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जीवनी - Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(Pb)

जीवनी - Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(Pb)
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य सहयोगी, विप्लवी बटुकेश्वर दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल के ओआड़ी नामक गाँव में हुआ था। सन् 1928 में गठित ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के वे सक्रिय सदस्य थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त जन-जन के नायक बन गए। यह बम विस्फोट औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करनेवाला साबित हुआ। कारावास में की गई लंबी भूख-हड़ताल भारत के इतिहास में नजीर बनकर सामने आई। अंडमान जेल में ‘कालापानी’ की सजा के बाद भी बटुकेश्वर दत्त ने किसान आंदोलन, 1942 क्रांति और उसके बाद के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 3 अक्तूबर, 1963 से 6 मई, 1964 तक वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे। उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार वहीं हो, जहाँ ‘सरदार’ (भगत सिंह) की समाधि है। 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में उनकी मृत्यु होने के बाद फिरोजपुर के हुसैनीवाला में सरदार भगत सिंह की समाधि के निकट ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। जीवन भर भगत सिंह के साथ रहनेवाले बटुकेश्वर दत्त मृत्यु के बाद भी भगत सिंह के साथ ही रहे। अनुक्रमलेखकीय आभार Pgs. 51. आरंभिक जीवन—Pgs. 92. तत्कालीन भारत की राजनीतिक स्थिति—Pgs. 223. हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का गठन—Pgs. 374. असेंबली बम विस्फोट की पृष्ठभूमि—Pgs. 485. असेंबली में बम विस्फोट ः अंग्रेज शासन की नींव पर चोट—Pgs. 596. बम विस्फोट के बाद का घटनाक्रम—Pgs. 647. अदालती काररवाई—Pgs. 738. बंदी जीवन और भूख हड़ताल—Pgs. 849. लाहौर षड्यंत्र केस में अदालती काररवाई—Pgs. 9910. ट्रिब्यूनल की काररवाई—Pgs. 10511. कालापानी—Pgs. 11312. भारत आगमन—Pgs. 14413. अंतिम संध्या—Pgs. 15714. भावुक बटुकेश्वर दत्त—Pgs. 16615. नौकरशाही सावधान!—Pgs. 17116. हिंदुस्तानी समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना—Pgs. 173संदर्भ पुस्तकें—Pgs. 253

जीवनी - Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(Pb)

Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(Pb) - by - Prabhat Prakashan

Batukeshwar Dutt Aur Krantikari Andolan(Pb) - शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अनन्य सहयोगी, विप्लवी बटुकेश्वर दत्त का जन्म पश्चिम बंगाल के ओआड़ी नामक गाँव में हुआ था। सन् 1928 में गठित ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ के वे सक्रिय सदस्य थे। 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम विस्फोट के बाद भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त जन-जन के नायक बन गए। यह बम विस्फोट औपनिवेशिक शासन व्यवस्था की नींव पर चोट करनेवाला साबित हुआ। कारावास में की गई लंबी भूख-हड़ताल भारत के इतिहास में नजीर बनकर सामने आई। अंडमान जेल में ‘कालापानी’ की सजा के बाद भी बटुकेश्वर दत्त ने किसान आंदोलन, 1942 क्रांति और उसके बाद के स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 3 अक्तूबर, 1963 से 6 मई, 1964 तक वे बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे। उनकी अंतिम इच्छा यही थी कि मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार वहीं हो, जहाँ ‘सरदार’ (भगत सिंह) की समाधि है। 20 जुलाई, 1965 को दिल्ली में उनकी मृत्यु होने के बाद फिरोजपुर के हुसैनीवाला में सरदार भगत सिंह की समाधि के निकट ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। जीवन भर भगत सिंह के साथ रहनेवाले बटुकेश्वर दत्त मृत्यु के बाद भी भगत सिंह के साथ ही रहे। अनुक्रमलेखकीय आभार Pgs.

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  • Stock: 10
  • Model: PP1066
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP1066
  • ISBN: 9789353229177
  • ISBN: 9789353229177
  • Total Pages: 256
  • Edition: Edition 1
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Soft Cover
  • Year: 2020
₹ 300.00
Ex Tax: ₹ 300.00