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Discourse - Hindu, Hindutva, Hindustan

Discourse - Hindu, Hindutva, Hindustan
सारे बौद्धिक प्रयत्न के बावजूद, ‘हिन्दू अवचेतन’ अपने को ही भारतीय मानता है। भारत जैसे बहुधर्मी और सांस्कृतिक वैविध्य से भरपूर देश के लिए ऐसी मान्यता अनिवार्यतः अनिष्टकारी है। पिछले कुछ समय से यह मान्यता अवचेतन से निकलकर उत्तरोत्तर आक्रामक होती जा रही है। बौद्धिक प्रयत्न के बावजूद नहीं, बल्कि खुलकर एक विचारधारा के रूप में यह हिन्दू को ही राष्ट्र मान बैठी है। ख़तरा यदि प्रधानतः विचारधारा और उससे जुड़ी किसी राजनीतिक पार्टी का होता तो उससे जूझना मुश्किल न होता। पर आज परेशानी यह है कि ‘हिन्दू अवचेतन’ कहीं न कहीं उन बातों को अपनी अँधेरी गहराइयों में मानता है, जिनको चेतना के स्तर पर वह राष्ट्र के लिए घातक और नैतिक रूप से अवांछनीय समझता है। ज़रूरी है कि उसका सामना इस दुविधा से कराया जाए।—इसी पुस्तक से

Discourse - Hindu, Hindutva, Hindustan

Hindu, Hindutva, Hindustan - by - Rajkamal Prakashan

Hindu, Hindutva, Hindustan -

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  • Stock: 10
  • Model: RKP2066
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP2066
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 152p
  • Edition: 2021, Ed. 3rd
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Paper Back
  • Year: 2003
₹ 175.00
Ex Tax: ₹ 175.00