Menu
Your Cart

राजनीति : सामाजिक - Shakti Ki Manyata

राजनीति : सामाजिक - Shakti Ki Manyata
विश्व शांति का अनुरक्षण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सर्वाधिक शक्तिशाली निकाय ‘सुरक्षा परिषद्’ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपनी स्थापना के काल से कभी बाहर नहीं निकल पाया। इस युद्ध के विजेता अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ने अपनी स्थायी सदस्यता और वीटो की शक्ति के साथ इस पर नियंत्रण बनाए रखा। उनके पारस्परिक टकरावों ने शीत युद्ध के दौरान परिषद् को निर्बल बना दिया तथा उसके उपरांत उनके सहयोग से विवादास्पद सैन्य काररवाइयों को अंजाम दिया गया। यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग के मूल को तलाशती है तथा अंतरराष्ट्रीय कानून में सुरक्षा परिषद् की शक्तियों की आधारशिला की संवीक्षा करती है। यह स्थायी पाँच देशों द्वारा अपनी वैश्विक प्रधानता को सकारात्मक रूप से सुदृढ़ बनाने और शक्ति के उनके प्रयोग को वैध बनाने के लिए परिषद् का इच्छानुसार प्रयोग करने की समालोचना करती है। इराक, यूगोस्लाविया और लीबिया जैसे देशों में उनके द्वारा लागू सिद्धांतों और काररवाइयों ने एक उत्तरदायी निकाय के रूप में परिषद् के विकास को बाधित किया, जो एक वैश्वीकृत विश्व का भरोसा अर्जित कर सकती थी।  यह पुस्तक वृत्तिकों और शोधार्थियों के लिए पठनीय है, ताकि वे सुरक्षा परिषद् और उसमें सुधार करने की उसकी विफलता को भलीभाँति जान सकें।अनुक्रमसंक्षिप्ताक्षरों की सूची —Pgs. 7प्रस्तावना —Pgs. 91. सामूहिक सुरक्षा —Pgs. 212. अंतरराष्ट्रीय संगठनों का उदय —Pgs. 403. संयुक्त राष्ट्र का मंतव्य —Pgs. 564. सैन फ्रांसिस्को सम्मेलन : संयुक्त राष्ट्र चार्टर —Pgs. 695. उद्घाटक का सौभाग्य : प्रारंभिक सफलताएँ —Pgs. 906. विभक्त राष्ट्र —Pgs. 987. छद्म प्रारंभ : कोरिया प्रकरण —Pgs. 1268. नवाचारी समझौता : शांति कायम रखने का अभियान —Pgs. 1489. शीत युद्ध के बाद सैन्य कार्रवाई —Pgs. 16510. प्रतिबंध —Pgs. 19211. नए जनादेश —Pgs. 20112. सैन्य कार्रवाई की चार्टर-संगतता —Pgs. 23213. सुरक्षा परिषद् और अंतरराष्ट्रीय कानून —Pgs. 25514. स्थायी पाँच देशों का अस्थायित्व —Pgs. 27515. युद्ध, जिन पर सुरक्षा परिषद् कार्रवाई न कर सका —Pgs. 29516. सुरक्षा परिषद् के सुधार —Pgs. 315निष्कर्ष —Pgs. 334संयुक्त राष्ट्र के महासचिव —Pgs. 343संदर्भ-ग्रंथ-सूची —Pgs. 345संदर्भिका —Pgs. 357 

राजनीति : सामाजिक - Shakti Ki Manyata

Shakti Ki Manyata - by - Prabhat Prakashan

Shakti Ki Manyata - विश्व शांति का अनुरक्षण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का सर्वाधिक शक्तिशाली निकाय ‘सुरक्षा परिषद्’ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अपनी स्थापना के काल से कभी बाहर नहीं निकल पाया। इस युद्ध के विजेता अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ने अपनी स्थायी सदस्यता और वीटो की शक्ति के साथ इस पर नियंत्रण बनाए रखा। उनके पारस्परिक टकरावों ने शीत युद्ध के दौरान परिषद् को निर्बल बना दिया तथा उसके उपरांत उनके सहयोग से विवादास्पद सैन्य काररवाइयों को अंजाम दिया गया। यह पुस्तक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग के मूल को तलाशती है तथा अंतरराष्ट्रीय कानून में सुरक्षा परिषद् की शक्तियों की आधारशिला की संवीक्षा करती है। यह स्थायी पाँच देशों द्वारा अपनी वैश्विक प्रधानता को सकारात्मक रूप से सुदृढ़ बनाने और शक्ति के उनके प्रयोग को वैध बनाने के लिए परिषद् का इच्छानुसार प्रयोग करने की समालोचना करती है। इराक, यूगोस्लाविया और लीबिया जैसे देशों में उनके द्वारा लागू सिद्धांतों और काररवाइयों ने एक उत्तरदायी निकाय के रूप में परिषद् के विकास को बाधित किया, जो एक वैश्वीकृत विश्व का भरोसा अर्जित कर सकती थी।  यह पुस्तक वृत्तिकों और शोधार्थियों के लिए पठनीय है, ताकि वे सुरक्षा परिषद् और उसमें सुधार करने की उसकी विफलता को भलीभाँति जान सकें।अनुक्रमसंक्षिप्ताक्षरों की सूची —Pgs.

Write a review

Please login or register to review
  • Stock: 10
  • Model: PP2129
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2129
  • ISBN: 9789353226855
  • ISBN: 9789353226855
  • Total Pages: 368
  • Edition: Edition 1
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2019
₹ 900.00
Ex Tax: ₹ 900.00