता चलता है—
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अरुंधति रॉय 2014 की सर्दियों में एडवर्ड स्नोडेन से मिलीं। उनके साथ में थे अभिनेता और लेखक जॉन क्यूज़ेक और डेनियल एल्सबर्ग, जिन्हें 60 के दशक का स्नोडेन कहा जाता है। उनकी बातचीत में शामिल थे हमारे वक्त के सभी बड़े विषय – राज्य की प्रकृति, एक बेमियादी जंग के दौर में खुफिया निगरानी, और देशभक्ति का मतलब..
यह पुस्तक भारतीय संविधान के ऐतिहासिक सच, तथ्य, कथ्य और यथार्थ की कौतूहलता का सजीव चित्रण करती है। संविधान की कल्पना, अवधारणा और उसका उलझा इतिहास इसमें समाहित है। घटनाएँ इतिहास नहीं होतीं, उसके नायक इतिहास बनाते हैं। 1920 से महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा का नेतृत्व किया। उन्होंने ही ..
यह रिपोर्ताज-संग्रह कोरोनानामा : बुजुर्गों की अनकही दास्तान वैश्विक महामारी कोविड-19 यानी कोरोना-काल में बुजुर्गों के प्रति सजगता को परिलक्षित करती हुई उनकी विशिष्ट भूमिकाओं की एक ग्राउंड रिपोर्ट है। इसमें पाठकों को इस सामाजिक आपातकाल में वृद्धजनों की सेवा, सहयोग और सम्मान के कुछ अप्रतिम उदाहरणों के..
यह पुस्तक कहने को तो एक सिविल सेवक का संस्मरण है, लेकिन जब पाठक इसमें प्रवेश करता है तो उसके समक्ष 20वीं शताब्दी की मध्यावधि, जो कि एक संक्रमणकाल है, के भारत और विशेष रूप से मध्य प्रदेश (सम्मिलित छत्तीसगढ़) के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक परिवेश का सजीव चित्र उभरता है। लेखक ने अपनी सिविल से..
हिंदी सिनेमा की अद्वितीय ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी ने सही मायने में एक सपना देखा और पूरा होने तक उसका पीछा किया। हेमा को उनकी पहली ही तमिल फिल्म में डायरेक्टर ने अचानक यह कहकर ड्रॉप कर दिया कि उनमें स्टार क्वालिटी नहीं है। फिर हेमा ने राज कपूर के साथ मिली अपनी पहली हिंदी फिल्म साइन की। उस वक्त महज अठार..
झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता और विवादास्पद शख्सियत के धनी जयपाल सिंह के बारे में आज तक कोई सर्वांगपूर्ण प्रामाणिक व तथ्यपरक पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई है। जयपाल सिंह ने हमेशा अपने जीवन को रहस्यमय बनाए रखा, उनके नजदीकी लोग भी उनके जीवन के कई पहलुओं के बारे में नहीं जानते थे। अब तो जयपाल सिंह का देहांत ..
ऋतु डॉक्टर नहीं बन पाई क्योंकि रिसर्च गाइड प्राध्यापक प्रवर पी.के. पांडेय की दृष्टि में ऋतु ने ईसुरी पर जो कुछ लिखा था, वह न शास्त्र-सम्मत था, न शोध-अनुसन्धान की ज़रूरतें पूरी करता था। वह शुद्ध बकवास था क्योंकि ‘लोक’ था।‘लोक’ में भी कोई एक गाइड नहीं होता। लोक उस बीहड़ जंगल की तरह होता है जहाँ अनेक ..
“मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि मरने के बाद मेरा नाम ही रह जाएगा। यह नाम भी कब तक रहता है, कुछ कहा नहीं जा सकता। और नाम का रहना या न रहना मेरे लिए महत्त्व का नहीं है। लेकिन अपना नाम सैकड़ों-हज़ारों वर्ष चले, इसकी अभिलाषा अपनी इस लापरवाही वाली अकड़ के बावजूद, मन के किसी कोने में जब-तब उचक-उचक पड़ती है।..
रत उत्सवों का देश है। किसी का जन्म हो तो उत्सव, जन्म के एक साल बाद फिर जन्मोत्सव। आजकल जन्मदिन मनाने का बड़ा चलन है। पहले दिन पाठशाला जाने पर कई परिवार अक्षरोत्सव मनाते हैं। वसंतोत्सव भी मनता है। होली, दीवाली, दशहरा की बात ही छोडि़ए। ये सारे तो बड़े-बड़े उत्सव हैं ही। इन वर्षों में इश्कोत्सव भी मनाय..
यह नियति ही हैजिसे भोगना हैसोचती हूँ हँसकर झेलूँपर जब भी ये सोचती हूँ रो पड़ती हूँभरे गले से तुम्हारा नाम लेना चाहती हूँतुम्हें कृतज्ञता के दो शब्द कहना चाहती हूँ। कितना तो हमें कहना-सुनना हैकह-सुन भी लेंगेइर्द-गिर्द के लोगों की दृष्टि में हम मौन हैंसिर्फ बरसों बाद मिले अपरिचितों..
शमशेर की कविता का स्थायी मूल्य है, स्वच्छ और निर्मल कविता की परख। इसी नाते शमशेर रूपवादी आलोचकों की तरह, परम्परावादी या यथास्थितिशील नहीं हैं। आधुनिक कविता की स्थायी मूल्यदृष्टि की खोज वह कवि के अनुभव और काव्य के उपकरणों की ज़रूरत के अनुसार करते हैं। इस कसौटी पर वे बड़े कड़े हैं। वे परम्परा की श्रेष्ठ..