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अर्थशास्त्र : बिजनेस : मैनेजमेंट - Aarthik Vatavaran : Badalte Aayam

अर्थशास्त्र : बिजनेस : मैनेजमेंट - Aarthik Vatavaran : Badalte Aayam
हर किसी की इच्छा है कि एक बेहतर विश्व बने, जहाँ कंपनियाँ अपने हितधारकों से कुछ न छिपाते हुए अपने कामकाज के लिए प्रतिबद्धता लें और उनके कामकाज में पारदर्शिता हो। एक ऐसी वैश्विक अर्थव्यवस्था हो, जिसमें स्वतंत्र व्यपार संभव हो और सभी राष्ट्र एक दूसरे के व्यापारिक या आर्थिक हितों को नुकसान न पहुँचाते हुए अपनी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण करें। आज एक राष्ट्र में हलचल होती है, तो उसकी सरसराहट दूर तक सुनाई देती है। फिर वो जापान में आई सूनामी हो या यूरो जोन क्राइसिस या फिर अमेरिकी रेटिंग का डाउनग्रेड या भारत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, दुनिया भर के शेयर मार्केट इस प्रकार की घटनाओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। यही नहीं घरेलू स्तर पर भी जो सरकारी या संस्थागत निर्णय अथवा नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं, उनका प्रभाव विभिन्न तबके के लोगों और विभिन्न आकार और क्षेत्र के उद्योगों पर अवश्य पड़ता है। इन्हीं सब समसामयिक नीतियों और ज्वलंत मुद्दों की व्याख्या करना, विवेचना करना और उन पर अपना दृष्टिकोण अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही लेखिका का उद्देश्य है। सभी आयु वर्ग के पाठकों को ही नहीं, समाज और उद्योग-जगत् के लोगों के लिए उपयोगी पुस्तक।अनुक्रम   डांगी का प्रयास स्तुत्य — Pgs. 7 56. चीन में आर्थिक सुधार के लिए कई नीतिगत बदलावों की घोषणा — Pgs. 183 विकास को धरातल तक देखना चाहती हैं — Pgs. 9 57. चालू खाता घाटे में कमी कितनी सार्थक? — Pgs. 186 आमुख — Pgs. 11 58. सेबी पेनल ने सुझाए कठोर ‘इनसाइडर ट्रेडिंग’ नियम — Pgs. 189 धन्यवाद — Pgs. 13 59. औद्योगिक उत्पादन और महँगाई का रुख चिंताजनक — Pgs. 192 1. भारतीय ऋण बाजार में तेजी से बढ़ रहा है प्रत्यक्ष विदेशी निवेश — Pgs. 21 60. डूब रहे ऋणों की पहचान और पुनर्जीवन हेतु सुझाया गया है नया ढाँचा — Pgs. 195 2. बेहाल है भारत की अर्थव्यवस्था — Pgs. 24 61. नए साल में हैं बदलाव की अपेक्षा — Pgs. 198 3. उद्योगों और बैंकों पर ऋणों को लेकर बढ़ रहा है दबाव — Pgs. 27 62. अगले दो वर्षों में सबका होगा अपना बैंक खाता — Pgs. 201 4. भूमि अधिग्रहण विधेयक में प्रस्तावित बदलाव कितना सार्थक? — Pgs. 30 63. ई-कॉमर्स में एफडीआई कितनी सार्थक? — Pgs. 204 5. क्या भारत में आनेवाला है आर्थिक संकट? — Pgs. 33 64. भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की अपेक्षा — Pgs. 207 6. गेहूँ के रिकॉर्ड स्टॉक का भंडारण कितना प्रभावी? — Pgs. 35 65. नीतिगत दरों में वृद्धि कितनी सार्थक? — Pgs. 209 7. नया कंपनीज विधेयक 2011 कितना सार्थक? — Pgs. 37 66. आखिर क्यों भयभीत हैं इमर्जिंग