श्रीलाल जी द्वारा की गई रचना की मीमांसा आलोचना के पूर्वाग्रहों से मुक्त रहती है। वह किसी ढर्रे की आलोचना नहीं होती है, न किसी स्थापना की आलोचना होती है। वह रचना को समझने की कोशिश होती है।इस पुस्तक में श्रीलाल जी ने कहानीकार अज्ञेय के बारे में बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही है कि ‘वे लोक-जीवन के कथाकार ह..
संवाद-संलाप—समाज से, अपने बीते हुए से, अपने आज से और अन्ततः अपने आप से—अपने के भी अपने से। उस अपने से जो दिन-रात समय की गर्दिश में तिल-तिल मिटता है, बनता है और इसी मिटने-बनने की प्रक्रिया में कहीं अपने समय और अपने समाज की धड़कनों को कुछ और क़रीब से सुन पाता है—यही गोचर-अगोचर सृष्टि का भीतर से सुनना—आ..
मुकुन्द लाठ हमारे मूर्धन्य विचारकों और संगीतवेत्ताओं में से एक हैं। सुखद संयोग यह है कि उन्होंने कविताएँ भी लिखी हैं और वे अपने ढंग के अकेले कवि हैं। विस्मय की बात यह है कि उनकी कविता में संसार की पदार्थमयता और उनकी सहज वैचारिकता में न तो कोई अलगाव है और न ही एक का दूसरे पर कोई बोझ। वे अपने आसपास को..
रंगमंच के विविध पहलुओं पर रोशनी डालती विख्यात नाट्य-चिन्तक व निर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर की यह पुस्तक उनकी पहली पुस्तकों की ही तरह हिन्दी में आधुनिक नाट्य-विमर्श की कमी को पूरा करती है।देवेन्द्र राज अंकुर गत कई दशकों से भारतीय रंगमंच और ख़ास तौर से हिन्दी थिएटर के साथ गहराई से जुड़े रहे हैं। नाटक..
एक प्रचलित मान्यता के मुताबिक भारत-यूरोपीय संघ के संबंध को ब्रिटिश प्रिज्म के जरिए बेहतर ढंग से देखा जा सकता है। यह मान्यता भारत में सिकंदर के आगमन और रोमन साम्राज्य के भारत के साथ व्यापार जैसे ऐतिहासिक प्रमाण को नजरअंदाज करती है। हाल के समय में सांस्कृतिक शख्सियत सत्यजित रे कहीं और के बजाय पेरिस मे..
एक दिन दुनिया के दोनों सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देशों में अपनी-अपनी महानता को लेकर बहस हो गई। अमेरिका कहने लगा, ‘‘बड़े-बड़े आतंकी मुझसे घबराते हैं। दुनिया मेरा लोहा मानती है। अतः मैं तुझसे बड़ा हूँ।’’ भारत ने अपनी मूँछ मरोड़ते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे बड़प्पन को नहीं मानता। तू हमारे सामने टिकता कहाँ है? त..
सृष्टि के आदि से लेकर अब तक नारी-शक्ति का बार-बार चमत्कार देखने को मिला है । जब-जब अधर्म ने धर्म को, अन्याय ने न्याय को और असत्य ने सत्य को पराभूत करने का प्रयत्न किया, तब-तब ही नारी-शक्ति ने आगे बढ़कर धर्म, न्याय और सत्य की रक्षा की है । उसीके कारण आज हम नारी-शक्ति की पूजा करते हैं और युगों..
नाटक और रंगकर्म की सन्दर्भ सामग्री के रूप में यह रंगकोश एक नई पहल है। इसके पहले खंड में हिन्दी में मंचित नाटकों का इतिहास संकलित है। कब किसने किस नाटक को निर्देशित किया, नाटक किसका लिखा हुआ है, और उसे किस दल ने मंच पर उतारा, आदि-आदि ब्योरों से सम्बन्धित यह कोश सहज ही हमें नाट्य-लेखन और रंगकर्म के इत..
नाटक और रंगकर्म की सन्दर्भ सामग्री के रूप में यह रंगकोश एक नई पहल है। इसके पहले खंड में हिन्दी में मंचित नाटकों का इतिहास संकलित है। कब किसने किस नाटक को निर्देशित किया, नाटक किसका लिखा हुआ है, और उसे किस दल ने मंच पर उतारा आदि-आदि ब्यौरों से सम्बन्धित यह कोश सहज ही हमें नाट्य-लेखन और रंगकर्म के इति..
“रतन थियाम आधुनिक भारतीय रंगमंच में एक अनूठी उपस्थिति रहे हैं। उन्होंने मणिपुर की लोक-परम्परा, व्यापक भारतीय परम्परा और आधुनिकता के बीच बहुत सघन-उत्कट और रंग प्रभावी रिश्ता अपने रंगकर्म में खोजा-पाया है। उनसे इस लम्बी बातचीत में उनके रंग-जीवन, संघर्ष, तनावों आदि के साथ-साथ व्यापक भारतीय रंगमंच के द्..
भूपेन पर पहली किताब महेन्द्र देसाई ने लिखी। गाढ़े दोस्त थे भूपेन और महेन्द्र। लिखनेवाला हो महेन्द्र जैसा औघड़, और लिखा जा रहा हो भूपेन जैसे खिलन्दड़े और उसकी कला पर तो किताब असामान्य होनी ही थी। हुई। विलक्षण, मस्त, अपने विषय की आत्मा में प्रवेश करने को आतुर और, उसी कारण, अपनी विश्वसनीयता के प्रति ला..