अर्थशास्त्र : बिजनेस : मैनेजमेंट - Bin Poonji Ka Dhandha
अश्विनीकुमार दुबे हिंदी व्यंग्य के एक चिर-परिचित हस्ताक्षर हैं। उनके पास व्यंग्य का मुहावरा एवं व्यंग्यकार की प्रखर दृष्टि है, जिसके प्रयोग द्वारा वे सार्थक व्यंग्य की रचना करते हैं। उनका दृष्टिकोण सकारात्मक है। उनकी व्यंग्यात्मक रचनाओं के विषय व्यापक हैं। वे सामयिक विषयों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी मात्र कर संतुष्ट नहीं होते, अपितु एक चिंतनशील रचनाकार के रूप में उसका विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। जहाँ एक ओर अधिकांश रचनाकार राजनीतिक विसंगतियों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी को रचना-कर्म मान रहे हैं, वहीं अश्विनीकुमार दुबे जैसे कुछ रचनाकार हैं, जो एक दृष्टि के साथ सामयिक विसंगतियों का विश्लेषण कर उनके दूरगामी प्रभावों की ओर लक्षित कर रहे हैं। उनकी चिंता वर्तमान की वे विसंगतियाँ हैं, जो मानव-जीवन के भविष्य को अपनी अँधेरी छाया से ग्रसित करना चाहती हैं।
अश्विनीकुमार दुबे की व्यंग्य रचनाओं में कहानी जिंदा है। वे विद्रूपताओं को कथा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में यकीन रखते हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में जहाँ एक ओर व्यंग्य अपनी अभिव्यक्ति के साथ रोचकता उत्पन्न करता है वहीं कथा भी उत्प्रेरक का काम करती है, और संभवतः इसी कारण उनकी व्यंग्य रचनाएँ व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के संकलन मात्र होने से बच पाई हैं।
—प्रेम जनमेजय
संपादक‘व्यंग्य यात्रा’अनुक्रमपुस्तक-परिचय —Pgs. 7ये रचनाएँ —Pgs. 91. बिन पूँजी का धंधा —Pgs. 132. हम कोई चेहरा उजला नहीं रहने देंगे —Pgs. 183. पाँव लागूँ कर जोरी —Pgs. 234. आरक्षण और पंचायती राज —Pgs. 285. भ्रष्टाचार मिटाने के सरल उपाय —Pgs. 336. फंड आया रे, आया —Pgs. 377. भैयाजी का षष्ठिपूर्ति महोत्सव —Pgs. 428. तैयारी शोकसभा की —Pgs. 469. गृह जिले में अफसर होने की पीड़ा —Pgs. 5110. सर, मुझे बाबा बनना है —Pgs. 5611. परीक्षाओं के दिन —Pgs. 6112. बरात और मंत्रीजी —Pgs. 6513. अहा! ग्राम्य जीवन —Pgs. 7014. गलत व्यवस्था में फँसा सही आदमी —Pgs. 7515. नेता सुतहिं सिखावहीं, आन धर्म जिनि लेऊ —Pgs. 8016. हाथ मिलाते रहिए —Pgs. 8517. मुझे भी सुरक्षाकर्मी चाहिए —Pgs. 9018. राजधानी के बाबू —Pgs. 9519. इधर जाएँ कि उधर? —Pgs. 10120. ये गरमी के दिन —Pgs. 10621. अतिक्रमण —Pgs. 11122. एक तालाब की व्यथा-कथा —Pgs. 11623. आप किसके आदमी हैं? —Pgs. 12124. बड़े साहब का दौरा —Pgs. 12625. कुछ मत देखो —Pgs. 13126. हमारे गुरुजी —Pgs. 13527. भाषा का असर —Pgs. 14028. नेपथ्य में —Pgs. 14529. शहर में साहित्य —Pgs. 15030. दास्तान-ए-दफ्तर —Pgs. 15531. सफलता —Pgs. 16032. ओलों की बरसात : एक चिंतन —Pgs. 165
अर्थशास्त्र : बिजनेस : मैनेजमेंट - Bin Poonji Ka Dhandha
Bin Poonji Ka Dhandha - by - Prabhat Prakashan
Bin Poonji Ka Dhandha - अश्विनीकुमार दुबे हिंदी व्यंग्य के एक चिर-परिचित हस्ताक्षर हैं। उनके पास व्यंग्य का मुहावरा एवं व्यंग्यकार की प्रखर दृष्टि है, जिसके प्रयोग द्वारा वे सार्थक व्यंग्य की रचना करते हैं। उनका दृष्टिकोण सकारात्मक है। उनकी व्यंग्यात्मक रचनाओं के विषय व्यापक हैं। वे सामयिक विषयों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी मात्र कर संतुष्ट नहीं होते, अपितु एक चिंतनशील रचनाकार के रूप में उसका विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। जहाँ एक ओर अधिकांश रचनाकार राजनीतिक विसंगतियों पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी को रचना-कर्म मान रहे हैं, वहीं अश्विनीकुमार दुबे जैसे कुछ रचनाकार हैं, जो एक दृष्टि के साथ सामयिक विसंगतियों का विश्लेषण कर उनके दूरगामी प्रभावों की ओर लक्षित कर रहे हैं। उनकी चिंता वर्तमान की वे विसंगतियाँ हैं, जो मानव-जीवन के भविष्य को अपनी अँधेरी छाया से ग्रसित करना चाहती हैं। अश्विनीकुमार दुबे की व्यंग्य रचनाओं में कहानी जिंदा है। वे विद्रूपताओं को कथा के माध्यम से अभिव्यक्त करने में यकीन रखते हैं। यही कारण है कि उनकी रचनाओं में जहाँ एक ओर व्यंग्य अपनी अभिव्यक्ति के साथ रोचकता उत्पन्न करता है वहीं कथा भी उत्प्रेरक का काम करती है, और संभवतः इसी कारण उनकी व्यंग्य रचनाएँ व्यंग्यात्मक टिप्पणियों के संकलन मात्र होने से बच पाई हैं। —प्रेम जनमेजय संपादक‘व्यंग्य यात्रा’अनुक्रमपुस्तक-परिचय —Pgs.
- Stock: 10
- Model: PP431
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP431
- ISBN: 9788194024644
- ISBN: 9788194024644
- Total Pages: 168
- Edition: Edition 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2019
₹ 300.00
Ex Tax: ₹ 300.00