Menu
Your Cart

Literary Criticism - Krantikari Yashpal : Ek Samarpit Vyaktitva

Literary Criticism - Krantikari Yashpal : Ek Samarpit Vyaktitva
साम्राज्यवादी शोषण और दासता के विरुद्ध उद्वेलित भारत ने जिन नौजवानों को जन्म देकर क्रान्ति की दिशा में बढ़ने को प्रेरित किया, उनमें यशपाल अत्यन्त भास्वर तेजोद्दीप्त, और इसीलिए सबसे भिन्न दिखाई पड़ते हैं। भिन्न इस अर्थ में कि अन्य क्रान्तिकारियों के निकट क्रान्ति जब ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यों और लूट-मार तक सीमित थी, तब यशपाल के निकट इसका कुछ और महत्तर और अधिक व्यापक अर्थ था और वह यह कि शोषणपरक विदेशी शासन से राजनीतिक मुक्ति तो मिले ही, शासन-व्यवस्था (समाज-व्यवस्था) भी बदले; अर्थात् शासन-सूत्र का हस्तान्तरण तो वे चाहते ही थे, शासन-पद्धति में भी परिवर्तन चाहते थे। यही बात यशपाल को उनके अन्य साथियों से भिन्न भूमि पर अवस्थित करती है। वस्तुतः वैचारिक स्तर के जिस उच्च धरातल पर खड़े होकर यशपाल सोच रहे थे, वहाँ तक उनके साथी नहीं पहुँचे थे। यही कारण है कि यशपाल को अपने साथियों के बीच कई भ्रान्तियों का शिकार होना पड़ा।रचनाकार के रूप में यशपाल के आविर्भाव के पहले कथा-साहित्य में प्रेमचन्द का अवतरण हो चुका था और कथा-साहित्य को रहस्य-रोमांस तथा तिलिस्म की दुनिया से उबारकर सामाजिक यथार्थ के ठेठ आमने-सामने खड़ा कर वे एक नए प्रवर्त्तन का कार्य सम्पन्न कर चुके थे। सामाजिक यथार्थ के पथ पर चलते हुए एक के बाद एक उनकी अनेक जीवन्त उपलब्धियाँ भी सामने आ चुकी थीं। उनके द्वारा हिन्दीभाषी एक विशाल पाठक-समाज की रुचियों का परिष्कार और संस्कार हुआ था। अब वह ‘चन्द्रकान्ता’ और ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ जैसे उपन्यासों में रस लेनेवाला पाठक-समाज न रहकर ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’ और ‘गोदान’ जैसी कृतियों को अंगीकार कर चुका था। सामाजिक यथार्थ की राह पर चलते हुए प्रेमचन्द ने उसे इतना प्रशस्त कर दिया था कि परवर्ती रचनाकारों को उस पथ पर चलने में किसी भी प्रकार की झिझक और कठिनाई न हो, बशर्ते कि वे सही अर्थों में एक ज़िम्मेदार लेखन का संकल्प लेकर रचना के क्षेत्र में उतरे हों। किन्तु प्रेमचन्द जिस चीज़ को पाना चाहकर भी अपनी असामयिक मौत के कारण नहीं पा सके थे, और जो बस कौंधकर ही उनकी परवर्ती रचनाओं में रह गई थी, वह चीज़ यथार्थ के प्रति वह वैज्ञानिक दृष्टि थी, जो उनके निधन के साथ प्रगतिशील आन्दोलन और समाजवाद का अंग बनकर सामने आई। यशपाल चूँकि इसी प्रगतिशील आन्दोलन की उपज हैं, अतः सहज ही उन्हें यथार्थ के प्रति यह वैज्ञानिक दृष्टि प्राप्त हुई। ऐसी स्थिति में स्वाभाविक ही माना जाएगा कि यशपाल यथार्थ को, प्रेमचन्द द्वारा मिली इस विरासत को समाजवाद के आलोक में और भी सम्पन्न करके प्रस्तुत करते। उनके सामने सवाल प्रेमचन्द की इस विरासत के संरक्षण का ही नहीं, संवर्धन का भी था, और एक योग्य उत्तराधिकारी के रूप में यशपाल ने उसे संवर्धित भी किया।अपने युग के यथार्थ को जितनी व्यापकता, विस्तार तथा संश्लिष्टता से, उसके सारे ज्वलन्त प्रश्नों के साथ यशपाल ने चित्रित किया है, वैसा कम देखने को मिलता है। एक प्रतिबद्ध तथा सामाजिक दृष्टि से सम्पन्न रचनाकार होने के नाते अपने युग के यथार्थ का चित्रण मात्र करके उन्होंने छुट्टी नहीं ली है, वरन् वर्तमान जीवन के मूलभूत प्रश्नों को कुरेद-कुरेदकर उन पर तीखी टिप्पणियाँ भी की हैं, सार्थक निष्कर्ष भी दिए हैं। जितनी निर्ममता से उन्होंने युग की सामन्तवादी-पूँजीवादी मनोवृत्तियों पर चोट की है, जितनी निर्भीकता से समाज के अतिचार तथा उसके ज़िम्मेदार व्यक्ति तथा संस्थाओं का पर्दाफ़ाश किया है, जितने दो-टूक ढंग से उच्चवर्गीय नैतिकता तथा झूठी आभिजात्य-भावना के खोखलेपन को उजागर किया है, मध्यवर्गीय आडम्बरों की धज्जियाँ उड़ाई हैं, उतनी ही आत्मीयता से समाज के पिसते हुए जन-समुदाय, किसान, मज़दूर, नारी, अछूत, वेश्याओं, पतिताओं तथा ठुकराई गई समस्त मनुष्यता को देखा है, और उसकी आशाओं, आकांक्षाओं, स्वप्नों तथा संघर्षों को उभारा है। यशपाल की यह दृष्टि ही एक प्रगतिशील चेतना से सम्पन्न यथार्थनिष्ठ रचनाकार के रूप में उन्हें प्रतिष्ठा देती है।

Literary Criticism - Krantikari Yashpal : Ek Samarpit Vyaktitva

Krantikari Yashpal : Ek Samarpit Vyaktitva - by - Lokbharti Prakashan

Krantikari Yashpal : Ek Samarpit Vyaktitva -

Write a review

Please login or register to review
  • Stock: 2-3 Days
  • Model: RKP3791
  • Weight: 250.00g
  • Dimensions: 18.00cm x 12.00cm x 2.00cm
  • SKU: RKP3791
  • ISBN: 0
  • Total Pages: 304p
  • Edition: 2007, Ed. 1st
  • Book Language: Hindi
  • Available Book Formats: Hard Back
  • Year: 2007
₹ 0.00
Ex Tax: ₹ 0.00