मेरा कुछ नहीं है इस दुनिया में। औरत के पास उसके बदन के अलावा अपना और क्या है? इसके अलावा सब कुछ उसके बाप का है, पति का है, बेटे का है। बच्चे तुम्हारे हैं, क्योंकि तुमने मिडवाइफ और नर्स को पैसा दिया है। तुम इनके कपड़ों और पढ़ाई का खर्चा देते हो और यह सब भी लो...’ यह कहकर उसने अपनी हीरे की अँगूठी, नथ,..
— ‘दर्रा-दर्रा हिमालय’ एक परिवार की हिमालय पर घुमक्कड़ी का वृत्तान्त है। ऐसा परिवार जो फ़ुर्सत के क्षणों में विदेशों की सैर के बजाय बर्फ़ ढँके इन पहाड़ों को वरीयता देता है। इंदौर के अजय सोडानी को हिमालय की सर्द, मनोहारी और जानलेवा वादियों से गहरा अनुराग है। काल्पनिक से लगनेवाले सौन्दर्यशाली पहाड़ों पर ..
प्रत्यक्ष की अनुभूति करने का एक प्रयास है ‘दर्शन’। समाज में युवाओं के उलझी और बेमानी जीवन शैली में अध्यात्म के सहारे जीवन में सरलता लाने का एक आह्वान है। ईश्वर के सतरंगी रूप को हमारे दैनिक कार्यों में देखती रचनाएँ प्रेम और समर्पण को अर्पित हैं, जो भावों को शैलीविशेष में न बाँधकर नवीनता के साथ भक्ति ..
भरत के नाट्यशास्त्र से लेकर ‘आषाढ़ का एक दिन’ तक फैले दो-ढाई हज़ार वर्षों के बीच भारतीय रंगमंच में जो चिन्तन और दर्शन विकसित हुआ है, उसे समकालीन रंगकर्म के साथ जोड़कर विवेचित-विश्लेषित करनेवाली कृति है : ‘दर्शन प्रदर्शन’।इसमें जहाँ एक ओर शास्त्र, सिद्धान्त, अभिनय, आलेख और शैली को आधार बनाकर एक नए रं..
विश्व-दर्शन की मुख्य धारा में विभिन्न कालों के विभिन्न लोगों ने सकारात्मक या नकारात्मक, अपने-अपने तरीक़े से योगदान किया है। इस मुख्य धारा में अनेक धाराएँ मिली हुई हैं, जिनसे सामान्य पाठकों का परिचय कराने के लिए आठ पुस्तकों की यह शृंखला तैयार की गई है। प्रो. देवीप्रसाद चट्टोपाध्याय की प्रस्तुत पुस्तक..
दारुलशफ़ा, लखनऊ। यह पता है हमारी वर्तमान राजनीति का, जिसके ‘चरित्र’ का लेखा-जोखा इस किताब में दर्ज है। यानी एक स्थान विशेष, जहाँ कुछ विशेष लोग विशेष स्थितियों में विशेष समस्याओं के समाधान में जुटे हुए हैं। ये समस्याएँ निजी होकर राष्ट्रीय हैं, तो प्रादेशिक होकर अन्तरराष्ट्रीय। भारतीय राजनीति पिछले डे..
निज़ाम साहब का काव्य मैंने पढ़ा भी है उनके गहन-गम्भीर स्वर में सुना भी और इस अनुभव से बार-बार आप्यायित हुआ हूँ।निज़ाम साहब की कविताएँ मुझे सबसे पहले इसीलिए आकृष्ट करती हैं कि वे भारतीय रचनाएँ हैं। जिस संवेदन संसार में वे हमें आमंत्रित करती हैं, वह हमारा जाना-पहचाना है और उसमें वह बड़ी सहजता से प्रवे..
संविधान निर्माताओं को इसमें कोई संशय नहीं था और वे स्पष्ट थे कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की संकल्पना तब तक अव्यावहारिक है जब तक कि दिल्ली भारत संघ की राजधानी और केंद्र सरकार का मुख्यालय है।
संविधान निर्माताओं द्वारा प्रकट किए गए एकमत वाले विचारों के बावजूद एवं संकीर्ण निहित स्वार्थों हेत..
एक वक़्त के बाद कोई भी शहर वहाँ रहने वालों के लिए सिर्फ़ शहर नहीं, जीने का तरीक़ा हो जाता है। जिस तरह हम धीरे-धीरे शहर को बनाते हैं, बाद में उसी तरह शहर हमें बनाने लगता है और हम ‘दिल्ली वाले’, ‘मुम्बई वाले’ या ‘आगरा वाले’ कहे जाने लगते हैं।सुपरिचित आलोचक निर्मला जैन की यह कृति एक दिल्ली वाले की तर..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से भारत की बागडोर सँभाली है, तब से पूरे देश में इस बात की चर्चा है कि उनके आने के बाद देश में क्या बदलाव आया है? शासन-प्रशासन में कितना परिवर्तन देखने को मिल रहा है तथा लोगों की मानसिकता में किस तरह का बदलाव देखने को मिल रहा है? यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनकी ..
भीमराव रामजी आंबेडकर केवल भारतीय संविधान के निर्माता एवं करोड़ों शोषित-पीडि़त भारतीयों के मसीहा ही नहीं थे, वे अग्रणी समाज-सुधारक, श्रेष्ठ विचारक, तत्त्वचिंतक, अर्थशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, पत्रकार, धर्म के ज्ञाता, कानून एवं नीति निर्माता और महान् राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने समाज और राष्ट्रजीवन के हर प..