सन् 1962 के युद्ध के पाँच दशक बाद भी भारत और चीन के संबंध असहज बने हुए हैं। राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों के बढ़ने के बावजूद दोनों देशों के बीच अविश्वास बना हुआ है। बाहरी तौर पर दोनों देशों के नेता संबंध मजबूत करने की प्रतिबद्धता जाहिर करने में कभी नहीं चूकते, लेकिन दोनों ही जानते हैं कि उन..
भारतीय भाषाओं का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है। आर्य, द्रविड़, कोल और नाग—भारत के इन चारों मुख्य भाषा-परिवारों में कई ऐसी भाषाएँ हैं जिन पर बहुत कम बातचीत हुई है, जबकि आधुनिक भारतीय भाषाओं के आपसी सम्बन्धों को जानने के लिए यह कार्य अत्यावश्यक है। दूसरे शब्दों में—आर्य, द्रविड़, कोल और नाग भाषा-परिवारों ..
कवि ऋतुराज की यह प्रवास डायरी गद्य का नया आस्वाद देती है। परदेस में बैठे कवि को आती घर की याद और चीन में लगातार बदल रहा परिदृश्य इस डायरी के गद्य को द्वंद्वात्मक बनाते हैं। यहाँ चीन के जीवन की आत्मीय छवियाँ हैं तो विकास की दौड़ में भाग रहे युवाओं के दृश्य डायरी को तार्किक बना देते हैं। अपने प्रवाही ..
‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ ग्रन्थमाला की यह दूसरी पुस्तक है जिसमें विश्व की एक प्राचीनतम दार्शनिक धारा का परिचय प्रस्तुत किया गया है।चीन में दर्शन की परम्परा यों तो बहुत पुरानी है, लेकिन ईसा-पूर्व की पाँचवीं से तीसरी शताब्दी का काल दार्शनिक चिन्तन की दृष्टि से समृद्धि का काल माना जाता है। कन..
‘प्राचीन अयोध्या का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन’, शोध-प्रबन्ध के दस अध्यायों में अयोध्या की उन राजनैतिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों की पौर प्रभा उकेरी गई है, जो उसे इतिहास में शतियों से अमर बनाई हुई है।अयोध्या से प्राप्त सिक्के, शिलालेख, मृद्भांड, पाषाण शिल्प, ताम्रफलकाभिलेख और स्मारक हमें जहाँ अत..
राधाकुमुद मुखर्जी ने भारतीय इतिहास के अनेक पक्षों पर अपनी लेखनी चलाई है, लेकिन ख़ास तौर से प्राचीन संस्कृति, प्राचीन कला और धर्म तथा राजनीतिक विचार उनके अध्ययन और लेखन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. मुखर्जी ने प्राचीन भारतीय इतिहास का परिचय सरल-सुबोध शैली में दिया है। प्र..
परम्परागत इतिहास लेखन राजनीतिक उथल-पुथल तक ही सीमित था। परन्तु पिछले कुछ दशकों से अतीत के समाज में झाँकने की कोशिशें तेज़ हुई हैं। राजा-महाराजाओं की जगह वंचितजनों को केन्द्र में रखकर इतिहास लिखने के जो प्रयत्न इधर हो रहे हैं, उनमें ओम् प्रकाश प्रसाद का योगदान भी उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में उन्होंने ..
“भारतवर्ष में एक समय ऐसा बीता है जब इस देश के निवासियों के प्रत्येक कण में जीवन था, पौरुष था, कौलीन्य गर्व था और सुन्दर के रक्षण-पोषण और सम्मान का सामर्थ्य था। उस समय के काव्य-नाटक, आख्यान, आख्यायिका, चित्र, मूर्ति, प्रासाद आदि को देखने से आज का अभागा भारतीय केवल विस्मय-विमुग्ध होकर देखता रह जाता है..
पाश्चात्य देशों के वैज्ञानिकों के बारे में अंग्रेज़ी तथा भारतीय भाषाओं में काफ़ी साहित्य उपलब्ध है। इन वैज्ञानिकों के बारे में स्कूल-कॉलेजों के अध्यापकों से भी विद्यार्थियों को थोड़ी-बहुत जानकारी मिल ही जाती है, पर खेद की बात है कि अपने देश के चरक, सुश्रुत, आर्यभट तथा भास्कराचार्य जैसे चोटी के वैज्ञा..
प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के वैज्ञानिक व्याख्याकार दामोदर धर्मानंद कोसंबी का नाम इतिहास के विद्यार्थियों के लिए सुपरिचित है। प्रो. कोसंबी पेशे से गणितज्ञ थे और लम्बे अरसे तक बम्बई के 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च' में गणित के प्रोफ़ेसर रहे। इतिहास में कई ग्रन्थों का प्रणयन करने के..
प्राचीन भारतीय इतिहास के अन्यतम विद्वान प्रो. रामशरण शर्मा ने अपनी प्रस्तुत पुस्तक में वैदिक और वैदिकोत्तर काल के भौतिक जीवन के विविध रूपों और समाज की विभिन्न अवस्थाओं के आपसी सम्बन्धों के स्वरूप का अध्ययन किया है। उनका मानना है कि वैदिक युग के मध्यभाग में जिस समाज का स्थान-स्थान पर उल्लेख मिलता है,..