Essay - Nyay Ka Sangharsh
न्याय की धारणा और समाज की व्यवस्था के समान रूखे विषय की विवेचना को भी रंजक बना देना इन लेखों की सार्थकता है। भाषा प्रवाह के ऊपर तैरते हुए विद्रूप की तह में सिद्धान्तों की शिलाएँ मौजूद हैं। मनोरंजन और विद्रूप का अभिप्राय रूखे और गम्भीर विषय को रोचक बना देना ही है। इन लेखों को पढ़कर आपके होंठों पर जो मुस्कराहट आएगी, वह आत्म-विस्मृत और आनन्दोल्लास की न होकर क्षोभ, परिताप और करुणा की होगी।इन लेखों में लेखक ने आत्म-विस्मृत समाज को क़लम की नोक से गुदगुदाकर जगाने की चेष्टा की है और समाज को करवट बदलते न देखकर कई जगह उसने क़लम की नोक समाज के शरीर में गड़ा दी है।—नरेन्द्र देव
Essay - Nyay Ka Sangharsh
Nyay Ka Sangharsh - by - Lokbharti Prakashan
Nyay Ka Sangharsh -
- Stock: 10
- Model: RKP3599
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP3599
- ISBN: 0
- Total Pages: 91p
- Edition: 2002, Ed. 1st
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back
- Year: 2000
₹ 60.00
Ex Tax: ₹ 60.00