‘सत्याग्रह’ शब्द का आविष्कार गांधी जी ने तब किया था, जब वे अफ़्रीका में थे—उद्देश्य था अपनी कर्म-साधना के साथ निष्क्रिय-प्रतिरोध का भेद स्पष्ट करना। यूरोपवाले गांधी के आन्दोलन को ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ (अथवा अप्रतिरोध) के रूप में समझना चाहते हैं, जबकि इससे बड़ी ग़लती दूसरी नहीं हो सकती। निष्क्रियता के ..
‘मीरा और मीरा’ छायावाद की मूर्तिमान गरिमा महीयसी महादेवी वर्मा के चार व्याख्यानों का संग्रह है। महादेवी जी ने ये व्याख्यान जयपुर में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की राजस्थान शाखा के निमंत्रण पर दिए थे।
इन चार व्याख्यानों के शीर्षक हैं–मीरा का युग, मीरा की साधना, मीरा के गीत और मीरा का विद्रोह। इनमें महादे..
हिन्दी में सम्भवत: यह पहली किताब है जिसमें अकबर इलाहाबादी के ‘गांधीनामा’ की पृष्ठभूमि में मुस्लिम नवजागरण, उसके विविध पक्षों तथा उसमें योगदान देनेवाले प्रमुख उन्नायकों के अवदान के बारे में इतनी बारीक चर्चा की गई है। इसमें शाह वली उल्लाह से लेकर मौलाना आज़ाद तक जैसे विख्यात युगपुरुषों के अवदान पर विच..
महात्मा गांधी की हत्या दिल्ली में उनके प्रार्थना-सभा में जाते हुए हुई थी। लेकिन इस पर कम ध्यान दिया गया है कि गांधी जी ने प्रार्थना-सभा के रूप में अपने समय और स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान एक अनोखी नैतिक-आध्यात्मिक और राजनैतिक संस्था का आविष्कार किया था। थोड़े आश्चर्य की बात यह है कि आज भी यानी गांधी ..
विश्व के स्वप्नदर्शी और युगांतरकारी नेताओं में सर्वाधिक चर्चित और देश-काल की सीमाओं को लांघकर एक प्रतीक बन जानेवाले महात्मा गांधी की यह आत्मकथा न किसी परिचय की मुहताज है और न किसी प्रशंसा की। अनेक भाषाओं और देशों के असंख्य पाठकों के मन में राजनीति, समाज और नैतिकता से जुड़े सवालों को जगाने, विचलित कर..
सत्ता एवं विश्वासघातों का एक आख्यान—जो उद्घाटित करता है कि विभाजन के समय अंग्रेज़ों के वास्तविक उद्देश्य क्या थे, और किस प्रकार भारतीय नेतृत्व उनसे मात खा गया।भारत के विभाजन एवं अंग्रेज़ों की आशंकाओं के मध्य निर्णायक कड़ी थी—सोवियत रूस का मध्य-पूर्व में ऊर्जा के (तैल) कूपों पर नियंत्रण, जिस पर इति..
‘‘क़ायदे से अनुपम मिश्र न लेखक थे, न पत्रकार। वे साफ़ माथे के एक आदमी थे जो हर हालत में माथा ऊँचा और साफ़ रखना चाहते थे। उनकी निराकांक्षा उनकी बुनियादी बेचैनियों को ढाँप नहीं पाती थी। ये बेचैनियाँ ही उन्हें कई बार ऐसे प्रसंगों, व्यक्तियों, घटनाओं, वृत्तियों को खुली नज़र देखने-समझने की ओर ले जाती थीं..
भारतीय स्वाधीनता संग्राम-काल के एक साधारण व्यक्ति श्रीधर ठाकुर की असाधारण-कथा का यह बृहत् उपन्यास श्रीनरेश मेहता के विवादास्पद प्रथम उपन्यास ‘डूबते मस्तूल’ से बिलकुल भिन्न भावभूमि, संस्कार तथा शैली को प्रस्तुत करता है।कथा-नायक श्रीधर बाबू एक व्यक्ति न रहकर प्रतीक बन गए हैं, उन सब अज्ञात छोटे-छोटे ..