चरक के संहिता काल में कैंसर की ग्रन्थि और अर्बुद रूप में लक्षणों के आधार पर अवधारणा, पहचान और उपचार और सुश्रुत की शल्य चिकित्सा में आज आयुर्वेद में भी काफ़ी परिवर्तन आया है, विकास हुआ है। आधुनिक चिकित्सा में कैंसर के निदान और उपचार के साधनों का व्यापक विस्तार हुआ है। देश में कैंसर जानलेवा रोगों में ..
"पाँच पिया स्वीकारे क्यूँ थे।
खुद ही भाग बिगाड़े क्यूँ थे। काश विशेधी हो जाती मैं।
थोड़ा क्रोधी हो जाती मैं। काश न मेरे हिस्से होते।
शुरू नहीं फिर किस्से होते। काश वर्ण को वर लेती मैं।
वाणी वश में कर लेती मैं। कर्ण अगर ना होता शायद।
तो संग्राम न होता शायद। दुःशासन मतिमंद न होता।
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लोग कहते हैं कि कल्पना का कोई विवेक नहीं होता, वह विवेक के सहारे नहीं चलती है। मन और मस्तिष्क अकसर अलग-अलग दिशाओं में चलते दिखाई देते हैं, कम-से-कम माना तो यही जाता है। लेकिन मुझे तो ऐसा लगा कि जब भी मस्तिष्क ने कल्पना को रोका-टोका तो उसे सही दिशा में मोड़ने के लिए ही, वह ऐसा न करता तो शायद मन कहीं ..