मार्केट्स? — Pgs. 212 8. कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व बदलते आयाम — Pgs. 40 67. आखिर क्यों कम होती जा रही है घरेलू बचत दर? — Pgs. 215 9. अमेरिकी अर्थव्यवस्था में बढ़ रही है अस्थिरता — Pgs. 43 68. चुनावी दाँव-पेंच में फँसा अंतरिम बजट कितना प्रभावी? — Pgs. 218 10. फिच की रेटिंग : नकारात्मक आउटलुट कितनी सही? — Pgs. 46 69. सेबी ने बढ़ाया कॉर्पोरेट गवर्नेंस मानदंडों का दायरा — Pgs. 221 11. क्या जारी रहेगा 2013 में शेयर बाजार का उछाल? — Pgs. 49 70. जल्द लागू होंगे उद्योगों के सामाजिक उत्तरदायित्व नियम — Pgs. 224 12. सोने के आयात पर बढ़ा सीमा शुल्क कितना सार्थक? — Pgs. 52 71. यूक्रेन संकट से प्रभावित होंगे कई उद्योग और अर्थव्यवस्थाएँ — Pgs. 227 13. क्या नीतिगत दरों में कटौती से घटेंगीं ब्याज दरें? — Pgs. 55 72. सरकारी क्षेत्र के बैंकों में तेजी से बढ़ रहे हैं एनपीए — Pgs. 230 14. धीमी पड़ रही है भारत की अर्थव्यवस्था — Pgs. 58 73. विदेशी निवेशकों को खूब लुभा रहा है भारतीय पूँजी बाजार — Pgs. 233 15. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बढ़ रहा है चीन का वर्चस्व — Pgs. 61 74. वार्षिक मौद्रिक नीति में नहीं दिखा कोई बड़ा बदलाव — Pgs. 236 16. बजट 2013 कैसे दूर हो मंदी और बेरोजगारी? — Pgs. 64 75. भारतीय बैंकिंग में जुड़ा एक नया अध्याय — Pgs. 238 17. विकास और समावेशी विकास की चुनौतियों में उलझा बजट-2013 — Pgs. 67 76. चीन की आर्थिक विकास दर कितनी मजबूत? — Pgs. 241 18. बैंकों में खराब ऋणों से बढ़ रहा है दबाव — Pgs. 70 77. शेयर बाजार में बढ़ रहा है पी-नोट निवेश — Pgs. 244 19. निजी बैंक खोलना नहीं होगा आसान — Pgs. 73 78. क्या इस वर्ष बेहतर होगा वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन? — Pgs. 247 20. नीतिगत दरों में कटौती कितनी सार्थक — Pgs. 76 79. औद्योगिक उत्पादन और थोक मूल्य सूचकांकों में 21. साइप्रस बेल आउट से बैंकों में बढ़ेगी सतर्कता — Pgs. 79  बदलाव कितना प्रभावी? — Pgs. 250 22. बढ़ता चालू खाता घाटा चिंताजनक — Pgs. 82 80. केंद्र में सरकार कितनी प्रभावी? — Pgs. 253 23. वित्तीय क्षेत्र में सुपर रेग्युलेटर कितना सार्थक — Pgs. 85 81. नायक कमेटी ने सुझाया बैंक प्रशासन का नया मॉडल — Pgs. 256 24. सोने की कीमतों में गिरावट लाएगी अर्थव्यवस्था में चमक? — Pgs. 88 82. एमएसएमई क्षेत्र में मिले विकास को प्राथमिकता — Pgs. 259 25. नई विदेशी व्यापार नीति कितनी सार्थक — Pgs. 91 83. भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन निराशाजनक — Pgs. 262 26. कब तक ‘चीट’ करती रहेंगी ‘चिट फंड’ योजनाएँ — Pgs. 94 84. महँगाई रोकना सबसे बड़ी चुनौती — Pgs. 265 27. नीतिगत दरों में कटौती कितनी प्रभावी? — Pgs. 97 85. पोंजी स्कीम के फैलते साम्राज्य पर लगे लगाम — Pgs. 268 28. क्या जापान की नई अर्थनीति से दूर होगी मंदी? — Pgs. 100 86. इराकी संकट से आहत होगी भारत