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Fiction : Novel - Yuvraj Chunda

Fiction : Novel - Yuvraj Chunda
वर्मा जी का यह उपन्‍यास अपने पूर्ववर्ती उपन्‍यासों से भिन्‍न है। 'चित्रलेखा' को छो़ड़कर उन्‍होंने लगभग सभी उपन्‍यासों में आधुनिक समाज और उसकी समस्‍याओं को अपनी विषयवस्‍तु बनाया है। प्रस्‍तुत उपन्‍यास में वे मध्‍ययुग के इतिहास की ओर लौटे हैं। किन्‍तु इसका यह अभिप्राय नहीं कि उन्‍होंने इस उपन्‍यास के माध्‍यम से राजपूत-काल के इतिहास को दोहराने का प्रयत्‍न किया है। इतिहास इस उपन्‍यास का प्रस्‍थान-बिन्‍दु है और जहाँ इतिहास मौन है, वहाँ उपन्‍यासकार ने उस मौन को अपनी कल्‍पना से मुखर किया है। यदि कहा जाए कि इस उपन्‍यास के कथानक की बाहरी रूपरेखा-भर इतिहास से ली गई है लेकिन भराव उपन्‍यासकार की कल्‍पना का है, तो अनुचित न होगा।कथानक चित्‍तौड़ के राणा लाखा के ज्‍येष्‍ठ पुत्र युवराज चूण्‍डा के विलक्षण व्‍यक्तित्‍व को केन्‍द्र बनाकर रचा गया है। इतिहास ने मेवाड़ के इस 'बात के धनी' पराक्रमी युवराज की चर्चा एक हठी व्‍यक्तित्‍व के रूप में की है। उपन्‍यासकार ने इस व्‍यक्तित्‍व के चारों तरफ़ कल्‍पना के ताने-बाने से घटनाओं का एक व्‍यूह रचा है। उन्‍होंने एक प्रेरक कथा की कल्‍पना से उनके हठ की व्‍याख्‍या भी कर ली है। उपन्‍यास की मुख्‍य कथा मेवाड़ और मारवाड़ के दो राजपूत वंशों के बीच सम्‍बन्‍ध, षड्यंत्र, क्षुद्र स्‍वार्थों के लिए कलह और विग्रह की कथा है।

Fiction : Novel - Yuvraj Chunda

Yuvraj Chunda - by - Rajkamal Prakashan

Yuvraj Chunda -

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  • Stock: 2-3 Days
  • Model: RKP1883
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP1883
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 149p
  • Edition: 2005, Ed. 3rd
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 1978
₹ 0.00
Ex Tax: ₹ 0.00