राजनीति : सामाजिक - Aadiwasi Aur Vikas Ka Bhadralok
प्रभात खबर के अपने कॉलम ‘जंगल गाथा’ में हेरॉल्ड अपनी मृत्यु तक लिखता रहा। उसका आखिरी लेख उसकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद छपा। ‘जंगल गाथा’ कॉलम में सामू ने झारखंड आंदोलन के बहाने संपूर्ण आदिवासी विश्व पर लिखा। ऐसा कोई भी आयाम उससे अछूता नहीं रहा, जिस पर उसने विचार-मंथन नहीं किया, कलम नहीं चलाई। चाहे वह फिलीपीन के आदिवासियों का संघर्ष हो या लातीन अमेरिकी आदिवासियों अथवा अमेरिकी रेड इंडियनों की लड़ाइयाँ—उसने देश के सुदूर दक्षिण पाल्लियार आदिम आदिवासियों की कथा लिखी, तो बस्तर और सोनभद्र की कहानियाँ भी लोगों तक पहुँचाईं। झारखंड उसके लेखन के मुख्य केंद्र में था ही। आदिवासी सवालों पर लिखते हुए सामू ने न सिर्फ भारतीय शासक वर्गों की मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और विकासीय परियोजनाओं पर तीखे प्रहार किए और उनकी अमानवीय-अप्राकृतिक दोहन-मंशा को परत-दर-परत उधेड़ा, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से उस सांस्कृतिक-दार्शनिक द्वंद्व को भी रखा, जिसे आर्य-अनार्य संघर्ष के रूप में दुनिया जानती है। इस अर्थ में वह हिंदी का पहला आदिवासी सिद्धांतकार है, जिसने आदिवासियत के आलोक में, आदिवासी विश्वदृष्टि के नजरिए से पूँजीलोलुप समाज-सत्ता के दर्शन पर चोट की। उसने बताया कि यह व्यवस्था लुटेरी और हत्यारी है तथा यह आदिवासी क्या, किसी भी आम नागरिक को कोई बुनियादी सुविधा और मौलिक अधिकारों के उपभोग का स्वतंत्र अवसर नहीं देने जा रही, क्योंकि विकास की उनकी अवधारणा उसी नस्लीय, धार्मिक और सांस्कृतिक सोच की देन है, जिसमें आदिवासियों, स्त्रियों, दलितों और समाज के पिछड़े तबकों के लिए कभी कोई जगह नहीं रही है।
—इसी पुस्तक से अनुक्रमकतार1. सारजोम की तरह खड़ा और अड़ा —Pgs. 112. सामू " हिंदी का पहला आदिवासी विमर्शकार —Pgs. 13दावेदार3. इतिहास में आदिवासी —Pgs. 334. अंग्रेजी उपनिवेशवाद और संथाल परगना —Pgs. 355. झारखंडी आंदोलन को विदेशी षड्यंत्र मानना गलत —Pgs. 406. ‘झारखंड’ के दावेदार —Pgs. 44तटस्थता भी हथियार है7. सांस्कृतिक अवधारणा में आदिवासी कहाँ है? —Pgs. 498. जंगली पशु नहीं हैं आदिवासी —Pgs. 539. आर्यों ने अपने नजरिए से आँका है आदिवासियों को —Pgs. 5910. आदिवासियों का ‘नरसंहार’ विश्वव्यापी है —Pgs. 6311. इतिहासकारों के लिए आसान नहीं होता तटस्थ रहना —Pgs. 6712. उपनिवेशवाद के शिकंजे में जनजातीय क्षेत्र —Pgs. 74भूमंडलीय भद्रलोक13. टुकड़ों पर पलते ये बुद्धिजीवी —Pgs. 8114. अपने बिखराव के लिए दोषी खुद समाजवादी हैं —Pgs. 8415. साम्राज्यवाद से निकला भारत का भद्रलोक —Pgs. 8816. खबरों का सांप्रदायिक हो जाना —Pgs. 9317. भारत में ‘नाजीवाद’ के उदय का दौर —Pgs. 99संगीन विकास18. आरक्षण-व्यवस्था का ढोंग —Pgs. 10919. वनों पर से आदिवासियों के अधिकार छीनने की तैयारी —Pgs. 11220. मेनपाट " उत्खनन के नाम पर उत्पीड़न —Pgs. 11721. आदिवासी इलाकों में सिंचाई की दयनीय स्थिति —Pgs. 12022. शोषण