यह समय ‘अस्मिता विमर्श’ का है। विमर्श सचेत करते हैं अधिकारों और दायित्वों के प्रति। विभिन्न स्तरों पर जारी ‘स्त्री विमर्श’ ने स्त्रियों से जुड़े अनेक सवालों को मुखर और प्रखर किया है। स्त्रियाँ स्वतंत्रता, सम्मान, समता और सहभागिता के लिए निरन्तर संघर्ष कर रही हैं। इस सन्दर्भ में यह जानना ज़रूरी हो जा..
महिलाओँ की संख्या विश्व की जनसंख्या से लगभग आधी है। उनके उन्नयन के बिना परिवार, समाज व राष्ट्र की प्रगति सम्भव नहीं है। आज वे विभिन्न क्षेत्रों में अपनी योग्यताओं एवं क्षमताओं को उजागर कर रही हैं, जागरूकता एवं आत्मनिर्भरता की ओर उन्मुख हैं। पहले की अपेक्षा उनकी स्थिति में सुधार हुआ है, अधिकारों एवं ..
आज बाज़ार के दबाव और सूचना-संचार माध्यमों के फैलाव ने राजनीति, समाज और परिवार का चरित्र पूरी तरह बदल डाला है, मगर पितृसत्ता का पूर्वग्रह और स्त्री को देखने का उसका नज़रिया नहीं बदला है, जो एक तरफ़ स्त्री की देह को ललचाई नज़रों से घूरता है, तो दूसरी तरफ़ उससे कठोर यौन-शुचिता की अपेक्षा भी रखता है। पि..
प्रस्तुत पुस्तक में अपने अस्तित्व स्थापन के लिए सदियों से संघर्षरत नारी और उसकी चेतना के विविध रूपों का चित्रण है। समाज की एक इकाई के रूप में अपनी पहचान की निर्मिति के लिए नारी ने जिस अदम्य जिजीविषा एवं प्रबल इच्छा शक्ति का परिचय दिया, उसका यहाँ खुलकर विश्लेषण किया गया है। भारतीय समाज में परम्परागत ..
नारी प्रश्न के असंख्य आयाम हैं। कुछ प्रश्न ऐसे हैं, जो काल और स्थान की सीमाओं से बँधे हुए हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जो काल के दीर्घ प्रवाह के बीच से चिरन्तन प्रश्नों के रूप में सामने आए हैं। काल और स्थान-निरपेक्ष ये प्रश्न हर देश के नारी समाज की मानवीय अस्मिता से जुड़े हुए हैं। एक वृहत्तर मानव समाज में ..
भारत में बारह में से ग्यारह गर्भपात ग़ैरक़ानूनी होते हैं, सन् 2001 की जनगणना के अनुसार देश के सबसे शिक्षित और सम्पन्न राज्यों में, प्रति हज़ार पुरुषों के मुक़ाबले स्त्रियों की संख्या में, ख़ासकर 0–5 के आयु वर्ग में, काफ़ी गिरावट आई है; और, भारतीय परम्पराएँ जहाँ प्रजनन और मातृत्व को पवित्र करार देती ..
प्रस्तुत पुस्तक में जाहेदा हिना ने पाकिस्तान में औरतों की दशा-दिशा का प्रामाणिक विवरण दिया है। हमारे एशियाई मुल्कों में रंग-भेद, नस्ल-भेद आदि की समस्याओं पर जिस तरह मिलकर सोचने की प्रक्रिया शुरू हुई, उसके परिणामस्वरूप बहुत परिवर्तन आया है। लेकिन औरत की ज़िन्दगी के प्रति जो दृष्टि रही है, उसमें अपेक्..
आज स्त्रियों के काम तथा राष्ट्रीय उत्पाद में उनके कुल योगदान का बड़ा महत्त्व राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर स्वीकार कर लिया गया है। यह भी मान लिया गया है कि एक पुरुष को साक्षर बनाने से एक व्यक्ति ही साक्षर होता है, जबकि एक स्त्री के शिक्षित होने से एक पूरा कुनबा! अकाट्य तौर से यह भी..
भूमंडलीकरण कहता है कि उसके तहत हुआ बाज़ारों का एकीकरण लैंगिक रूप से तटस्थ है अर्थात् वह मर्दवादी नहीं है। यह एक ऐसा दावा है जो कभी पुनर्जागरण के मनीषियों ने भी नहीं किया था। भूमंडलीकरण इससे भी एक क़दम आगे जाकर कहता है कि नारीवाद की किसी क़िस्म से कोई ताल्लुक़ न रखते हुए भी उसने स्त्री के सशक्तीकरण क..
यह पुस्तक उपनिवेशीय भारत की एक अनूठी घटना पर आधारित है। बाईस वर्ष की एक युवती ने असाधारण विद्रोह करते हुए उस विवाह को मानने से इनकार कर दिया जिसमें उसे मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में झोंक दिया गया था।उसके पति ने अपने वैवाहिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए बम्बई उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा दिया। उसक..
सार्वजनिक स्पेस में स्त्री की आमद भारतीय समाज में एक समानान्तर प्रक्रिया रही है जिसके लिए सारी लड़ाइयाँ स्त्रियों ने ख़ुद लड़ी हैं, बेशक कुछ सहृदय और सुविवेकी पुरुषों का सहयोग भी उन्हें अपनी जगह बनाने में मिलता रहा। रंगमंच के संसार में स्त्रियों का प्रवेश भी इससे कुछ अलग नहीं रहा। बल्कि यह कुछ और कठिन..
‘संगतिन-यात्रा’ उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में दलित और शोषित महिलाओं के हक़ के लिए लड़ती सात ग्राम-स्तरीय महिला-कार्यकर्ताओं की ज़िन्दगी का सफ़रनामा है। नौ लेखिकाओं की क़लम से पिरोया यह सफ़रनामा सात औरतों की निजी डायरियों पर आधारित है। इसमें उन्होंने अपने बचपन, जवानी, शादी-ब्याह और मातृत्व की देह..