‘दूर दुर्गम दुरुस्त’ दरअसल पूर्वोत्तर से जुड़ी यात्राओं की एक दस्तावेज़ है। इसे आप एक घुमक्कड़ की मनकही भी कह सकते हैं जो अक्सर अनकही रह जाती है। मुख्यधारा में पूर्वोत्तर की जितनी भी चर्चा होती है, उसमें उसके दुर्गम भूगोल की चीख़-पुकार ही शामिल रहती हैं। यह किताब उनसे विलग उन आहटों को सुनने की कोशिश..