Menu
Your Cart

राजनीति : सामाजिक - Patrakarita Bihar Se Jharkhand

राजनीति : सामाजिक - Patrakarita Bihar Se Jharkhand
झारखंड में सब कुछ है। यहाँ कुछ भी नहीं है। सरकार है। प्रशासन है। नेता है। पुलिस है। वायदे हैं। भाषण है। योजना है। घोटाला है। संघर्ष है। जीवन है। जल है। जमीन है। आदिवासी है। तमाशा है। लूट है। भ्रष्टाचार है। अखबार है। समाचार है। अदालत है। वकील है। न्याय है। अन्याय है। भूख है। गरीबी है। फटे हालजी है। कंगाली है। यहाँ तो रोटी पर नून नहीं है। खनिज है। संपदा है। बेरोजगारी है। मजदूर है। किसान है। गाँव है। खेत है। खलिहान है। सब उजड़ रहे हैं। जमीन छिन रही है। संघर्ष जारी है। पत्रकारिता के अखबारी दुनिया से अलग झारखंड संक्रमण के दौर में है। पत्रकारिता भी इसका शिकार है। इसलिए बिना अक्षरों का मुखौटा लगाए सच बयान करने का साहस कर रहा हूँ। पत्रकारिता तथा उसके सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन पर पड़ रहे प्रभाव का विश्लेषण किया गया है,  जो सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए रुचिकर है।अनुक्रममेरी बात — Pgs. 71. बिहार टू झारखंड — Pgs. 112. झारखंड की पत्रकारिता — Pgs. 183. मीडिया से बेदखल आदिवासी — Pgs. 234. जनसंघर्ष और मीडिया — Pgs. 295. पत्रकारिता व जनजाति — Pgs. 346. सांप्रदायिकता और अखबार — Pgs. 387. अखबार में घोटाला — Pgs. 428. न्यूज चैनलों का सफर — Pgs. 479. मीडिया का बाजारीकरण — Pgs. 5210. यहाँ शगुन प्रथा नहीं — Pgs. 5711. ग्रामीण पत्रकारिता का है भविष्य — Pgs. 6212. पैकेजिंग की पत्रकारिता — Pgs. 6613. पत्रकारिता अब समाज का दर्पण नहीं — Pgs. 7114. निराशावाद की बैचेनी — Pgs. 7415. पत्रकारिता जनता का हथियार — Pgs. 8516. सब मुनाफे का धंधा — Pgs. 8917. खतरनाक है सपनों का मरना — Pgs. 9318. मौकाटेरियन पत्रकारिता — Pgs. 9719. मीडिया में माओवाद — Pgs. 10420. मीडिया की नीलामी — Pgs. 10921. कस्बाई पत्रकारिता का सच — Pgs. 114 

राजनीति : सामाजिक - Patrakarita Bihar Se Jharkhand

Patrakarita Bihar Se Jharkhand - by - Prabhat Prakashan

Patrakarita Bihar Se Jharkhand - झारखंड में सब कुछ है। यहाँ कुछ भी नहीं है। सरकार है। प्रशासन है। नेता है। पुलिस है। वायदे हैं। भाषण है। योजना है। घोटाला है। संघर्ष है। जीवन है। जल है। जमीन है। आदिवासी है। तमाशा है। लूट है। भ्रष्टाचार है। अखबार है। समाचार है। अदालत है। वकील है। न्याय है। अन्याय है। भूख है। गरीबी है। फटे हालजी है। कंगाली है। यहाँ तो रोटी पर नून नहीं है। खनिज है। संपदा है। बेरोजगारी है। मजदूर है। किसान है। गाँव है। खेत है। खलिहान है। सब उजड़ रहे हैं। जमीन छिन रही है। संघर्ष जारी है। पत्रकारिता के अखबारी दुनिया से अलग झारखंड संक्रमण के दौर में है। पत्रकारिता भी इसका शिकार है। इसलिए बिना अक्षरों का मुखौटा लगाए सच बयान करने का साहस कर रहा हूँ। पत्रकारिता तथा उसके सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन पर पड़ रहे प्रभाव का विश्लेषण किया गया है,  जो सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए रुचिकर है।अनुक्रममेरी बात — Pgs.

Write a review

Please login or register to review
  • Stock: 10
  • Model: PP2268
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP2268
  • ISBN: 9789386001009
  • ISBN: 9789386001009
  • Total Pages: 120
  • Edition: Edition 1 st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2018
₹ 300.00
Ex Tax: ₹ 300.00