दुनिया की आधी आबादी महिलाओं की हैं, लेकिन दुनिया के उत्तरदायी पदों पर उनकी भागीदारी एक चौथाई से भी कम है। यदि हम संसार के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों की बात करें तो महिलाओं को यह उच्च पद बहुत कम मिले हैं, परंतु जब भी उन्हें अवसर दिया गया है उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कार्यशैली की छाप छोड़ी है।..
‘भारत की माटी मेरा स्वर्ग है, ‘भारत का कल्याण ही मेरा कल्याण है’ फेंक दे यह शंख बजाना, छोड़ दे प्रशस्ति गान करना यदि तेरे पास दो वक्त की रोटी न हो’-ये शब्द उस तेजस्वी संन्यासी के हैं जो हमारी सांस्कृतिक तथा राजनीतिक स्वाधीनता के जनक थे। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत स्वामी विवेकानन्द के विलक्षण प्रभावी ज..
प्रस्तुत शब्दकोश में उर्दू के बहुप्रचलित शब्दों के साथ ही अरबी, फारसी, तुर्की से आगत उन उपयोगी शब्दों को भी जमा किया गया है जो अच्छी हिन्दी का आवश्यक अंग बन गए हैं या जिनकी सहायता से उर्दू साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है तथा उर्दू शब्दों के सही उच्चारण और अर्थ को समझा जा सकता है। यह व..
प्रसिद्ध लेखक कमलेश्वर की आत्मकथा के दो खंड प्रकाशित होकर बहुत लोकप्रिय हो चुके हैं। ये एक व्यक्ति से जुड़े होने पर भी अपने-आप में स्वतंत्र हैं और समय के क्रम में मोटे तौर पर ही चलते हैं। तीसरे खंड, 'जलती हुई नदी' की थीम भी एक रहस्यमयी स्त्री से बँधी आरम्भ से अंत तक चलती है। उसी के साथ वे व्यक्तियों..
उपन्यास हो, कहानी, नाटक या निबंध, हर विधा के लिए गिरिराज किशोर प्रायः सामयिक विषय को ही अपना कथानक बनाते हैं। वह कल्पना की ऊंची-ऊंची उड़ानें नहीं भरते वरन् ज़िंदगी की विविधताओं और जटिलताओं को जीने में मदद करते हैं। उपन्यास यातनाघर में विष्णु नारायण अपने आला अफसरों की तानाशाही और मनमानी झेलता-झेलता इतन..
विष्णु सखाराम खाण्डेकर का जन्म 19 जनवरी, 1898 को सांगली में हुआ था। बम्बई विश्वविद्यालय से मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास करके आगे पढ़ने के लिए फग्र्युसन कालेज में प्रवेश लिया। पर कालेज छोड़ना पड़ा और 1920 में शिरोद नामक गांव में एक स्कूल में अध्यापक हो गए। नौ वर्ष बाद खाण्डेकर जी का विवाह हुआ। 1948 मे..
स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व बहुआयामी था। उनके समग्र जीवन और विचारधारा को प्रस्तुत करती है यह जीवनी। स्वामी विवेकानन्द की जीवनी और विचारधारा भारतवासियों के लिए प्रारम्भ से ही प्रेरणात्मक रही है। उनके ओजस्वी विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने स्वतंत्रता से पहले थे।..
यह उपन्यास श्री अरविन्द की साधना का प्रेरक, जीवंत चित्रण है तथा उनकी अलौकिक अनुभूतियों और दिव्य जगत का अंतरपट खोलता है। साथ ही, जीवन के अनेक प्रश्नों के मर्म पर से पर्दा हटाता है।..