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छात्रोपयोगी - Nibandh Sagar

छात्रोपयोगी - Nibandh Sagar
इस कृति का अपना एक वैशिष्ट्य है। इसमें दिए गए निबंधों के परिशीलन करने के उपरांत यह सत्य उद्घाटित होता है- निबध में लेखक और पाठक का परो क्षत्व समाप्त हो जाता है; दोनों आमने-सामने खड़े होकर कहते-सुनते हैं। इस निबंध संग्रह में जीवन के समस्त क्षेत्रों की वास्तविकता, विषय की जिज्ञासा और संवेदना, विचारों की उत्कृष्टता, भावों की उष्ण तरंग, कल्पना की उड़ान, शैली की बहुविधता और विदग्ध चमत्कृति-सभी कुछ एक साथ प्राप्त होतीहैं । निबंधकार का प्राणवान् व्यक्तित्व अपनी चिंतनशीलता, भाव-प्रवणता तथा प्रामाणिक आप्तता के साथ अवतरित होकर लेखक में सम-संवेदना को जाग्रत् कर सहलाता, उद्दीप्त करता तथा रसतृप्त करता है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के लिए यह कृति उपयोगी तो है ही, विशेषत : 'संघ लोक सेवा आयो', विाइ भन्न राज्यों के लोक सेवा आयोगों, 'कर्मचारी चयन आयोग' तथा संबद्ध अन्यान्य संगठनों द्वारा आयोजित अनिवार्य प्रश्नपत्र ' निबंध' के लिए यह अपरिहार्य है। प्रमुख कैरियर विशेषज्ञ, मीडियाधर्मी और समीक्षक डॉ. पांडेय ने अपनी इस कृति में समसामयिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय, राजनीतिक, आाइ र्थक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, वैज्ञानिक-प्रौद्योगिक, सावि धानिक इत्यादि विषयक निबंधों पर अपने विश्लेषणात्मक दृष्टिबोध का परिचय दिया है। इसमें अधिकतर वे निबंध हैं, जो प्राय : परीक्षाओं में पूछे जाते हैं किंतु अन्यत्र दुर्लभ हैं। अधिकतर निबंध विस्तार में दिए गए हैं, जिनमें 'सामान्य ज्ञान' और 'सामान्य अध्ययन' की दृष्टि से तथ्य और अंकिड़ों की प्रचुरता है।अनुक्रम1. संयुक्त राष्ट्र संघ : कल, आज और कल — Pgs. 332. हिंद महासागर में महाशक्तियों की होड़ — Pgs. 443. संयुक्त राष्ट्र संघ और भारत  — Pgs. 544. भारत की विदेश नीति : कितनी समय-सापेक्ष — Pgs. 575. दक्षिण एशिया में बदलते समीकरण — Pgs. 616. साम्राज्यवादी शक्तियाँ और गुट-निरपेक्ष आंदोलन — Pgs. 677. वैश्विक निरस्त्रीकरण : एक विचारणीय विषय — Pgs. 738. बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण का औचित्य — Pgs. 829. भारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में पाक-अमेरिका के रिश्ते — Pgs. 8810. वैश्विक मंच पर अमेरिका की निरंकुशता — Pgs. 10011. भारत-पाकिस्तान संबंधों की असलियत — Pgs. 10412. भारत में राष्ट्रीय एकता खतरे में — Pgs. 10713. सार्वजनिक जीवन में हिंसा — Pgs. 11214. भारत में राजनीतिक ध्रुवीकरण का संकट — Pgs. 11515. समाजवाद और भारत — Pgs. 11716. संसद् में प्रतिपक्ष की भूमिका — Pgs. 11917. हम सब भ्रष्ट हैं — Pgs. 12118. भारत में संसदीय लोकतंत्र की सार्थकता  — Pgs. 12819. कोउ नृप होउ हमहि का हानी — Pgs. 13220. राजनीति और अपराध : एक ही सिक्के के दो पहलू — Pgs. 13721. संवेदन-शून्य होती भारतीय पुलिस — Pgs. 14122. भारत में मानवाधिकार संकट में — Pgs. 15223. नवीन अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और चुनौतियाँ — Pgs. 15924. समकालीन भारतीय समाज की अर्थव्यवस्था — Pgs. 17025. काला धन : कारण और निवारण — Pgs. 18326. भारतीय समाज और भावात्मक एकता — Pgs. 19327. भारतीय जीवन और पाश्चात्य आदर्श — Pgs. 19628. पुरुष-प्रधान समाज में भारतीय नारी — Pgs. 20029. कितनी उपयोगी है हमारी शिक्षा-पद्धति — Pgs. 20630. साहित्य और जीवन — Pgs. 21431. हिंदी साहित्य में आदर्शवाद और यथार्थवाद  — Pgs. 21632. हिंदी गद्य का विकास — Pgs. 22133. हिंदी पद्य का विकास — Pgs. 22334. हिंदी-काव्य में राष्ट्रीय विचारधारा — Pgs. 22635. हिंदी साहित्य में हालावाद की प्रासंगिकता — Pgs. 22836. महाप्राण निराला की साहित्य-यात्रा — Pgs. 23337. प्रेमचंद की साहित्य-यात्रा — Pgs. 23938. समकालीन समाज में बुद्धिजीवियों का प्रभाव — Pgs. 24439. स्वामी विवेकानंद का जीवन-दर्शन — Pgs. 24840. महर्षि अरविंद का जीवन-दर्शन — Pgs. 25541. रवींद्रनाथ टैगोर का जीवन-दर्शन — Pgs. 25842. ईश्वरचंद्र विद्यासागर का जीवन-दर्शन — Pgs. 26643. आचार्य नरेंद्र देव का जीवन-दर्शन — Pgs. 27244. ज्योतिबा राव फुले का जीवन-दर्शन — Pgs. 27845. डॉ. राम मनोहर लोहिया का जीवन-दर्शन — Pgs. 28446. भारतीय संस्कृति और उसका भविष्य — Pgs. 29247. भारतीय संस्कृति और उसकी विशेषताएँ — Pgs. 29648. लोक-संस्कृति की अवधारणा — Pgs. 30249. भारतीय कला के आदर्श — Pgs. 30550. सिनेमा में बदलते मूल्य-बोध — Pgs. 30851. देवनागरी लिपि और उसकी वैज्ञानिकता — Pgs. 31152. पर्यावरण असंतुलन हेतु हम सब जिम्मेदार  — Pgs. 31353. औद्योगिक प्रदूषण के बढ़ते खतरे  — Pgs. 31654. भारत में एड्स की स्थिति  — Pgs. 320

