साहित्य आमतौर पर जीवन और समय के उन क्षणों को दर्ज करता है जो इतिहास की निगाह में अक्सर नहीं आते, या इतिहास की परम्परागत अवधारणा उन्हें अपने पन्नों पर अंकित करने लायक नहीं मानती। वे क्षण, जो अगर अनचीन्हे ही लुप्त हो जाएँ तो बहुत महत्त्वपूर्ण कुछ हमसे हमेशा के लिए छूट जाता है, साहित्य उन्हें संरक्षित ..
जीवन में सफल होने के लिए अध्ययन आवश्यक है। शिक्षा मनुष्य के व्यक्तित्व को संस्कारित और मन को परिष्कृत करती है। शिक्षा से ही हम स्वयं को समाज और देश के लिए उपयोगी बनाते हैं। हमारे सर्वांगीण विकास में हमारी बुद्धि, चेतना और विवेक का विकास भी शामिल है जिसके लिए सम्यक् अध्ययन ज़रूरी है।‘अध्ययन कैसे कर..
अफ़गान-संकट पर दुनिया की अनेक भाषाओं में सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं लेकिन यह ग्रन्थ ज़रा लीक से हटकर है। यह अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान संकट की जड़ों को खोजने के लिए उसके अतीत को खँगालता है और अतीत की व्याख्या उसके वर्तमान के सन्दर्भ में करता है। अफ़ग़ानिस्तान के अतीत और वर्तमान इस ग्रन्थ मे..
अगरिया' शब्द का अभिप्राय सम्भवत: आग पर काम करने वाले लोगों से है अथवा आदिवासियों के देवता, अघासुर से जिनका जन्म लौ से हुआ माना जाता है। अगरिया मध्य भारत के लोहा पिघलानेवाले और लोहारी करनेवाले लोग हैं जो अधिकतर मैकाल पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाते हैं लेकिन 'अगरिया क्षेत्र' को डिंडोरी से लेकर नेतरहाट तक..
पारसी थिएटर हमारी बहुमूल्य विरासत है, इसलिए हमें इसकी हिफ़ाज़त भी करनी है। ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ में पारसी नाटकों के मंचन की परम्परा रही है। यह भी एक सत्य है कि उत्तर भारत के सभी नगरों और महानगरों में रंगकर्मी इस परम्परा से जुड़ने पर सुख और सन्तोष का अनुभव करते हैं। शायद यही कारण है कि देश-भर ..
आज़ादी के साथ ही हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता का जो जख़्म देश के दिल में घर कर गया वो समय के साथ मिटने के बजाय रह-रहकर टीसता रहता है। इसे सींचते हैं दोनों सम्प्रदायों के तथाकथित रहनुमा। अफ़वाहों, भ्रान्तियों को हवा देकर साम्प्रदायिकता की आग भड़काई जाती है और उस पर सेंकी जाती है स्वार्थ की रोटी। चन्द ग..
हिन्दी भाषा फणीश्वरनाथ रेणु की ऋणी है उस शब्द-सम्पदा के लिए जो उन्होंने स्थानीय बोली-परम्परा से लेकर हिन्दी को दी। नितान्त ज़मीन की ख़ुशबू से रचे शब्दों को खड़ी बोली के फ़्रेम में रखकर उन्होंने ऐसे प्रस्तुत किया कि वे उनके पाठकों की स्मृति में हमेशा-हमेशा के लिए जड़े रह गए। उनके लेखन का अधिकांश इस अ..
‘अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो’ मामूली नाचने-गानेवाली दो बहनों की कहानी है, जो बार-बार मर्दों के छलावों का शिकार होती हैं। फिर भी यह उपन्यास जागीरदार घरानों के आर्थिक ही नहीं, भावात्मक खोखलेपन को भी जिस तरह उभारकर सामने लाता है, उसकी मिसाल उर्दू साहित्य में मिलना कठिन है। एक जागीरदार घराने के आग़ा फ़र..
‘आग्नेय वर्ष’ फ़ेदिन की प्रसिद्ध उपन्यास-त्रयी के पहले उपन्यास ‘पहली उमंगें’ के पात्रों से हम जहाँ विदा लेते हैं, उसके कई वर्ष बाद, अक्टूबर क्रान्ति के भी दो वर्ष बाद, हमारी मुलाक़ात फिर उन्हीं पात्रों से एकदम नए परिवेश में होती है—‘आग्नेय वर्ष’ उपन्यास में। उपन्यास की शुरुआत में एक रूसी सैनिक जर्मन ..
अग्निलीक’ उपन्यास आज़ादी के उत्तरार्द्ध की वह कथा है जिसके रक्त में आज़ादी के पूर्वार्द्ध यानी अठारह सौ सत्तावन के विद्रोह के गर्व की गरमाहट तो है, लेकिन अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कभी जो हिदू-मुसलमान एक साथ लड़े थे, आज उसी ज़मीन पर बदली हुई राजनीति का खेल ऐसा कि उनके मंतव्य भी बदल गए है और मंसूबे भी। यह..