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Literary Criticism - Nath Sampraday

Literary Criticism - Nath Sampraday
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ऐसे वांड़्मय-पुरुष हैं जिनका संस्कृत मुख है, प्राकृत बाहु है, अपभ्रंश जघन है और हिन्दी पाद है। नाथ सिद्धों और अपभ्रंश साहित्य पर उनके शोधपरक निबन्ध पढ़ते समय मन की आँखों के सामने उनका यह रूप साकार हो उठता है।‘नाथ सम्प्रदाय’ में गुरु गोरखनाथ के लोक-संपृक्त स्वरूप का उद्घाटन किया गया है। स्वयं द्विवेदी जी के शब्दों में 'गोरखनाथ ने निर्मम हथौड़े की चोट से साधु और गृहस्थ दोनों की कुरीतियों को चूर्ण-विचूर्ण कर दिया। लोकजीवन में जो धार्मिक चेतना पूर्ववर्ती सिद्धों से आकर उसके पारमार्थिक उद्देश्य से विमुख हो रही थी, उसे गोरखनाथ ने नई प्राणशक्ति से अनुप्राणित किया।

Literary Criticism - Nath Sampraday

Nath Sampraday - by - Lokbharti Prakashan

Nath Sampraday -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP3153
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP3153
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 231p
  • Edition: 2019, 1st Ed.
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back, Paper Back
  • Year: 2019
₹ 299.00
Ex Tax: ₹ 299.00