न संस्कृति कोई भौतिक वस्तु है; न समाज; न इतिहास प्रदत्त। किसी विशिष्ट मानव समुदाय की सांस्कृतिक विशेषता उसके प्राणिक भौतिक रूप से अथवा व्यावहारिक संबंधों की रचना से निर्गलित होती है। वस्तुतः मानव समाज की रचना के सूत्र भी जिस विधि-विधान में संगृहीत होते हैं, उसका आधार मूल्यचेतना ही होती है। मूल्यचेतन..
हमारा देश अनेक धर्मों एवं जातियों में विभक्त है और सैकड़ों पंथ अपने-अपने दृष्टिकोण से समाज को सुदृढ़ बनाने में प्रयासरत हैं। पर आज भी हमारा समाज अनेक कुरीतियों से ग्रस्त है और आएदिन मनुष्य लालचवश तंत्र-मंत्र एवं तांत्रिकों के चक्कर में फँसकर धन-हानि क्या, प्राण-हानि तक कर डालता है। बाह्य सुख-सुविधाए..
राम : सुनो लक्ष्मण! आर्य नारी तारा और मंदोदरी से भिन्न शीलवाली होती है, इसे प्रमाणित करने के लिए सीता को अग्नि-परीक्षा देनी ही होगी। लंका भोगवादी, यांत्रिक और आसुरी सभ्यता का केन्द्र रही है। स्वच्छंद-उन्मुक्त विलास ही इस सभ्यता में नारी के जीवन का उपयोग है। ऐसे परिवेश में नारी के व्यक्तित्व का पूर..
हमारे देश की एकता का मुख्य आधार हमारी संस्कृति है। यही कारण है कि हमारे देश के राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ही संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार शरीर बिना आत्मा के निरर्थक है, उसी प्रकार संस्कृति से रहित देश निष्प्राण हो जाता है। भारत देश मूलतः संस्कृति प्रधान देश है। हमारे यहाँ जीवन मूल्यों का ..
भारतीय परम्परा में वेद को अनादि अथवा ईश्वरीय माना गया है। इतिहास और संस्कृति के विद्यार्थी के लिए इनमें भारतीय एवं आद्यमानव परम्परा की निधि है। महर्षि यास्क से लेकर सायण तक वेद के पंडितों ने इनके अनेक अर्थ निकाले हैं, जिसके कारण वेदों की सही व्याख्या कठिन है। आधुनिक युग में वेदों पर जो भी प्रसिद्ध ग..
प्रस्तुत पुस्तक ‘वस्तुनिष्ठ : भारत का इतिहास, कला एवं संस्कृति’ संघ लोक सेवा आयोग की प्रारंभिक परीक्षा हेतु लिखी गई है। इसमें भारत के इतिहास, कला एवं संस्कृति से संबद्ध 13 अभ्यास प्रश्नपत्र प्रस्तुत किए गए हैं। यह राज्य सेवा आयोग की परीक्षाओं हेतु भी समान रूप से उपयोगी है।
पुस्तक की विशेषताएँ
भारत..