की अर्थव्यवस्था — Pgs. 271 29. ‘ग्रे मार्केट’ का बढ़ता आकार चिंताजनक — Pgs. 103 87. कमजोर मानसून से बढ़ सकती है महँगाई — Pgs. 274 30. एशियाई देशों पर मंडरा रहा है ‘हाउसिंग बबल’ का खतरा — Pgs. 106 88. मोदी बजट में आर्थिक विकास पर जोर — Pgs. 276 31. मंद पड़ती जा रही है भारत की अर्थव्यवस्था — Pgs. 108 89. बढ़ रही है ब्रिक्स अर्थव्यवस्था की ताकत — Pgs. 279 32. रुपए का गिरता मूल्य चिंताजनक — Pgs. 111 90. रिजर्व बैंक ने महत्त्वपूर्ण बैंकों की पहचान हेतु बनाई रूप-रेखा — Pgs. 282 33. विकास के लिए आर्थिक नीतियों में समन्वय जरूरी — Pgs. 114 91. मानव विकास को मिले प्राथमिकता — Pgs. 285 34. अमेरिकी मौद्रिक नीति का भारत की अर्थव्यवस्था पर 92. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति कितनी सार्थक? — Pgs. 288  प्रभाव कितना गंभीर? — Pgs. 117 93. औद्योगिक उत्पादन में गिरावट निराशाजनक — Pgs. 291 35. विश्व के कई देशों में सुनाई दे रही है आर्थिक मंदी की आहट — Pgs. 120 94. विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर रहा है भारतीय स्टॉक मार्केट — Pgs. 293 36. खाद्य सुरक्षा से जुड़े हैं कई जटिल मसले — Pgs. 123 95. ‘कोलगेट’ में सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य — Pgs. 296 37. विकास के लिए बढ़ रही है विदेशी निवेश पर निर्भरता — Pgs. 126 96. भारत-जापान की दोस्ती से लाभान्वित होंगी दोनों अर्थव्यवस्थाएँ — Pgs. 299 38. कड़ी मौद्रिक नीति ने दी है स्थायित्व को प्राथमिकता — Pgs. 129 97. कैसे होगा 21वीं सदी के भारत का निर्माण? — Pgs. 302 39. केंद्रीय बैंक की कठोर मौद्रिक नीति कितनी प्रभावी — Pgs. 132 98. कैसे हो योजना आयोग का विकल्प? — Pgs. 305 40. निजी क्षेत्र में उत्पादन सूचकांक में गिरावट है चिंताजनक — Pgs. 135 99. आर्थिक विकास में रोजगार को मिले महत्त्व — Pgs. 308 41. उद्योगों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व होगा अनिवार्य — Pgs. 138 100. कितनी प्रभावी है हमारी मौद्रिक नीति? — Pgs. 311 42. नेशनल स्पॉट एक्सचेंज संकट में अटके निवेशकों के करोड़ों रुपए — Pgs. 141 101. विदेशी मुद्रा प्रबंधन के प्रति सजगता जरूरी — Pgs. 314 43. खराब होती जा रही है भारत की अर्थव्यवस्था — Pgs. 144 102. उदीयमान बाजारों को वैश्विक असंतुलन से रहना होगा संतर्क — Pgs. 317 44. रिजर्व बैंक की नई नीति से बढ़ेगा निवेश? — Pgs. 147 103. तेल की कीमतों में गिरावट कितना सार्थक? — Pgs. 320 45. निर्यात क्षेत्र को मिले अधिक प्रोत्साहन — Pgs. 150 104. भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यवसाय करना आसान नहीं — Pgs. 323 46. देश में आर्थिक संकट जैसे हालात चिंताजनक — Pgs. 153 105. दक्षिण एशिया में क्यों बढ़ रहा है जापानी निवेश? — Pgs. 326 47. अभी भी जारी है ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं का संघर्ष — Pgs. 156 106. आसियान देशों में बढ़ रहा है भारत