अज्ञान रूपी पालने मेंज्ञान रूपी शिशु सुलाकरसकल वेदशास्त्र रूपी रस्सी से बाँधकर झूला,झुलाती हुई पालनेलोरी गा रही है, भ्रान्ति रूपी माई!जब तक पालना न टूटे, रस्सी न कटेलोरी बन्द न होतब तक गुहेश्वर लिंग के दर्शन नहीं होंगे॥अल्लम सृजनशीलता के प्रति विश्वास रखते हैं कि ‘नि:शब्द ज्ञान क्या ..
राजनीति, कला, खेल-कूद, विज्ञान, समाज-सेवा सभी क्षेत्रों में भारत की महिलाओं ने अपने योगदान की अनूठी छाप छोड़ी है। इंदिरा गांधी से इंदिरा नूयी तक, सरोजिनी नायडू से सायना नेहवाल तक, कमला देवी चट्टोपाध्याय से कल्पना चावला तक, अरुणा आसफ़ अली से अरुणा राय तक, ये सभी भारतीय महिलाएं अपने अलग-अलग कार्यक्षेत्र..
“श्री अरविन्द के व्यक्तित्व में योगी, कवि और दार्शनिक, तीनों का समन्वय था और वे सब-के-सब एक ही लक्ष्य की ओर गतिशील थे।...उनके दर्शन और काव्य की जो वास्तविक शक्ति है, उनके भीतर जो प्रामाणिकता है, वह श्री अरविन्द की योगसाधना से आई है। योग के बल से ही उन्होंने सत्य को देखा और योग के बल से ही उन्हें यह ..
दीपशिखा—संतोष शैलजा‘दीपशिखा’ केवल निबंध-संग्रह नहीं, अपितु जीवन के विविध रूपों को उजागर करनेवाली रचना है। इसमें समसामयिक व सामाजिक प्रश्न हैं और परिवार एवं संस्कृति से संबंधित विषय भी। सुप्रसिद्ध लेखिका संतोष शैलजा के संवेदनशील हृदय ने उन सभी प्रश्नों के समाधान ढूँढ़ने का प्रयास किया है। इनके अलाव..
दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएँ संगृहीत हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है! सभी रचनाओं को ऐसी पीठिका देना न संभव होता है और न रुचिकर, अतः रचनाक्रम की दृष्टि से यह चित्रगीत बहुत बिखरे हुए ही रहेंगे! मेरे गीत अध्यात्म के अमूर्त आकाश के नीचे लोक-गीतों की धरती पर पीला ..
छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल देशवासियों को ही नहीं, अपितु विदेशियों को भी अपनी विशिष्ट एवं समृद्ध आदिवासी एवं लोक-संस्कृति के कारण आरम्भ से ही आकर्षित करता रहा है। यहाँ की आदिवासी एवं लोक-संस्कृति में साहित्य कला के अन्तर्गत वाचिक परम्परा के सहारे न जाने कब से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संचरित होती आ रही..
हिन्दी में हास्य-व्यंग्य कविताओं का उदय मुख्यतः स्वतंत्रता के बाद हुआ। बेढब बनारसी, रमई काका, गोपालप्रसाद व्यास और काका हाथरसी आदि कवियों ने हिन्दी की ज़मीन में हास्य-व्यंग्य कविताओं के बीज बोए। कालान्तर में, ख़ासकर सन् 1970 के बाद, ये बीज भरपूर फ़सल बने और लहलहाए। जीवन में बढ़ते तनाव ने हास्य-व्यंग्य..
द्विवेदी-युग के उत्तरार्ध में आचार्य शुक्ल के रूप में पहली बार हिन्दी-आलोचना ने पारम्परिक भारतीय काव्य-चिन्तन की अन्तरवर्ती प्राणधारा और आधुनिक यूरोप के विज्ञानालोकित कला-चिन्तन के उल्लसित प्रवाह की संश्लिस्ट शक्ति का आधार लेकर अपने मौलिक व्यक्तित्व का निर्माण किया, उनका मूल स्वर रीति-विरोधी और लोक-..
मैं चुप रहा। वह बोलता गया-“तुम ऐसा करो, बेनीपुरी का जो 'मोनोग्राफ' तुम तैयार कर रहे हो, उसके लिए तुम सच्चाई की कल्पना के 'मोड' (Mode) में जाओ। खुद बेनीपुरी ने अपने बारे में जो कुछ लिखा और दूसरे समकालीनों ने उनके बारे में जो लिखा, उसको पढ़ो और देखो। पढ़कर देखने और पढ़ते-पढ़ते देखने का प्रयोग करो। मा..
बुद्धि से संचालित, मूल्यों से प्रेरित इंफोसिस 1981 से ही नए भारत की अग्रणी कंपनी बनी हुई है। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में इसने अप्रतिम और अद्भुत कार्य किया है और वैश्विक स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।इस कंपनी ने अपनी काम करनेवाले सहयोगियों, प्रबंधकों और शीर्ष नेतृत्व के बीच एक लय, एक समन्वय ..
ऐतिहासिक उपन्यास लेखन पर कोई स्पष्ट राय अब तक नहीं बन सकी है। रोमांस और त्रासदी का अंकन कर उपन्यासकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है। लेकिन प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी ‘इतिहास-सृजन’ को अतिरिक्त ज़िम्मेदारी से निभाती हैं। ऐसे लेखन के लिए एक ख़ास प्रवणता, कथा के बजाय देश, काल, पात्र और आचार-व्यवह..
‘कर विजय हर शिखर’ पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए एक प्रेरक है। क्योंकि यह केवल आत्मकथा नहीं है, बल्कि एक आम घरेलू महिला के शिखर तक पहुँचने का एक बहुत ही अद्भुत व रोमांचकारी सफर है। पुस्तक में कई ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं का भी जिक्र है, जो काफी महत्त्व रखती हैं। यह पुस्तक सिलिगुड़ी की एक आम लड़की प्रे..