बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने सदियों से सभी तरह के अधिकार एवं सुविधा से वंचित जनसमूहों में यदि चेतना का संचार किया और उन्हें शिक्षित, संगठित होकर संघर्ष करने का मार्ग बताया तो यह उनका दलित-प्रेम नहीं; बल्कि सभी मूल, कुल, वंश, जाति, गोत्र, नस्ल, सम्प्रदाय, वर्ग, वर्ण के अधिकार-वंचितों की सच्ची सेवा का दु..
यह रामविलास पासवान के वैचारिक लेखों की दूसरी पुस्तक है। इस पुस्तक में 63 लेख संकलित हैं, जिन्हें अपने आक्रामक तेवर के लिए भी जाना जाता है। ये लेख देश की ज्वलन्त समस्याओं पर रोशनी डालते हैं। ये आलेख यह भी बताते हैं कि सामाजिक न्याय ही देश की खुशहाली का एकमात्र विकल्प है। छह अध्यायों में विभाजित इस पु..
हिन्दी क्षेत्र में दलित लेखन शुरू तो बहुत पहले हो गया था पर उसकी पहचान बनने में देर लगी। पहले हिन्दी में दलित लेखकों और चिन्तकों द्वारा दलित चेतना और संघर्ष को लेकर वैचारिक, ऐतिहासिक और सामाजिक लेखन हुआ। हिन्दी में दलित लेखन का यह एक महत्त्वपूर्ण दौर माना जाएगा। इसके बाद रचनात्मक लेखन का दौर शुरू हु..
ख्यात दलित लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की इस पुस्तक में देश-समाज के सबसे उपेक्षित तबक़े भंगी या वाल्मीकि की ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के साथ मौजूदा वास्तविक स्थिति का सप्रमाण वर्णन करने का प्रयास किया गया है।‘भंगी’—शब्द सुनकर ही लोगों की भौंहें तन जाती हैं। समाज की उपेक्षा और प्रताड़ना ने उनमें इस हद तक हीनत..
सिर पर मैला ढोने की प्रथा मानव सभ्यता की सबसे बड़ी विडम्बनाओं में से एक रही है। सोचनेवाले सदा से सोचते रहे हैं कि आख़िर ये कैसे हुआ कि कुछ लोगों ने अपने ही जैसे मनुष्यों की गन्दगी को ढोना अपना पेशा बना लिया। इस पुस्तक का प्रस्थान बिन्दु भी यही सवाल है। लेखक संजीव खुदशाह ने इसी सवाल का जवाब हासिल करन..