रघुवीर सहाय का जीवन-भर का काम प्रभूत और बहुमुखी है, जैसा कि इस जीवनी से एक बार और स्पष्ट होगा। इतना बहुमुखी और इतना मौलिक है कि सब कुछ पर यहाँ लिखा भी नहीं जा सका लेकिन उनके सोच के दायरे में आनेवाली कुछ चीज़ों का संकेत और सार यहाँ है, जिन पर अभी तक दुर्भाग्य से हमारा ध्यान नहीं गया है। मेरे ख़याल से ..
जनविरोधी होना मीडिया का षड्यंत्र नहीं, बल्कि उसकी संरचनात्मक मजबूरी है। एक समय था जब मास मीडिया पर यह आरोप लगता था कि वह कॉरपोरेट हित में काम करता है। 21वीं सदी में मीडिया ख़ुद कॉरपोरेट है और अपने हित में काम करता करता है। कॉरपोरेट मीडिया यानी अख़बार, पत्रिकाएँ, चैनल और अब बड़े वेबसाइट भी प्रकारान्त..
‘उजली हँसी के छोर पर’ (1960) और ‘अगली शताब्दी के बारे में’ (1981) संग्रहों के बाद परमानंद श्रीवास्तव की कविताओं का तीसरा संग्रह ‘चौथा शब्द’ एक दशक से कुछ अधिक के अन्तराल पर प्रकाशित हो रहा है। कविता के इतिहास में यह बीता हुआ दशक कविता के लिए ही कठिन समय बनकर उपस्थित नहीं हुआ, शब्द या अभिव्यक्ति के स..
पता नहीं किस भले आदमी ने बता दिया कि डेमोक्रेसी के तीन खंभे होते हैं—न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका! तीन खंभों पर कभी कोई इमारत टिकी है जो डेमोक्रेसी टिकेगी? गनीमत समझो कि अपने देश में डेमोक्रेसी का एक चौथा खंभा 'धर्मपालिका’ का भी है। अगर यह न होता तो डेमोक्रेसी का कब का सत्यानाश हो जाता। यह ख..
‘कुठाँव’ में स्त्री और पुरुष का, प्रेम और वासना का, हिन्दू और मुसलमान का और ऊँची-नीची जातियों का एक भीषण परिदृश्य रचा गया है। अब्दुल बिस्मिल्लाह समाज और विशेष रूप से मुस्लिम समाज की आन्तरिक विडम्बनाओं और विसंगतियों को बख़ूबी चित्रित करते रहे हैं। इस उपन्यास में मेहतर समाज की मुसलमान औरत इद्दन और उसक..