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Linguistics

Linguistics
प्राचीन कवियों के पाठों का जैसा वैज्ञानिक सम्पादन चाहिए, वैसा हिन्दी में कम हुआ है। जायसी और तुलसी के पाठ-सम्पादन के महत्त्वपूर्ण कार्य हुए हैं। अन्य कवियों के पाठों के अभी इतने सन्तोषजनक परिणाम नहीं मिले हैं। भाषा विषयक शोध, ऐतिहासिक शोध तथा रचनाकार की साहित्यिक सैद्धान्तिक समालोचना के लिए सर्वप्रथ..
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जिन रचनाओं के आधार पर प्रस्तुत अध्ययन किया गया है, वे मोटे तौर पर 1000 ई. से लेकर 1600 ई. तक की हैं। राउरबेल का रचनाकाल 11वीं शती है। इसलिए यदि राउरबेल के प्रथम नखशिख की भाषा को, जिसमें अवधी के पूर्व रूपों की स्थिति मानी गई है, भाषा का प्रतिनिधि मान लिया जाए जिससे अवधी विकसित हुई तो अनुचित नहीं होगा..
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Prayojan Mulak Hindi
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डॉ. माधव सोनटक्के ने अत्यन्त सजगता और परिश्रम से यह पुस्तक लिखी है। राजभाषा होने के तर्क से हिन्दी भाषा का प्रयोग तो बढ़ा ही है, संचार-साधनों और माध्यमों के कारण प्रयोजन भी बदले हैं और तेज़ी से बदल रहे हैं। कम्प्यूटर क्रान्ति ने भाषा की प्रकृति को ही प्राय: बदल डाला है। इस प्रकार सम्प्रेषण तकनीक और ..
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स्वतंत्र भारत में हिन्दी विविध रूपों में प्रयुक्त होती है। इस पहलू का अध्ययन ‘प्रयोजनमूलक अध्ययन’ कहलाता है! मुम्बइया बाज़ार में ग्राहक दुकानदार से कहता है—“हम को फ्रेश भाजी माँगता है।” यह भी हिन्दी है। स्वास्थ्य-विज्ञान का यह वाक्य भी हिन्दी है—“मानव का रक्तचाप सन्तुलित रखना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक..
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शताब्दियों से ‘राष्ट्रभाषा’ के रूप में प्रतिष्ठित और लोक-व्यवहार में प्रचलित ‘हिन्दी’ पिछले कई दशकों से ‘राजभाषा’ के संवैधानिक दायरे में भी विकासोन्मुख है। ‘राष्ट्रभाषा’ की मूल प्रकृति तथा ‘राजभाषा’ की संवैधानिक स्थिति को अलगानेवाली प्रमुख रेखाएँ आज भी शिक्षित समाज के बहुत बड़े वर्ग के लिए अस्पष्ट-स..
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भाषा किसी भी देश की संस्कृति का अक्षय कोष होती है। यही परम्परा से संस्कृति के विचारों को लेकर आधुनिकता से मिलाती है। वस्तुत: भाषा जुम्मा-जुम्मा कह चुकने का अमूर्त माध्यम ही नहीं होती है, बल्कि ख़ुद को अपने समाज और परम्परा से जोड़े रखने का प्रेम-बन्धन भी है। वह भटकाव और गुमनामी के अँधेरे में आस्था की ..
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इस पुस्तक में राहुल जी के भाषा-सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण लेखों और भाषणों को संकलित किया गया है, जिनमें उन्होंने सामान्यत: भारत की भाषा-समस्या और विशेषत: हिन्दी पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।कहने की ज़रूरत नहीं कि भाषा-सम्बन्धी जो सवाल पचास साल पहले हमारे सामने थे, वे कमोबेश आज भी जस के तस हैं, बल्क..
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हिन्दी राष्ट्रभाषा बन गई, राजभाषा का दर्जा भी पा गई, लेकिन यह एक दुखद सत्य है कि स्वतंत्रता के इतने वर्ष बाद भी उसकी राह के रोड़े और समस्याएँ कमोबेश बनी हुई हैं। समस्याएँ अन्दरूनी भी हैं और बाह्य भी। अन्दरूनी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना तो भाषाविज्ञानियों और विद्वानों का ही है, किन्तु बाह्य समस्याओं का..
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सर्जनात्मक समीक्षा पर यह एक अनूठी पुस्तक है। प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के लेखों के इस संकलन से आन्तरिक और पाठ-केन्द्रित आलोचना की एक मुकम्मल तस्वीर सामने आ गई है।आलोचना स्वयं में एक अनुशासन है, जो अपनी सिद्धि के लिए एक निश्चित कार्य-प्रणाली का विकास करती है। व्यावहारिक आलोचना के इस सूत्र कथन को..
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प्रस्तुत पुस्तक ‘सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग’ तीन भागों में विभाजित किया गया है। पहले भाग में टिप्पण, प्रालेखन, संक्षिप्त लेखन और मुद्रण-फलक-शोधन पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। दूसरे भाग में परिशिष्ट है जिसमें दोषयुक्त और शुद्ध टिप्पणी के नमूने, विभिन्न प्रकार के प्रालेखों के नमूने, संक्..
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‘शब्दों का सफ़र’ शब्दों के जन्म-सूत्रों की तलाश है। यह तलाश भारोपीय परिवार के व्यापक पटल पर की गई है, जो पूर्व में भारत से लेकर पश्चिम में यूरोपीय देशों तक व्याप्त है। इतना ही नहीं, अपनी खोज में लेखक ने सेमेटिक परिवार का दरवाज़ा भी खटखटाया और ज़रूरत पड़ने पर चीनी एकाक्षर परिवार की दहलीज़ को भी स्पर्श..
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ब्लॉग-जगत में भाषा के प्रेमियों के बीच अजित वडनेरकर का एक बहुत रसीला ब्लॉग, शब्दों का सफ़र, अर्से से लोकप्रिय रहा है। अजित जी ने आम बोलचाल के शब्दों के रहस्य खोलकर भाषा की अन्तरराष्ट्रीय और संस्करण की जटिल और लम्बी प्रक्रिया से भी पाठकों का परिचय कराया है। इसका पुस्तकाकार प्रकाशन देखना सुखद है।—मृण..
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