संगीत प्राचीन काल से ही समाज का अभिन्न अंग रहा है। प्रत्येक संस्कार, उत्सव, त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान, फसल की बुवाई-कटाई आदि अवसरों पर गाए जानेवाले लोकगीत हमें आध्यात्मिकता, सामाजिकता, कर्तव्यपरायणता व श्रम-परिहार की चेतना प्रदान करते हैं। परीक्षण और अनुसंधान से इस तथ्य की पुष्टि हुई है कि गायें स..
ज्ञान मनुष्य के लिए तभी सहायक होता है, जब वह अपने साथ-साथ समाज को ऊँचा उठाने का सामर्थ्य रखता हो और ब्रह्मज्ञान की सार्थकता तब होती है जब साधक अपने-आपको इतनी ऊँचाई तक ले जाए कि वह त्रिकालज्ञ बनाकर समाज को आत्मकल्याण के मार्ग में ले जाए। ब्रह्मज्ञानी के लोक और परलोक दोनों सुन्दर और सुखद हो जाते हैं,..
भारतीय पौराणिक साहित्य-भंडार में एक-से-एक अप्रतिम बहुमूल्य रत्न भरे पड़े हैं। अष्टावक्र गीता अध्यात्म का शिरोमणि ग्रंथ है। इसकी तुलना किसी अन्य ग्रंथ से नहीं की जा सकती।
अष्टावक्रजी बुद्धपुरुष थे, जिनका नाम अध्यात्म-जगत् में आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। कहा जाता है कि जब वे अपनी माता के ग..
वाचिक साहित्य अर्थात् लोक-साहित्य की सुदीर्घ परंपरा और उसके विश्वव्यापी विस्तार से आज बुद्धिजीवी वर्ग और साहित्यकार भी न केवल परिचित हुए हैं वरन् उसका महत्त्व भी स्वीकार करने लगे हैं। लोक-साहित्य की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी सुदीर्घ और समृद्ध है। इसके माध्यम से सांस्कृतिक विकास और सभ्यता के उत्थान-पतन क..
भारत एक महान् देश है, जिसके संबंध में परिचय देने वाली यह पुस्तकमाला भारत के सभी पक्षों का पूरा विवरण देती है। प्रत्येक पृष्ठ पर दो रंग में कलापूर्ण चित्र, सुगम भाषा और प्रामाणिक तथ्य। इस पुस्तकमाला के लेखक हैं, प्रसिद्ध साहित्यकार, इतिहास और कला के मर्मज्ञ डॉ. भगवतशरण उपाध्याय।..
‘फरटाइडिगुं डेअर वोल्फ़े’ (भेड़िए की वकालत)—इस शीर्षक के कविता-संग्रह के साथ बीसवीं सदी के पचास के दशक में एक नौजवान जर्मन कवि सामने आया—हंस माग्नुस एंत्सेनस्बेर्गर। उनकी मणिभीय भाषा, तीखे व्यंग्य व विद्रोही तेवर से स्पष्ट हो गया था कि यहाँ द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर जर्मन समाज के विरोधाभासों को गहरा..
मानव की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आदि सभी चेतनाओं का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप लोकगीतों में समाहित रहता है। दरअसल ये लोकगीत हमारे वे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ हैं जिनमें साधारण से साधारण घटना को आम लोगों ने लोकगीतों के अन्दाज़ में सहजता से दर्ज किया है। अवधी, भोजपुरी, ब्रज, बुन..
लोकगीत माटी की महक हैं, संस्कारों के स्वर हैं, अन्तर की आवाज़ हैं। इनकी पूरी व्यापक धरोहर श्रव्य परम्परा में सिमटी हुई है। शैलेश जी ने लुप्त होते लोकगीतों को सुरक्षित रखने और इनके संरक्षण हेतु स्तुतनीय प्रयास किया है। वह स्वयं एक जानी-मानी गायिका हैं। कुछ लोकगीतों की स्वरलिपि व सी.डी. देने से पुस्तक..
सूर के कृष्ण-प्रेम तथा भक्ति के सागर ‘सूरसागर’ का सबसे मूल्यवान मोती है ‘भ्रमरगीत’ जिसमें सूरदास के हृदय से निकली अपूर्व रसधारा बही है। ‘भ्रमरगीत सार’ के संकलन-सम्पादन का कार्य आचार्य शुक्ल ने 1920 में शुरू किया था, लेकिन ठीक से पूरा होने में इसे कुछ समय लगा। लगभग चार सौ पदों के इस संचयन में उस समय ..
भारतीय कवि और साहित्यकार प्रारम्भ से ही राष्ट्रीयता की पवित्र भावना को अपने काव्य औैर चिंतन का विषय बनाते रहे हैं, जब-जब भी आवश्यकता हुई है, कवियों ने वीरों की शिराओं में बहते रक्त की गति को तीव्र करने के लिए ओज और वीरता के गीत गाए हैं ताकि शत्रु की ललकार को अपने लिए चुनौती मानकर वे राष्ट्रीय सीमाओं..
गीतों का बहुत बड़ा महत्त्व है। कहानी की अपेक्षा गीत किसी विषय को संप्रेषित करने से अधिक सफल हैं।विद्यालयों यें विभिन्न अवसरों यथा—महापुरुषों की जयंतियों, राष्ट्रीय पर्वों और अन्य उत्सवों पर गीत गाने की परंपरा है। ये गीत छात्रों-अध्यापकों को उस अवसर विशेष के भावों में सराबोर होने की क्षमता रखते हैं।..
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदौर में हुई। 22 वर्ष की उम्र में महादेवी जी बौद्ध-दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहती थीं लेकिन महात्मा गांधी से संपर्क होने के बाद अपना निर्णय बदलकर वह समाज सेवा में लग गईं। नारी-शिक्षा प्र..