Fiction : Novel - Dhapel
‘धपेल’ हिन्दी का ऐसा पहला उपन्यास है, जिसमें देश के सर्वाधिक सूखा-अकाल पीड़ित, भूख-ग़रीबी से त्रस्त-सन्तप्त तथा मृत्यु-उपत्यका का पर्याय कहे जानेवाले पलामू क्षेत्र का लोमहर्षक जीवन-संघर्ष सीधे-सीधे दर्ज हुआ है—बग़ैर किसी कलाबाज़ी या कृत्रिम लेखकीय कसरत
के।बांग्ला भाषा में पलामू पर विपुल साहित्य रचा गया है। पिछली ही शताब्दी में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के अग्रज सजीवचन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1880 में ‘पलामू’ नामक औपन्यासिक कृति का सृजन किया था। तब से लेकर महाश्वेता देवी जैसी शीर्षस्थ रचनाकार तक की क़लम पलामू पर निरन्तर चलती रही। हिन्दी में ही इस पर ज़मीनी अनुभवों से उपजी प्रामाणिक कृति का अभाव रहा है। ‘धपेल’ इस अभाव को प्रभावशाली ढंग से मिटाता है। 1993 के एक अकाल-सूखा प्रसंग को केन्द्र में रखकर रचा गया यह उपन्यास अन्ततः इस अभिशप्त भूगोल-विशेष की ही गाथा नहीं रह जाता, बल्कि भूख और ग़रीबी की जड़ों को उधेड़ते हुए अपने सम्पूर्ण देश और काल का मर्मान्तक आख्यान बन जाता है। ‘पलामू ग़रीब भारत का आईना है’ जैसे महाश्वेता देवी के पुराने चिन्ता-कथन का श्यामल ने अपने इस पहले उपन्यास में जैसा प्रामाणिक एवं मर्मस्पर्शी चित्रण-विश्लेषण किया है, इससे उनकी रचना-क्षमता एवं वर्णन-कौशल का पता चलता है।यहाँ ‘धपेल’ एक ऐसे भयावह प्रतीक के रूप में चित्रित हुआ है जो सभी प्रकार की जीवनी-शक्तियों को सोखने का काम करता है। दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए होनेवाले ब्रह्मभोज में असाधारण मात्रा में भोजन करनेवाले ‘धपेल’ बाबा अन्ततः व्यवस्था के उन तमाम धपेलों के आगे बौने साबित होते हैं, जो हर क्षेत्र में ऊर्जा को चट करने में जुटे हुए हैं। व्यवस्था के धपेलीकरण का यह सारा वृत्तान्त रोंगटे खड़े कर देनेवाला है।
Fiction : Novel - Dhapel
Dhapel - by - Rajkamal Prakashan
Dhapel -
- Stock: 10
- Model: RKP212
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP212
- ISBN: 0
- Total Pages: 296p
- Edition: 1998, Ed. 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back
- Year: 1998
₹ 145.00
Ex Tax: ₹ 145.00