का महत्त्व — Pgs. 329 48. क्या हैं अमेरिकी आंशिक तालाबंदी के मायने — Pgs. 159 107. भारतीय अर्थव्यवस्था के सकारात्मक रुझान — Pgs. 331 49. डिफॉल्टरों पर सख्ती से कम होंगे खराब ऋण? — Pgs. 162 108. कैसे बढ़ेगी सार्क देशों की ताकत? — Pgs. 334 50. क्या महँगाई हो चुकी है लाइलाज? — Pgs. 165 109. बैंकिंग इतिहास से जुड़ा एक न्याय अध्याय — Pgs. 336 51. नए भूमि अधिग्रहण कानून में हैं कई जटिलताएँ — Pgs. 168 110. क्या होगा योजना आयोग का विकल्प? — Pgs. 339 52. कितनी प्रभावी है भारत की मौद्रिक नीति — Pgs. 171 111. महँगाई दर में कमी : एक अच्छा संकेत — Pgs. 342 53. उद्योगों के लिए बढ़ रही हैं व्यावसायिक दिक्कतें — Pgs. 174 112. नए अध्यादेश से मिलेगा बीमा क्षेत्र को बढ़ावा — Pgs. 345 54. नई विदेशी बैंक नीति : कितनी सार्थक? — Pgs. 177 113. उम्मीदों से भरा है नव वर्ष 2015 — Pgs. 348 55. क्या बंद की जाए सीडीआर प्रक्रिया? — Pgs. 180   

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Aarthik Vatavaran : Badalte Aayam - by - Prabhat Prakashan

Aarthik Vatavaran : Badalte Aayam - हर किसी की इच्छा है कि एक बेहतर विश्व बने, जहाँ कंपनियाँ अपने हितधारकों से कुछ न छिपाते हुए अपने कामकाज के लिए प्रतिबद्धता लें और उनके कामकाज में पारदर्शिता हो। एक ऐसी वैश्विक अर्थव्यवस्था हो, जिसमें स्वतंत्र व्यपार संभव हो और सभी राष्ट्र एक दूसरे के व्यापारिक या आर्थिक हितों को नुकसान न पहुँचाते हुए अपनी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का निर्धारण करें। आज एक राष्ट्र में हलचल होती है, तो उसकी सरसराहट दूर तक सुनाई देती है। फिर वो जापान में आई सूनामी हो या यूरो जोन क्राइसिस या फिर अमेरिकी रेटिंग का डाउनग्रेड या भारत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, दुनिया भर के शेयर मार्केट इस प्रकार की घटनाओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। यही नहीं घरेलू स्तर पर भी जो सरकारी या संस्थागत निर्णय अथवा नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं, उनका प्रभाव विभिन्न तबके के लोगों और विभिन्न आकार और क्षेत्र के उद्योगों पर अवश्य पड़ता है। इन्हीं सब समसामयिक नीतियों और ज्वलंत मुद्दों की व्याख्या करना, विवेचना करना और उन पर अपना दृष्टिकोण अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना ही लेखिका का उद्देश्य है। सभी आयु वर्ग के पाठकों को ही नहीं, समाज और उद्योग-जगत् के लोगों के लिए उपयोगी पुस्तक।अनुक्रम   डांगी का प्रयास स्तुत्य — Pgs.

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  • Stock: 10
  • Model: PP512
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: PP512
  • ISBN: 9789352666751
  • ISBN: 9789352666751
  • Total Pages: 352
  • Edition: Edition 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Cover
  • Year: 2018
₹ 700.00
Ex Tax: ₹ 700.00