ने आदिवासियों की आत्म-गरिमा छीनी —Pgs. 12423. पुलिस अत्याचारों से आहत सिंहभूम की धरती —Pgs. 130नष्ट होती हुई दुनिया24. तस्करी की भेंट चढ़ते निरीह वन्य जीव —Pgs. 13725. जल, जमीन और जंगल का संतुलन बिगड़ रहा है —Pgs. 14226. जंगलविहीन होने को है यह धरती —Pgs. 147झारखंड के आसपास27. बस्तर में नक्सलवाद का उभरना —Pgs. 15328. अँधेरी सुरंग में अंतहीन यात्रा —Pgs. 15829. अब वे आपकी करुणा के मोहताज नहीं —Pgs. 162जारी है रचाव-बचाव30. जब महिलाओं ने वन कटाई के खिलाफ मोरचा सँभाला —Pgs. 16931. ऐतिहासिक अध्याय का व्याख्याता बंदगाँव —Pgs. 17432. छत्तीसगढ़ के दो वीर " नियोगी और वीर नारायण —Pgs. 17833. मणींदर " धारा के विरुद्ध खड़ा एक समाजसेवी —Pgs. 18434. फिलीपीन में जारी जंगल बचाओ अभियान —Pgs. 187परिशिष्ट —Pgs. 191
राजनीति : सामाजिक - Aadiwasi Aur Vikas Ka Bhadralok
Aadiwasi Aur Vikas Ka Bhadralok - by - Prabhat Prakashan
Aadiwasi Aur Vikas Ka Bhadralok - प्रभात खबर के अपने कॉलम ‘जंगल गाथा’ में हेरॉल्ड अपनी मृत्यु तक लिखता रहा। उसका आखिरी लेख उसकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद छपा। ‘जंगल गाथा’ कॉलम में सामू ने झारखंड आंदोलन के बहाने संपूर्ण आदिवासी विश्व पर लिखा। ऐसा कोई भी आयाम उससे अछूता नहीं रहा, जिस पर उसने विचार-मंथन नहीं किया, कलम नहीं चलाई। चाहे वह फिलीपीन के आदिवासियों का संघर्ष हो या लातीन अमेरिकी आदिवासियों अथवा अमेरिकी रेड इंडियनों की लड़ाइयाँ—उसने देश के सुदूर दक्षिण पाल्लियार आदिम आदिवासियों की कथा लिखी, तो बस्तर और सोनभद्र की कहानियाँ भी लोगों तक पहुँचाईं। झारखंड उसके लेखन के मुख्य केंद्र में था ही। आदिवासी सवालों पर लिखते हुए सामू ने न सिर्फ भारतीय शासक वर्गों की मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और विकासीय परियोजनाओं पर तीखे प्रहार किए और उनकी अमानवीय-अप्राकृतिक दोहन-मंशा को परत-दर-परत उधेड़ा, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से उस सांस्कृतिक-दार्शनिक द्वंद्व को भी रखा, जिसे आर्य-अनार्य संघर्ष के रूप में दुनिया जानती है। इस अर्थ में वह हिंदी का पहला आदिवासी सिद्धांतकार है, जिसने आदिवासियत के आलोक में, आदिवासी विश्वदृष्टि के नजरिए से पूँजीलोलुप समाज-सत्ता के दर्शन पर चोट की। उसने बताया कि यह व्यवस्था लुटेरी और हत्यारी है तथा यह आदिवासी क्या, किसी भी आम नागरिक को कोई बुनियादी सुविधा और मौलिक अधिकारों के उपभोग का स्वतंत्र अवसर नहीं देने जा रही, क्योंकि विकास की उनकी अवधारणा उसी नस्लीय, धार्मिक और सांस्कृतिक सोच की देन है, जिसमें आदिवासियों, स्त्रियों, दलितों और समाज के पिछड़े तबकों के लिए कभी कोई जगह नहीं रही है। —इसी पुस्तक से अनुक्रमकतार1.
- Stock: 10
- Model: PP2106
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP2106
- ISBN: 9789353224035
- ISBN: 9789353224035
- Total Pages: 208
- Edition: Edition 1
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2019
₹ 400.00
Ex Tax: ₹ 400.00