‘आगे अन्धी गली है’ में विख्यात पत्राकार प्रभाष जोशी द्वारा ‘प्रथम प्रवक्ता’ और ‘तहलका’ में छपे कॉलम संकलित हैं।प्रभाष जोशी ने हिन्दी पत्रकारिता में कॉलम लेखन को एक नया रूप देने के साथ ही उसे विविधता भी प्रदान की। ‘जनसत्ता’ में लिखे उनके कॉलम ‘कागद कारे’ के समानान्तर ‘प्रथम प्रवक्ता’ का कॉलम ‘लाग ल..
साहित्य के हज़ारों साल लम्बे इतिहास में जिन चन्द काव्य-विभूतियों को विश्वव्यापी सम्मान प्राप्त है, ग़ालिब उन्हीं में से एक हैं। उर्दू के इस महान शायर ने अपनी युगीन पीड़ाओं को ज्ञान और बुद्धि के स्तर पर ले जाकर जिस ख़ूबसूरती से बयान किया, उससे समूची उर्दू शायरी ने एक नया अन्दाज़ पाया और वही लोगों के दिलो-..
‘‘यह मेरा पहला उपन्यास है। लिखा सन् 1956 में गया था, यह उसी समय पूरा का पूरा हंस में छपा था। फिर सन् 68-69 या शायद इसके बाद श्री प्रेम कपूर ने इस पर फ़िल्म बनाई ‘बदनाम बस्ती’। मेरे लिए यह उपन्यास उतना ही प्रिय है जितनी प्रिय मेरे लिए मेरी माँ और मेरी जन्मभूमि मैनपुरी। तब यह उपन्यास बदनाम बस्ती के ना..
कहा गया है कि अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो वह काश्मीर ही है और ‘ऐलान गली ज़िन्दा है’ उपन्यास इसी स्वर्ग के हाशिये पर दरिद्रता, अज्ञान और अभावों में पल रहे लोगों की संस्कृति और जीवन-संघर्षों को बहुत अन्तरंग विवरणों के साथ उजागर करता है। जहाँ आज धर्म, जाति और भाषा के नाम पर आदमी-आदमी के बीच दीवारें ..
‘गली आगे मुड़ती है’ उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी’ के लेखक के निजी जीवन का मोड़ था। शिवप्रसाद सिंह 1974 तक ‘ग्राम कथा’ और ‘वैतरणी’ जैसे विख्यात उपन्यासों के लेखक के रूप में अपना एक अलग स्थान बना चुके थे। वे पुराने लोकेशन (परिवेश) को कभी दुहराते नहीं। इसलिए ‘गली’ में वे काशी जैसे विरले नगर की अनेकानेक छवियों..
गालिसिया की कथाएँ स्ताशुक की प्रसिद्ध किताब है जिसका फ़िल्मीकरण भी हो चुका है। इस रचना की कहानी सरहदी, पिछड़े, देहाती इलाक़े में स्थित है, जहाँ लौकिक और अलौकिक दुनियाएँ एक-दूसरे में समाती प्रतीत होती हैं।अंजेय स्ताशुक की कथा-शैली अत्यन्त चित्रात्मक और भावप्रवण है। विचित्र तथा आश्चर्यजनक हवालों से व..
नासिरा शर्मा के उपन्यासों एवं कहानियों में बच्चों के चरित्र एक विशेष भूमिका के रूप में नज़र आते हैं, जो कभी आपकी उँगली पकड़कर तो कभी आप उनकी उँगली पकड़कर चलने लगते हैं और आप खुद से सवाल करने पर मजबूर हो जाते हैं कि इन बच्चों की दयनीय स्थिति का ज़िम्मेदार कौन है— परिस्थितियाँ, समाज या व्यवस्था या आप खु..
यह आत्मकथा एक मध्य-मध्यम वर्गीय परिवार के साधारण से बालक के जीवन का दस्तावेज है, जो पारिवारिक पृष्ठभूमि, आस-पास की दुनिया उसके परिवेश से—जीवन में— ‘कुछ’ बनने के लिए प्रोत्साहित होता है। और इस ‘कुछ’ बनने की प्रक्रिया में और उसकी इस यात्रा में परंपराएँ, वर्तमान परिवेश, भविष्य की आकांक्षाएँ उसे प्रोत्स..
“चाहत! चाहत का मतलब समझते हैं आप लोग? एक इनसान को दो वक़्त का खाना देने से ही क्या चाहत होती है? सिर छुपाने के लिए थोड़ी-सी जगह दे देने से ही क्या कर्तव्य ख़त्म हो जाता है? ब्याह कर भाइयों के पास बीवी को छोड़ जाने से ही क्या शौहर के सब दायित्वों का निर्वाह हो जाता है?...दिन-पर-दिन उसके भाई मुझ पर हाथ ..
‘ख़बरों की जुगाली’ विख्यात रचनाकार श्रीलाल शुक्ल के लेखन का नया आयाम है। यह न केवल व्यंग्य लेखन के नज़रिए से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि समाज में चतुर्दिक व्याप्त विद्रूपों के उद्घाटन की दृष्टि से भी बेमिसाल है। साठ के दशक में श्रीलाल शुक्ल ने अपनी कालजयी कृति ‘राग दरबारी’ में जिस समाज के पतन को शब्दबद्ध..
कुंज़गली’ उपन्यास सूरजभान से शुरू होता है और उसके ममेरे बडे भाई बृजभान की पत्नी कल्याणी के प्रेम से गुज़रता हुआ सूरजभान के शवदाह पर ख़त्म। 'मणिकर्णिका’ जीवन की अन्तिम मंज़िल है और ‘कुँज़गली’ की भी। कहानी इन्हीं दोनों परिवारों के बीच बहती है, चलती नहीं। उसमें वेग है, प्रवाह है, धारा है। धारा में उतरिए ..