छात्रोपयोगी - Nibandh Sagar

Nibandh Sagar - by - Prabhat Prakashan

Nibandh Sagar - इस कृति का अपना एक वैशिष्ट्य है। इसमें दिए गए निबंधों के परिशीलन करने के उपरांत यह सत्य उद्घाटित होता है- निबध में लेखक और पाठक का परो क्षत्व समाप्त हो जाता है; दोनों आमने-सामने खड़े होकर कहते-सुनते हैं। इस निबंध संग्रह में जीवन के समस्त क्षेत्रों की वास्तविकता, विषय की जिज्ञासा और संवेदना, विचारों की उत्कृष्टता, भावों की उष्ण तरंग, कल्पना की उड़ान, शैली की बहुविधता और विदग्ध चमत्कृति-सभी कुछ एक साथ प्राप्त होतीहैं । निबंधकार का प्राणवान् व्यक्तित्व अपनी चिंतनशीलता, भाव-प्रवणता तथा प्रामाणिक आप्तता के साथ अवतरित होकर लेखक में सम-संवेदना को जाग्रत् कर सहलाता, उद्दीप्त करता तथा रसतृप्त करता है। स्नातक एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों के लिए यह कृति उपयोगी तो है ही, विशेषत : 'संघ लोक सेवा आयो', विाइ भन्न राज्यों के लोक सेवा आयोगों, 'कर्मचारी चयन आयोग' तथा संबद्ध अन्यान्य संगठनों द्वारा आयोजित अनिवार्य प्रश्नपत्र ' निबंध' के लिए यह अपरिहार्य है। प्रमुख कैरियर विशेषज्ञ, मीडियाधर्मी और समीक्षक डॉ.

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  • Stock: 10
  • Model: PP1027
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP1027
  • ISBN: 9789383110698
  • ISBN: 9789383110698
  • Total Pages: 328
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2020
₹ 500.00
Ex Tax: ₹ 500.00