'हम भयावह रूप से हिंसक समय में रह रहे हैं। हिंसा, हत्या, आतंक, मारपीट, असहिष्णुता, घृणा आदि भीषण दुर्भाग्य से एक नई नागरिक शैली ही बन गए हैं। असहमति की जगह समाज और सार्वजनिक संवाद में तेज़ी से सिकुड़ रही है। हमारे युग में अहिंसा के सबसे बड़े सार्वजनिक प्रयोक्ता महात्मा गाँधी का 150वाँ वर्ष हमने हाल ..
बीते वर्षों के दौरान साम्प्रदायिकता का उभार भारतीय राजनीति में एक बड़े दावेदार के रूप में हुआ है। सो भी इतने ज़ोर-शोर से कि हमारे संवैधानिक ढाँचे के लिए ख़तरा बनता दिखाई दे रहा है। अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श में भी उत्तरोत्तर धार्मिक शब्दावली का प्रयोग ज़्यादा दिखने लगा है। विश्व के भी मानवाधिकार..
नोबेल-पुरस्कार-विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन संस्कृति और समाज-विज्ञान के भी मौलिक चिन्तक हैं। अपनी पूर्व प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय अर्थतंत्र, इतिहास और संस्कृति’ में उन्होंने संस्कृति और मानव धर्म से जुड़े प्रश्नों पर विस्तारपूर्वक विचार किया था। अब अपनी इस नई पुस्तक में वे एक सर्वथा नए विषय और मौलि..
छोटे शहरों के रचनाकारों के बड़े केन्द्रों में उत्प्रवास और उनके मनोजगत में केन्द्र के सर्वग्रासी प्रसार और आधिपत्य के इस भयावह दौर में बद्री नारायण की कविता गुलाब के बरक्स कुकुरमुत्ते के बिम्ब को रचनेवाली काव्य-परम्परा का विस्तार है। यह एक ऐसा समय है जब केन्द्र अपने अभिमत का उत्पादन ही नहीं कर रहा है..