राजनीति : सामाजिक - Chhuachhoot Mukta Samras Bharat
भारत प्राचीन काल में विश्वगुरु रहा है, क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने विश्व कल्याण हेतु ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उद्घोष किया। किंतु लंबे समय तक भारत विदेशी आक्रांताओं द्वारा शोषित और शासित रहा। इसी कालखंड में उन्होंने भारत की शिक्षा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। जो जाति व्यवस्था कर्म आधारित थी, वह धीरे-धीरे जन्म आधारित हो गई। कुछ जातियों को अमानवीय स्थिति में डालकर अस्पृश्य घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के बाद कानून बनाकर अस्पृश्यता, यानी छुआछूत को दंडनीय अपराध घोषित किया गया, तो कुछ राहत मिली। इसके पूर्व भी हमारे संतों व समाज-सुधारकों ने इस जाति-पाँति आधारित भेदभाव का खंडन और विरोध किया था।
आधुनिक संदर्भ में जाति-पाँति, रंग, भाषा, क्षेत्र, लिंग आदि पर आधारित सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त कर एक समरस समाज के निर्माण की नितांत आवश्यकता है। सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी समतामूलक समरस समाज ही स्वस्थ और सुखी समाज हो सकता है। सशक्त व अखंड राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता अनिवार्य है। चूँकि सबके साथ से ही सबका विकास एवं सबका विश्वास संभव है। देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आरंभ से ही इस चुनौती को स्वीकार कर समरस व जातिविहीन समाज के निर्माण का संकल्प लिया था। समरसता हेतु चल रहे इस महायज्ञ में एक आहुति के रूप में यह पुस्तक ‘छुआछूत मुक्त समरस भारत’ प्रस्तुत है।
• जाति का सबसे बुरा पक्ष है कि वह प्रतियोगिता को दबाती है और वास्तव में प्रतियोगिता का अभाव ही राजनीतिक अवनति और विदेशी जातियों द्वारा उसके पराभूत होते रहने का कारण सिद्ध हुआ है।
—स्वामी विवेकानंद
• जाति जनम नहीं पूछिए, सच घर लेहु बताई।
सा जाति सा पाँति है, जैं हैं करम
कमाई॥
—गुरु नानकदेव
• सब मनुष्यों के अवयव समान होने से मनुष्यों में जाति-भेद नहीं किया जा सकता।
—गौतम बुद्ध
• अस्पृश्यता मानवता के माथे पर एक कलंक है।
—महात्मा गांधी
• जाति-भेद ने हिंदुओं का सर्वनाश किया। हिंदू समाज का पुनर्संगठन ऐसे धर्मतत्त्वों के आधार पर करना चाहिए, जिनका संबंध समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व से जुड़ सके।
—बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर
• अगर छुआछूत कलंक नहीं तो दुनिया में कुछ भी कलंक नहीं है; छुआछूत जब कलंक है तो इसे जड़मूल से नष्ट होना चाहिए।
—बालासाहबजी देवरस
• मुझे लगता है कि इस देश के अंदर मजबूती तभी आएगी, जब समरसता के वातावरण का निर्माण होगा। मात्र समता ही काफी नहीं है; समरसता के बिना समता असंभव है।
—नरेंद्र मोदीअनुक्रमभूमिका —Pgs. 51. सामाजिक समरसता : एक साक्षात्कार —Pgs. 172. समरसता : विविध आयाम —Pgs. 353. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सामाजिक समरसता —Pgs. 694. समरसता हमारी परंपरा —Pgs. 745. समरसता के भगवान् : गौतम बुद्ध —Pgs. 786. सद्गुरु कबीरदास —Pgs. 987. संत रैदास —Pgs. 1028. गुरु नानक देव —Pgs. 1089. गुरु गोरखनाथ —Pgs. 11210. श्री नारायण गुरु —Pgs. 11411. स्वामी दयानंद सरस्वती का सामाजिक समरसता में योगदान —Pgs. 12812. स्वामी विवेकानंद : समाज, धर्म, शिक्षा और जाति-व्यवस्था —Pgs. 13313. महात्मा ज्योतिराव फुले (1827-1890) और उनका सार्वजनिक सत्यधर्म —Pgs. 16314. बाबा साहब के सपनों का भारत : समरस भारत —Pgs. 174
राजनीति : सामाजिक - Chhuachhoot Mukta Samras Bharat
Chhuachhoot Mukta Samras Bharat - by - Prabhat Prakashan
Chhuachhoot Mukta Samras Bharat - भारत प्राचीन काल में विश्वगुरु रहा है, क्योंकि हमारे ऋषि-मुनियों ने विश्व कल्याण हेतु ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का उद्घोष किया। किंतु लंबे समय तक भारत विदेशी आक्रांताओं द्वारा शोषित और शासित रहा। इसी कालखंड में उन्होंने भारत की शिक्षा, संस्कृति, अर्थव्यवस्था एवं सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। जो जाति व्यवस्था कर्म आधारित थी, वह धीरे-धीरे जन्म आधारित हो गई। कुछ जातियों को अमानवीय स्थिति में डालकर अस्पृश्य घोषित कर दिया। स्वतंत्रता के बाद कानून बनाकर अस्पृश्यता, यानी छुआछूत को दंडनीय अपराध घोषित किया गया, तो कुछ राहत मिली। इसके पूर्व भी हमारे संतों व समाज-सुधारकों ने इस जाति-पाँति आधारित भेदभाव का खंडन और विरोध किया था। आधुनिक संदर्भ में जाति-पाँति, रंग, भाषा, क्षेत्र, लिंग आदि पर आधारित सभी प्रकार की विषमताओं को समाप्त कर एक समरस समाज के निर्माण की नितांत आवश्यकता है। सर्वस्पर्शी, सर्वसमावेशी समतामूलक समरस समाज ही स्वस्थ और सुखी समाज हो सकता है। सशक्त व अखंड राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता अनिवार्य है। चूँकि सबके साथ से ही सबका विकास एवं सबका विश्वास संभव है। देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आरंभ से ही इस चुनौती को स्वीकार कर समरस व जातिविहीन समाज के निर्माण का संकल्प लिया था। समरसता हेतु चल रहे इस महायज्ञ में एक आहुति के रूप में यह पुस्तक ‘छुआछूत मुक्त समरस भारत’ प्रस्तुत है। • जाति का सबसे बुरा पक्ष है कि वह प्रतियोगिता को दबाती है और वास्तव में प्रतियोगिता का अभाव ही राजनीतिक अवनति और विदेशी जातियों द्वारा उसके पराभूत होते रहने का कारण सिद्ध हुआ है। —स्वामी विवेकानंद • जाति जनम नहीं पूछिए, सच घर लेहु बताई। सा जाति सा पाँति है, जैं हैं करम कमाई॥ —गुरु नानकदेव • सब मनुष्यों के अवयव समान होने से मनुष्यों में जाति-भेद नहीं किया जा सकता। —गौतम बुद्ध • अस्पृश्यता मानवता के माथे पर एक कलंक है। —महात्मा गांधी • जाति-भेद ने हिंदुओं का सर्वनाश किया। हिंदू समाज का पुनर्संगठन ऐसे धर्मतत्त्वों के आधार पर करना चाहिए, जिनका संबंध समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व से जुड़ सके। —बाबासाहेब डॉ.
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- Model: PP2156
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP2156
- ISBN: 9789353226220
- ISBN: 9789353226220
- Total Pages: 184
- Edition: Edition 1
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2020
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00