Literary Criticism - Saat Bhumikayen
छायावाद की यशस्वी रचनाकार महादेवी वर्मा का लेखन किसी न किसी रूप में पाठकों व आलोचकों को आन्दोलित करता आया है। कभी उनकी रचनाओं में उनके जीवन के बिखरे सूत्र रेखांकित किए जाते हैं तो कभी उनके जीवन में रचनाओं के स्रोत खोजे जाते हैं। महादेवी द्वारा लिखित प्रत्येक शब्द स्वयं को ध्यान से पढ़े जाने का आग्रह करता है। ‘सात भूमिकाएँ’ में ‘रश्मि’, ‘सांध्यगीत’, ‘आधुनिक कवि’, ‘दीपशिखा’, ‘बंग–दर्शन’, ‘सप्तपर्णा’ एवं ‘हिमालय’ कविता–संग्रहों की भूमिकाएँ हैं। महादेवी वर्मा लिखित इन भूमिकाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। ये भूमिकाएँ उनकी तत्कालीन मन:स्थिति को प्रकट करने के साथ उनके समग्र लेखन पर एक ‘अन्त:साक्ष्य’ की भाँति हैं। ‘सात भूमिकाओं’ के सम्पादक दूधनाथ सिंह का सम्पादकीय ‘छायावाद : व्यथा का सवेरा’ अत्यन्त विचारोत्तेजक है। अपनी विशिष्ट ‘तर्कसंगत पद्धति’ से दूधनाथ सिंह ने महादेवी के रचनाकर्म को विवेचित किया है—‘उनके वाक्य स्पष्ट, पारदर्शी व निर्भ्रान्त हैं, ‘महादेवी की आलोचनाएँ शब्द–अलंकृति अधिक हैं, आलोचनाएँ कम। उनका सारा वैचारिक गद्य–लेखन लगभग ऐसा ही है। उनमें तर्क और विश्लेषण का अभाव है। अपनी हर अगली बात के लिए महादेवी तर्क की जगह कोई प्रतीक–बिम्ब ढूँढ़ने लगती हैं।’दूधनाथ सिंह के सम्पादकीय के प्रकाश में महादेवी की इन सात भूमिकाओं को पढ़ना एक आलोचनात्मक अनुभव है। तब और भी जब महादेवी के चुटीले ‘सुरक्षात्मक वाक्य’ उनकी प्रत्येक भूमिका में हैं। ‘रश्मि’ संग्रह की ‘अपनी बात’ का पहला ही वाक्य, ‘अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि अपने दोष देखना अपने आपको अप्रिय लगता है और इनको अनदेखा कर जाना औरों को...।’ एक संग्रहणीय पुस्तक।
Literary Criticism - Saat Bhumikayen
Saat Bhumikayen - by - Rajkamal Prakashan
Saat Bhumikayen - छायावाद की यशस्वी रचनाकार महादेवी वर्मा का लेखन किसी न किसी रूप में पाठकों व आलोचकों को आन्दोलित करता आया है। कभी उनकी रचनाओं में उनके जीवन के बिखरे सूत्र रेखांकित किए जाते हैं तो कभी उनके जीवन में रचनाओं के स्रोत खोजे जाते हैं। महादेवी द्वारा लिखित प्रत्येक शब्द स्वयं को ध्यान से पढ़े जाने का आग्रह करता है। ‘सात भूमिकाएँ’ में ‘रश्मि’, ‘सांध्यगीत’, ‘आधुनिक कवि’, ‘दीपशिखा’, ‘बंग–दर्शन’, ‘सप्तपर्णा’ एवं ‘हिमालय’ कविता–संग्रहों की भूमिकाएँ हैं। महादेवी वर्मा लिखित इन भूमिकाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। ये भूमिकाएँ उनकी तत्कालीन मन:स्थिति को प्रकट करने के साथ उनके समग्र लेखन पर एक ‘अन्त:साक्ष्य’ की भाँति हैं। ‘सात भूमिकाओं’ के सम्पादक दूधनाथ सिंह का सम्पादकीय ‘छायावाद : व्यथा का सवेरा’ अत्यन्त विचारोत्तेजक है। अपनी विशिष्ट ‘तर्कसंगत पद्धति’ से दूधनाथ सिंह ने महादेवी के रचनाकर्म को विवेचित किया है—‘उनके वाक्य स्पष्ट, पारदर्शी व निर्भ्रान्त हैं, ‘महादेवी की आलोचनाएँ शब्द–अलंकृति अधिक हैं, आलोचनाएँ कम। उनका सारा वैचारिक गद्य–लेखन लगभग ऐसा ही है। उनमें तर्क और विश्लेषण का अभाव है। अपनी हर अगली बात के लिए महादेवी तर्क की जगह कोई प्रतीक–बिम्ब ढूँढ़ने लगती हैं।’दूधनाथ सिंह के सम्पादकीय के प्रकाश में महादेवी की इन सात भूमिकाओं को पढ़ना एक आलोचनात्मक अनुभव है। तब और भी जब महादेवी के चुटीले ‘सुरक्षात्मक वाक्य’ उनकी प्रत्येक भूमिका में हैं। ‘रश्मि’ संग्रह की ‘अपनी बात’ का पहला ही वाक्य, ‘अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि अपने दोष देखना अपने आपको अप्रिय लगता है और इनको अनदेखा कर जाना औरों को.
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- Model: RKP1058
- Weight: 250.00g
- Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
- SKU: RKP1058
- ISBN: 0
- Total Pages: 184p
- Edition: 2018, Ed. 2nd
- Book Language: Hindi
- Available Book Formats: Hard Back
- Year: 2013
₹ 395.00
Ex Tax: ₹ 395.00