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Funda (An imprint of Radhakrishna Prakashan)

सुपरिचित पत्रकार विवेक अग्रवाल की यह किताब मुम्बई की बारबालाओं की ज़‍िन्दगी की अब तक अनकही दास्तान को तफ़सील से बयान करती है। यह किताब बारबालाओं की ज़‍िन्दगी की उन सच्चाइयों से परिचित कराती है जो निहायत तकलीफ़देह हैं। बारबालाएँ अपने हुस्न और हुनर से दूसरों का मनोरंजन करती हैं। यह उनकी ज़ाहिर दुनिया ..
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सत्ता की हिस्सेदारी के लिए कुछ तबकों के बीच ठनी वर्चस्व की लड़ाई, जिनकी तरफ देश की आम जनता बड़ी उम्मीदों से ताकती रहती है।एक बलात्कार को राजनीति की बिसात बना देने वालों की कहानी, जिनसे लोग न्याय के लिए साथ की अपेक्षा रखते हैं।धर्म, जाति, मीडिया और राजनीति के नेक्सस की एक ऐसी आपराधिक कथा जो किसी का..
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"इस पुस्तक में माल एवं सेवा कर प्रणाली के सभी महत्त्वपूर्ण विषयों; जैसे—रजिस्ट्रेशन, रिटर्न, पेमेंट, ऑडिट, कर-निर्धारण कम्पोजीशन स्कीम, टीडीएस ई-कॉमर्स, ट्रांजिशनल प्रावधान, ई-वे बिल, मुनाफ़ाखोरी-रोधी नियम, आपूर्ति-स्थल नियम, इनपुट टैक्स-क्रेडिट, टैक्स-इनवॉइस आदि पर न केवल महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्..
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नब्बे का दशक सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों के लिए इस मायने में निर्णायक साबित हुआ कि अब तक के कई भीतरी विधि-निषेध इस दौर में आकर अपना असर अन्तत: खो बैठे। जीवन के दैनिक क्रियाकलाप में उनकी उपयोगिता को सन्दिग्ध पहले से ही महसूस किया जा रहा था लेकिन अब आकर जब खुले बाज़ार के चलते विश्व-भर की नैतिकताएँ एक ..
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ख़ुश रहने के लिए कुछ ज़्यादा करने की ज़रूरत नहीं है। बस सहज होने की कोशिश करें, और आप देखेंगे कि जिसे आप दु:ख मानकर अपनी ज़िन्दगी का उल्लास छोड़ बैठे हैं, उसमें भी एक सुख है। होनी को सरल भाव और खुले मन से स्वीकारें और आप देखेंगे कि आपकी इच्छाशक्ति आपको कहाँ ले जाती है। हँसिए और जब मन भर जाए तो खुलकर ..
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शरलॉक होम्स ब्रिटिश लेखक सर आर्थर कॉनन डायल का काल्पनिक चरित्र है, लेकिन लोकप्रियता के मामले में वह अपने रचयिता से  कहीं ज़्यादा प्रसिद्ध है। वर्ष 1887 में अपनी पहली जासूसी कहानी ‘ग्लोरिया स्कॉट’ में डायल ने उसे पहली बार काग़ज़ पर उतारा और फिर वह उनके चार उपन्यासों तथा छप्पन कहानियों में अपराधों की ..
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वह एक छोटे-से गाँव का छोटा-सा बैंक है। बस सौ-डेढ़ सौ खाते ही खुले होंगे वहाँ। लेकिन हर महीने की तीसरी तारीख़ को पास ही के एक हाइवे के तीन बड़े कारख़ानों से बहुत सारा पैसा आके यहाँ जमा होता है। सिर्फ़ तीन घंटों के लिए।और इन तीन घंटों में जो होता है उसके पीछे कुछ मील दूर बसे एक क़स्बे की बीस साल लम्बी..
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एक रहे पुद्दन। गाँव रहा नरहरपुर। वे चले ससुराल–नौशादपुर। ब्याह था साली का। दौर था कोरोना का। वायरस की थी उत्सवों और मेलजोल से यारी। फैलाने लगा अपना पंजा। लोगों ने जिसे लिया हल्के में, वही पड़ा भारी। और उनकी बिंदास जिंदगी पर डाल दिया डर और आशंकाओं का जाल। फिर क्या हुआ? क्या हो सकी पुद्दन की साली की शा..
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