भीमराव आंबेडकर हिन्दुओं में पहले दलित या निम्न जाति नेता थे जिन्होंने पश्चिम जाकर पीएच-डी. जैसे सर्वोच्च स्तर तक की औपचारिक शिक्षा हासिल की थी। अपनी इस अभूतपूर्व उपलब्धि के बावजूद वह अपनी जड़ों से जुड़े रहे और तमाम उम्र दलित अधिकारों के लिए लड़ते रहे। भारत के सबसे प्रखर और अग्रणी दलित नेता के रूप में आ..
चे को किसी ‘महामानव’ या ‘मसीहा’ के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए। चे अपनी कमियों, अच्छाइयों, शक्तियों, कमज़ोरियों के साथ पूरी सम्पूर्णता में उस समाज के मनुष्य का, जिसमें मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का न तो अस्तित्व हो और न ही सम्भावना, प्रतिनिधित्व करते हैं। इस महागाथा के सात सोपान हैं ‘बचपन के दि..
समसामयिक विषयों पर रचित इन आलेखों में समाज की विभिन्न गतिविधियों एवं परिस्थितियों का प्रतिबिंब बखूबी झलकता है। ये रचनाएँ विविध सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक अभिव्यंजनाओं के मानदंड को अभिव्यक्त करती हैं। इन आलेखों को सारगर्भित परंतु सरल भाषा में सँजोया गया है। लेखक ने अपनी बात ‘धाकड़’ ..
1986 में 90 वर्ष की आयु में कृष्णमूर्ति की मृत्यु हुई, मेरी लट्यंस द्वारा लिखित उनकी वृहदाकार जीवनी के दो खंड ‘द यिअर्ज़ ऑव अवेकनिंग’ (1975) तथा ‘द यिअर्ज़ ऑव फुलफिलमेंट’ (1983) प्रकाशित हो चुके थे। तीसरा खंड ‘दि ओपन डोर’ 1988 में प्रकाशित हुआ। इन तीनों खंडों को मेरी लट्यंस ने ‘द लाइफ एंड डेथ ऑव जे...
1986 में 90 वर्ष की आयु में कृष्णमूर्ति की मृत्यु हुई, मेरी लट्यंस द्वारा लिखित उनकी वृहदाकार जीवनी के दो खंड ‘द यिअर्ज़ ऑव अवेकनिंग’ (1975) तथा ‘द यिअर्ज़ ऑव फुलफिलमेंट’ (1983) प्रकाशित हो चुके थे। तीसरा खंड ‘दि ओपन डोर’ 1988 में प्रकाशित हुआ। इन तीनों खंडों को मेरी लट्यंस ने ‘द लाइफ एंड डेथ ऑव जे...
डॉ. लोहिया के चालीस साल के राजनीतिक जीवन में कभी उन्हें सही मायने में नहीं समझा गया। जब देश ने उन्हें समझा, लोगों की उनके प्रति चाह बढ़ी और उनकी ओर आशा की निगाहों से देखना शुरू किया तो अचानक ही वे चले गए। हाँ, जाते-जाते अपना महत्त्व लोगों के दिलों में जमा गए।लोहिया का महत्त्व! उन्हें गए इतना समय ब..