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Poetry - Nachnaniya

Poetry - Nachnaniya
रवीन्द्र भारती गाहे-बगाहे अपनी कविताएँ सुनाते रहते हैं। उन्हें सुनना हमेशा प्रीतिकर लगता है। साधारणजन के साथ धूल-माटी में घूमती कवि की रागात्मकता जिस पैनेपन के साथ उजागर होती है, वह विलक्षण है। वह न सिर्फ़ भीतर तक पैठ जाती है बल्कि उसका ताप भी स्मृतियों में देर तक बना रहता है।—जयप्रकाश नारायण; ‘प्रतिकार’, मार्च, 1978रवीन्द्र भारती की ग्राम्य अनुभूति की विशेषता केवल प्रकृति, केवल मनुष्य या केवल पशु-पंछी को लेकर ही नहीं दिखाई देती, प्रकृति-मनुष्य, पशु-पंछी का एक स्वतः समावेश होता है। सच कहा जाए तो भारती की कविताओं में लोकरंगों की एक अलग ही टोन है जो उनके दूसरे समकालीनों में देखने को नहीं मिलती।—किशन पटनायक; ‘समय’, दिसम्बर, 1980रवीन्द्र भारती बिलकुल हमारे आसपास बिखरे तमाम सन्दर्भों में से सबसे सहज तत्त्वों व तथ्यों को तिनकों की तरह उठाते हैं और किसी जादूगर की तरह इशारों में ही बस स्पर्श करते हैं और एकबारगी हमारी सोई संवेदनाएँ जीवन्त हो उठती हैं। दरअसल प्रतीकों का एक अनन्त विस्तार है उनकी कविताओं में। शहर, उसकी आपाधापी और तथाकथित तार्किकता में खोए जीवन के लिए उनकी कविताएँ बड़ी राहत हैं।—शशि भूषण; ‘इंडिया टुडे’, फरवरी, 2001

Poetry - Nachnaniya

Nachnaniya - by - Radhakrishna Prakashan

Nachnaniya -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP2825
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP2825
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 88p
  • Edition: 2010, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2010
₹ 150.00
Ex Tax: ₹ 150.00