हमारे समय के प्रमुख कवि मंगलेश डबराल की यह यात्रा-पुस्तक केवल यात्रा-वृतान्त नहीं है; यह एक कैनवस की तरह है जिसमें हमें अमेरिका दीखता है, उस चीरफाड़ के साथ जिसे यात्रा करते हुए कवि ने अपने ढंग से, अंजाम दिया—शायद अमेरिका को कुछ ज़्यादा अच्छे ढंग से समझने के लिए ही। इसमें वह आतंक नहीं है जो वर्तमान अम..
हजारीप्रसाद द्विवेदी, अज्ञेय, अमृतलाल नागर, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, विद्यानिवास मिश्र, श्रीकान्त वर्मा आदि प्रसिद्ध लेखकों के बारे में लिखे गए संस्मरणों की इस पुस्तक में पूरा समकालीन साहित्यिक परिदृश्य रूपायित है। अत्यन्त सहानुभूति और तटस्थता के साथ लिखे गए ये संस्मरण निश्चय ही अपनी विश्वसनीयता ..
...और कई प्रमाणों की तरह अस्त्राखान के हिन्दू व्यापारी भी उस वास्तविकता के प्रमाण हैं, जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं महसूस की जाती। वे ऐसे पात्र हैं जो सैकड़ों सालों से अपने लिए लेखक तलाश रहे हैं। वे हिन्दी सराय में बुला रहे हैं, कोई जाने को तैयार नहीं। अस्त्राखान की हिन्दी सराय की ये आवाज़ें, ..
मनुष्य की सृजनात्मक कृतियों में यात्रा संस्मरणों की बहुमूल्य सहभागिता और अक्षय अवदान को पाश्चात्य साहित्य के साथ - साथ हिन्दी साहित्य में भी स्वीकार किया गया है । किन्तु हिन्दी में , उसे अपेक्षित प्रतिष्ठा नहीं मिली है । निःसन्देह यह अपने बलबूते एक स्वतन्त्र विधा होने का सामर्थ्य रखता है । इसके कई क..
संस्कृति की लीक पर उल्टा चलूँ तो शायद वहाँ पहुँच सकूँ, जहाँ भारतीय जनस्मृतियाँ नालबद्ध हैं। वांछित लीक के दरस हुए दन्तकथाओं तथा पुराकथाओं में और आगाज़ हुआ हिमालय में घुमक्कड़ी का। स्मृतियों की पुकार ऐसी ही होती है। नि:शब्द। बस एक अदृश्य-अबूझ खेंच, अनिर्वचनीय कर्षण। और चल पड़ता है यायावर वशीभूत...दीठ..
‘कच्छ कथा’ बीते दो सौ वर्षों में दो भीषण भूकम्प झेल चुके कच्छ की वास्तविक झलक सामने लाती है। यह किताब घुमन्तू स्वभाव के पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की पिछले ग्यारह साल के दौरान कच्छ क्षेत्र में बार-बार की गई यात्राओं से हासिल उनकी जानकारियों और समझ का कुलजमा है। इस रोमांचक यात्रा-आख्यान में वह सब तो ह..
लीलाधर मंडलोई वैसे रचनाकारों में हैं जो धरती के किसी भी हिस्से में अपने रहवास को एक लम्बे कालखंड में, अपनी ऐन्द्रियता से आत्मसात कर आश्चर्यजनक ढंग से स्थानीय हो उठते हैं। ऐसा उन्होंने पातालकोट, छिंदवाड़ा, गोंडवाना (कान्हा अभ्यारण्य), भोपाल और एक हद तक दिल्ली में रहते हुए सम्भव किया है। देखा जाए तो उन..
हर इनसान के भीतर एक यायावर सोया होता है। लेकिन कम ही लोग होते हैं जो अपने भीतर सोये हुए यायावर को जगा पाते हैं; और उसकी उँगली पकड़कर घर से निकल पड़ते हैं। ज़्यादातर लोग ज़िन्दगी की ख़ुशहाली को बनी-बनाई हदों के भीतर तलाश करते हैं। अपने सुरक्षित दायरों के बाहर क़दम रखने से वे हिचकते हैं। इस तरह वे ज़ि..
एक लड़की जो अलग-अलग देशों में जाती है और अलग-अलग जींस और जज़्बात के लोगों से मिलती है। कहीं गे, कहीं लेस्बियन, कहीं सिंगल, कहीं तलाक़शुदा, कहीं भरे-पूरे परिवार, कहीं भारत से भी ‘बन्द समाज’ के लोग। कहीं जनसंहार का—रोंगटे खड़े करने और सबक देने वाला—स्मारक भी वह देखती है जिसमें क्रूरता और यातना की छायाओं ..
प्रस्तुत पुस्तक ‘लोहे की दीवार के दोनों ओर’ में सोवियत देश और पूँजीवादी देशों के जीवन और व्यवस्था का आँखों देखा तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया गया है। यशपाल जी ने व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर सब बातों का विवरण और विश्लेषण करने की चेष्टा की है। लेकिन उन्होंने “संस्मरणों के व्यक्तिगत होने पर भी...केवल ..
सन् 1956 में तिब्बत का दरवाज़ा विदेशियों के लिए लगभग बन्द हो चुका था और राजनैतिक कारणों से भारत के साथ तिब्बत का सम्पर्क भी लगभग टूट चुका था। उन्हीं दिनों, बिना किसी तैयारी के, बिमल दे घर से भागे और नेपाली तीर्थयात्रियों के एक दल में सम्मिलित हो ल्हासा तक जा पहुँचे। उस समय उनकी उम्र मात्र पन्द्रह..
तिब्बत की रहस्यमयी भैरवी माताजी के निर्देश पर कैलासबाबा की खोज में मैं गया था चौरासी महासिद्ध श्मशान और फिर पार किया पाप-परीक्षा-पत्थर। पुण्यभूमि शिवस्थल, कैलासनाथ के चरण-कमल में बैठकर चित्ताकाश में पाया था नर्मदा नाम, किन्तु हाय, गँदले मन की स्थिरता के अभाव में उस महासत्य को न जान पाया। इशारा पाने ..