जीवनी - Vinayak Damodar Savarkar
विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम है, जो भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में सबसे अलग है। उन्हें दो-दो बार आजीवन निर्वासन की सजा, अंडमान द्वीप की कुख्यात जेल में दस वर्षों से भी अधिक समय तक कठोरतम कारावास की यातना झेलनी पड़ी। वे एक महान् बुद्धिजीवी थे; उनकी कुछ रचनाएँ अंग्रेजी और मराठी भाषा की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। उनकी पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस : 1857’ ने पूरे विश्व को भारत के स्वतंत्रता के उद्देश्य के प्रति जाग्रत् किया। वे इस बात की चेतावनी देनेवाले पहले व्यक्ति थे कि देश की जनसंख्या के एक वर्ग के प्रति तुष्टीकरण की नीति देश को बँटवारे की ओर ले जा सकती है। सावरकर के लिए ‘मातृभूमि’ की एकता और अखंडता सर्वोच्च थी। सन् 1947 में धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हो गया। इसे हिंदुओं की मातृभूमि या हिंदुस्तान कहना कहाँ तक गलत था! वे कहते थे कि क्या हिंदू बहुसंख्यक नहीं थे? इस बात को समझने के लिए उनके लेखों को पढ़ना पड़ेगा कि वे केवल हिंदुओं के लिए ही ‘हिंदुस्तान’ की कल्पना नहीं करते थे। इसके विपरीत वे तो अल्पसंख्यकों के धर्म, संस्कृति और भाषा के संरक्षण की कामना भी करते थे।
यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर सावरकर के जीवन और योगदान का एक संक्षिप्त परिचय मात्र है।अनुक्रमआमुख—5-131. आरंभिक जीवन और संघर्ष का प्रथम चरण—17-36• परिवार एवं बचपन—17-18• अभिनव भारत—19-21• कॉलेज से निष्कासन—21-22• लंदन—फ्री इंडिया सोसाइटी (Free India Society)—22-24• 1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम—24-31• मदनलाल ढींगरा—31-32• सावरकर और महात्मा गांधी—32-33• गिरतारी और निर्वासन—33-34• भारत पहुँचना—आजीवन निर्वासन—34-36 2. अंडमान की सेल्यूलर जेल—37-58• सेल्यूलर जेल—38-41• अपना कोटा पूरा करो—41-44• जेल में पहली बार अपने भाई से भेंट—44-45• अंडमान जेल में मुसलमानों और शुद्धि आंदोलन पर विचार—45-48• लोकमान्य तिलक की मृत्यु की सूचना—48• जेल में गुरु गोविंद सिंह का जन्मदिवस—49-50• जेल में प्राथमिक पाठशाला—51-52• अंडमान में जीवन का आगे बढ़ना—52-54• अंडमान से लिखे पत्र—54-583. भारत की मुयभूमि पर वापसी—59-101• रत्नागिरी और हिंदुत्व—59-62• जेल से रिहाई—पाबंदियाँ जारी—62-63• डॉ. के.बी. हेडगेवार से भेंट—64• महात्मा गांधी से दूसरी बार भेंट—64-65• जाति-पाति के बंधनों का विरोध—65-66• तर्कसंगता—66• 1930 और 40 के दशक में राजनीति—66-67• हिंदू राष्ट्रवादियों को क्षमाप्रार्थी नहीं होना चाहिए—67-68• हिंदू संगठनवादी कांग्रेस का बहिष्कार करें—68-69• 1942 में हिंदू महासभा का 24वाँ अधिवेशन—69-70• हिंदुत्व, हिंदू धर्म से भिन्न है—70-72• पंजाब में—72-73• भारत भ्रमण—73• कांग्रेस का सावरकर को एक खतरे के रूप में देखना—73-75• सावरकर का भारत—75-76• स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद—76-77• कश्मीर में—77-78• विभाजन के विरोध में बोलना—78-79• एक हिंदू राष्ट्र यों नहीं—80-84• महात्मा गांधी का निधन—84-85• दूसरी बार एक आजाद व्यति के तौर पर—85-86• अपराध में सावरकर की संलिप्तता पर सरदार पटेल—87-89• एक बार फिर गिरतारी—89-91• अपने आप में सिमट जाना—91-93• 1857 की शतादी—94• अंतिम वर्ष—95-99संदर्भ—102-104
जीवनी - Vinayak Damodar Savarkar
Vinayak Damodar Savarkar - by - Prabhat Prakashan
Vinayak Damodar Savarkar - विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम है, जो भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में सबसे अलग है। उन्हें दो-दो बार आजीवन निर्वासन की सजा, अंडमान द्वीप की कुख्यात जेल में दस वर्षों से भी अधिक समय तक कठोरतम कारावास की यातना झेलनी पड़ी। वे एक महान् बुद्धिजीवी थे; उनकी कुछ रचनाएँ अंग्रेजी और मराठी भाषा की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। उनकी पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस : 1857’ ने पूरे विश्व को भारत के स्वतंत्रता के उद्देश्य के प्रति जाग्रत् किया। वे इस बात की चेतावनी देनेवाले पहले व्यक्ति थे कि देश की जनसंख्या के एक वर्ग के प्रति तुष्टीकरण की नीति देश को बँटवारे की ओर ले जा सकती है। सावरकर के लिए ‘मातृभूमि’ की एकता और अखंडता सर्वोच्च थी। सन् 1947 में धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हो गया। इसे हिंदुओं की मातृभूमि या हिंदुस्तान कहना कहाँ तक गलत था!
- Stock: 10
- Model: PP1230
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP1230
- ISBN: 9789351868903
- ISBN: 9789351868903
- Total Pages: 104
- Edition: Edition 1
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 250.00
Ex Tax: ₹ 250.00