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जीवनी - Vyatha Kahe Panchali (Hindi)

जीवनी - Vyatha Kahe Panchali (Hindi)
"पाँच पिया स्वीकारे क्यूँ थे।  खुद ही भाग बिगाड़े क्यूँ थे। काश विशेधी हो जाती मैं।  थोड़ा क्रोधी हो जाती मैं। काश न मेरे हिस्से होते।  शुरू नहीं फिर किस्से होते। काश वर्ण को वर लेती मैं।  वाणी वश में कर लेती मैं। कर्ण अगर ना होता शायद।  तो संग्राम न होता शायद। दुःशासन मतिमंद न होता।  रिश्तों में फिर द्वंद न होता। जो दुर्योधन क्रुद्ध न होता।  तो शायद ये युद्ध न होत। यूँ ना काश विभाजन होता।  अर्जुन ही बस साजन होता। खुले अगर ये बाल न होते। श्वेत्‌ पृष्ठ फिर लाल न होतेयदि मेरा अपमान न होता।  गिद्धों का जलपान न होता। मौन अगर गुरुदेव न होते।  रण आँगन में प्राण न खोते। काश सत्य का साथ निभाते।  और बड़े भी कुछ कह पाते। सत्य यही जो समर न होता।  कुरुक्षेत्र फिर अमर न होता। नारी का अपमान न होता।  कुरुक्षेत्र शमशान न होता। 

जीवनी - Vyatha Kahe Panchali (Hindi)

Vyatha Kahe Panchali (Hindi) - by - Prabhat Prakashan

Vyatha Kahe Panchali (Hindi) -

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  • Stock: 10
  • Model: PP1299
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP1299
  • ISBN: 9789390923045
  • ISBN: 9789390923045
  • Total Pages: 648
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Soft Cover
  • Year: 2022
₹ 1,200.00
Ex Tax: ₹ 1,200.00