भक्ति साहित्य - Narad Muni Ki Aatmkatha
‘नारद मुनि की आत्मकथा’ पुस्तक में कुल मिलाकर छोटे-बड़े ऐसे छियालीस वृंत हैं, जो देवर्षि नारद के अपने मुखार-विंद से निसृत हुए और जिन्हें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास एवं गोस्वामी तुलसीदास ने पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न स्थलों पर प्रस्तुत किया है। इन आयानों से पता चलता है कि नारदजी की कथनी-करनी न केवल भेद रहित है, बल्कि सर्वत्र सात्विक और मधुर है। वे एक ओर लोक-कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, तो दूसरी ओर दक्ष-पुत्रों, वेदव्यास, वाल्मीकि, राजा बलि, बालक ध्रुव, दैत्य पत्नी कयाधू का हित साधन करते हैं और जहाँ आवश्यक समझते हैं, वहाँ ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
इन सब नेक और शुभ कर्मों को करते हुए भी वे राम और कृष्ण एवं विष्णु रूप अपने ‘नारायण’ को कभी विस्मृत नहीं करते। बहुआयामी सकारात्मक व्यतित्व वाले देवर्षि नारद, बिना भेदभाव के सभी से मधुर व्यवहार करते हुए व्यष्टि और समष्टि के कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं। इसीलिए या देव, दानव और राक्षस, तो या मनुष्य, उनका आदर और सम्मान करते हैं। ऐसे दुर्लभ गुण एवं विशेषताओं वाले नारद मुनि श्रीकृष्ण के लिए भी स्तुत्य हैं।अनुक्रम
भूमिका—7
श्रीकृष्ण द्वारा देवर्षि नारद की स्तुति—9 23. पुंडरीक का संदेह-निवारण—90
नारद भक्ति-सूत्र : सार—11 24. मातलि की कन्या के लिए वर की खोज—93
1. जन्म, पतन और पुनरुत्थान—17 25. राजा सुहोत्र का कद छोटा किया—98
2. हवन करते हाथ जले—19 26. इंद्रप्रस्थ में पांडवों का हित-चिंतन—100
3. महर्षि अत्रि की शंका—22 27. श्री हरि ने बढ़ाया मेरा मान—106
4. वेद व्यास की मिटाई उदासी—25 28. देवताओं ने बनाई थी कर्ण-जन्म की योजना—108
5. वाल्मीकि को राम का परिचय—27 29. कृष्ण के उपचार के लिए विचित्र औषधि!—113
6. भगवान् की शब्दमय मूर्ति—32 30. गालव मुनि को श्रेय (आत्म कल्याण) का उपदेश—116
7. पार्वती को बताया शिव-प्राप्ति का उपाय—36 31. कौरवों ने सांब को बंदी बना लिया—119
8. इंद्र और बृहस्पति की मनमानी पर अंकुश—39 32. देवलोक का रहस्योद्घाटन—122
9. नारायण के विश्वरूप के दर्शन—46 33. निंदा करो या स्तुति, श्रीहरि को भूलो मत!—124
10. शुकदेव को बनाया : मोक्ष-मार्ग का पथिक—49 34. गंधर्व चित्रसेन की रक्षा—129
11. प्राचीन बर्हि की भर्त्सना—52 35. दुर्योधन के कान पर जूँ नहीं रेंगी—132
12. बालक ध्रुव को बनाया—भगवद्भक्त—55 36. मेरे संगीत-ज्ञान पर पानी फिर गया—137
13. गर्भवती कयाधू की रक्षा—57 37. कृष्ण की सुलझाई उलझन—139
14. विष्णु को शाप देकर पछताया—59 38. कुबेर-पुत्रों को शाप—143
15. चित्रकेतु के मृत-पुत्र का आह्वान —63 39. कृष्ण का गृहस्थ रूप—145
16. कृष्ण कैसे कृतार्थ होते हैं?—65 40. वसुदेव को बताया परम पद पाने का उपाय —148
17. इंद्र-पुत्र जयंत को नेक सलाह—67 41. उद्धव के भ्रम का नाश—156
18. यमलोक में रावण हुआ लहू-लुहान—69 42. कृष्ण का उपदेश उद्धव से सुना—162
19. भगवन्! मुझे विवाह क्यों नहीं करने दिया?—74 43. धृतराष्ट्र की तपस्या में रुचि बढ़ाई—170
20. गरुड़ फँस गया माया के फंदे में—77 44. पांडवों को मृत्यु की सूचना दी—172
21. राजा सृंजय के मृत-पुत्र को जीवन-दान—79 45. युधिष्ठिर को स्वर्ग में उपदेश—174
22. समंग से भेंट—88 46. इंद्र को सुनाई आश्चर्यजनक घटना—176
भक्ति साहित्य - Narad Muni Ki Aatmkatha
Narad Muni Ki Aatmkatha - by - Prabhat Prakashan
Narad Muni Ki Aatmkatha - ‘नारद मुनि की आत्मकथा’ पुस्तक में कुल मिलाकर छोटे-बड़े ऐसे छियालीस वृंत हैं, जो देवर्षि नारद के अपने मुखार-विंद से निसृत हुए और जिन्हें महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वेदव्यास एवं गोस्वामी तुलसीदास ने पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न स्थलों पर प्रस्तुत किया है। इन आयानों से पता चलता है कि नारदजी की कथनी-करनी न केवल भेद रहित है, बल्कि सर्वत्र सात्विक और मधुर है। वे एक ओर लोक-कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, तो दूसरी ओर दक्ष-पुत्रों, वेदव्यास, वाल्मीकि, राजा बलि, बालक ध्रुव, दैत्य पत्नी कयाधू का हित साधन करते हैं और जहाँ आवश्यक समझते हैं, वहाँ ज्ञान देकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। इन सब नेक और शुभ कर्मों को करते हुए भी वे राम और कृष्ण एवं विष्णु रूप अपने ‘नारायण’ को कभी विस्मृत नहीं करते। बहुआयामी सकारात्मक व्यतित्व वाले देवर्षि नारद, बिना भेदभाव के सभी से मधुर व्यवहार करते हुए व्यष्टि और समष्टि के कल्याण हेतु तत्पर रहते हैं। इसीलिए या देव, दानव और राक्षस, तो या मनुष्य, उनका आदर और सम्मान करते हैं। ऐसे दुर्लभ गुण एवं विशेषताओं वाले नारद मुनि श्रीकृष्ण के लिए भी स्तुत्य हैं।अनुक्रम भूमिका—7 श्रीकृष्ण द्वारा देवर्षि नारद की स्तुति—9 23.
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- Model: PP1915
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: PP1915
- ISBN: 9789386054913
- ISBN: 9789386054913
- Total Pages: 184
- Edition: Edition Ist
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Cover
- Year: 2018
₹ 350.00
Ex Tax: ₹ 350.00